*विजया पाठक, एडिटर जगत विजन*
अपनी मांगों को लेकर लगभग एक वर्ष तक दिल्ली की चारों बॉर्डर पर डटे रहे किसानों को केंद्र सरकार ने कृषि कानून की वापसी का निर्णय लेकर भले कुछ राहत पहुंचाई हो। लेकिन एक दिन पहले संसद में सरकार की ओर से रखे गए पक्ष ने एक बार फिर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। दरअसल सरकार की ओर से एक गैर जिम्मेदाराना बयान दिया गया जिसको लेकर पूरे देशभर में चर्चा हो रही है। सरकार ने संसद में कहा है कि उनके पास किसान आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों का कोई रिकॉर्ड नहीं है। विपक्ष की ओर से किसान आंदोलन के दौरान मरे किसानों के परिवारों को आर्थिक मुआवजा दिये जाने की बात कही जा रही थी, लेकिन सरकार के इस बयान ने एक बार फिर मृतक किसानों के परिजनों को दुखी कर दिया।*जगत विजन ने प्रमुखता से उठाया था मुद्दा*
प्रधानमंत्री द्वारा कृषि कानून बिल वापस लिये जाने के फैसले के बाद जगत विजन ने प्रमुखता से इस बात की मांग की थी कि भले ही सरकार कृषि कानून बिल वापस लेने पर सहमत हो गई है। लेकिन फिर भी मोदी सरकार की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वो किसान आंदोलन के दौरान अपनी जान गवां बैठे किसानों के परिजनों को आर्थिक मुआवजा, शासकीय नौकरी और जीवन भर के लिए शासकीय सुविधाओं को लाभ दे। ताकि मृतक के परिजनों को किसी प्रकार समस्या का सामना न करना पड़े।*700 से अधिक किसानों की हुई थी मौत* केंद्र सरकार की हट के कारण दिल्ली की चारों बॉर्डर पर डटे किसानों में ऐसे कई किसान थे जो अपनी दो गज जमीन पर खेती कर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे थे। लेकिन केंद्र सरकार के कृषि कानून बिल के कारण वो दुखी हुए और सरकार के इस फैसले के विरुद्ध दिल्ली की सड़कों पर उतरकर बीते 26 नवंबर 2020 से निरंतर संघर्ष करते दिखाई दिये। इस दौरान लगभग 700 से अधिक किसानों की किसान आंदोलन के दौरान मौत हुई है। यह मौतें मुख्य रूप से मौसम की मार, गंदगी के कारण होने वाली बीमारियों और आत्महत्या के कारण हुई हैं।
मोदी सरकार के अंहकार के चलते एक किसान ने आंदोलन स्थल पर ही आत्म हत्या भी की थी। उसने अपनी मौत का जिम्मेदार मोदी सरकार को माना था।*अपनी जिम्मेदारी से न बचे केंद्र सरकार*
किसान देश का अन्नदाता है ऐसे में उसके साथ इस तरह की इंसाफी किसी भी सरकार को शोभा नहीं देती। फिर चाहे वो केंद्र की मोदी सरकार हो या फिर किसी राज्य की। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगता है कि उनकी सरकार के पास मरने वाले किसानों की मौतों का कोई आंकड़ा नहीं है तो वो राज्य सरकार, जिला कलेक्टर और किसान मोर्चा के अध्यक्ष सहित किसान आंदोलन के पदाधिकारियों से बात कर इसका हल निकाले और जल्द से जल्द आंदोलन में अपनी जान गवां बैठे किसानों के परिजनों को आर्थिक मदद पहुंचाए।