प्रवीण अजमेरा
देश और दुनिया में सारे एलोपैथी के डॉक्टर डब्ल्यूएचओ के इशारे पर नाच कर आईएमए व इंडियन मेडिकल काउंसिल जिस को करोड़ों डॉलर हर महीने इसलिए मिलते हैं ताकि देश दुनिया में वह उनके इशारे पर नाच कर उनकी दवाइयां इंजेक्शन चिकित्सा उपकरण मशीनें दिखाने का षड्यंत्र कर रहे हैं जहां तक डा नरेश त्रेहान का सवाल है। नहीं है देश में आकस्मिक घायल बच्चों को कोमा में पहुंचा कर, उनके माता पिता को डरा धमका भ्रमित कर, अंगदान का प्रमाण पत्र लेकर शरीर के अंगों ह्रदय, लिवर, किडनी, आंखें, अंडकोष को निकाल कर लाखों में बेचने वाला सबसे बड़ा व्यापारी, घोर नीच कसाई है।
इंदौर के पूर्व कमिश्नर संजय दुबे की पत्नी को ₹1लाख महीने की तनख्वाह मुफ्त देकर, इंदौर के अनेकों अध् घायले बच्चों को कोमा में पहुंचाकर ग्रीन कॉरिडोर बनवा कर उसने उन अंगों को अहमदाबाद, दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई के मरीजों को करोड़ों में बैचें। २०१६ में जब मैंने इसकी शिकायत सीबीआई प्रधानमंत्री राष्ट्रपति के साथ पूरी दुनिया में कर दी। तब केरल में इसके ऊपर कानून बना दिया गया।
इस घटना से नीचता, डकैती, लूट का अंदाजा लगाया जा सकता है।
फिर 21 महीने गुजर गए जनता सड़कों पर क्यों नहीं निकल रही। यह षड्यंत्र अंतरराष्ट्रीय है और इसमें देश की सरकारें बिकी हुई होकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों से मोटा कमीशन खाकर उनके टीके दवाइयां, मास्क, ऑक्सीमीटर, थर्मो गन, रेमडिसबीयर जैसे घातक इंजेक्शन बिकवाने का षड्यंत्र करके मोटी कमाई कर रही है।
इस सत्य को समझें और अधिकारों की लड़ाई के लिए भेड़ों की तरह सिर झुका कर जीने की अपेक्षा, लड़ने की तैयारी में सड़कों पर उतर जाए।
जब मौत निश्चित है, तो कुत्ते की मौत क्यों मरना चाहते हैं?
इंसान बनकर पैदा हुए हो, तो इन कसाई नेताओं, इंसानों, डाक्टरों को इनकी औकात दिखाकर, बहादुरी के साथ मरो। ताकि आपकी आने वाली पीढ़ीयां आपकी शौर्यगाथा सुनाकर खुश हो सकें।
अन्यथा हिंदुओं 10 करोड़ तो उन्होंने कुत्तों की मौत डरा डरा कर कोरोना और टीका लगाकर मार ही डाले।
देख लीजिए जब मृत्यु निश्चित है। तो मौत का भय कैसा और क्यों?
कोई बीवी बच्चा मकान दुकान किसी का नहीं।
जो कुत्तों की मौत जबरदस्ती अस्पतालों में भर्ती कर मार डाले गए।
उनके परिवारों में उनका नाम लेने वाला कोई नहीं है। यहां तक कि मरने के बाद उनकी बीवी बच्चों ने पलट कर भी नहीं देखा कि उनके पति, पिता का अंतिम संस्कार कैसे हो रहा है?
यदि बहादुरी के साथ लड़ते हुए मरते तो शायद उनके बीवी बच्चे उनको याद भी करते।
उसको समझिए। डरिए मत। इकट्ठे होकर बाहर निकलिए अस्तित्व की लड़ाई लड़िये और जीना सीखिए।
जानवरों की तरह जीना बंद कर दीजिए।
जीना है, तो बहादुरी के साथ मरना सीख,
वरना कुत्तों की मौत मरने के लिए तो चारों तरफ तुझे लूटकर ही मुंह फाड़े बैठे नेता, डॉक्टर, माफिया, पुलिस, सरकार, सब तैयार बैठे हैं। जो बीमारी के बहाने, टीका ठोक कर, महंगाई से, लाक डाऊन से, नोटबंदी से, जीएसटी से, कैशलेस से तेरा अस्तित्व मिटाने के लिए ही बैठे हैं। इसको समझ।
प्रवीण अजमेरा
समय माया समाचार पत्र
इंदौर