भारतीय जनता पार्टी में सालों से काम करने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं का स्थान व्यक्तिगत पसंद और मैनेजमेंट ने ले लिया है।
इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पद पर इंदौर संभाग के पूर्व संगठन मंत्री जयपाल सिंह चावड़ा की नियुक्ति आश्चर्यजनक ही नहीं अतार्किक भी है. इंदौर के विकास को लेकर या इंदौर की जन समस्याओं को लेकर कभी जयपाल सिंह चावड़ा का कोई योगदान छात्र जीवन से आज तक इंदौर के इतिहास में नहीं रहा है.. देवास के रहने वाले परिवार के व्यक्ति को देवास विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया जाना तो ठीक है– पर इंदौर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष कई वर्षों से काम कर रहे भाजपा कार्यकर्ताओं मजाक उड़ाना ही माना जाएगा।*
सालों से काम कर रहे मध्य प्रदेश भाजपा के पूर्व संगठन महामंत्री पूर्व सांसद कृष्ण मुरारी मोघे.. पूर्व विधायक पूर्व भाजपा अध्यक्ष गोपीकृष्ण नेमा…. पूर्व प्रदेश मीडिया प्रभारी गोविंद मालू…. पूर्व विधायक प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष जीतू जिराती… वरिष्ठ नेता ललित पोरवाल… पूर्व भाजपा अध्यक्ष पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता.. आलोक डाबर.. अजय सिंह नरूका.. हरिनारायण यादव.. कैलाश शर्मा… जैसे ताकतवर 20-25 नामों को दरकिनार कर….. कांग्रेस की तर्ज पर लिया गया यह भाजपा संगठन का फैसला इंदौर जैसे बड़े शहर के साथ कितना न्याय कर पाएगा यह आने वाला समय बताएगा?
जयपाल सिंह चावड़ा को भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत का खासम खास बताया जाता है… इस निर्णय में भी प्रदेश के निगम मंडलों में जूनियर होने के कारण जयपाल सिंह चावड़ा का नाम एडजस्ट नहीं हो पा रहा था सुहास भगत ने कहीं नहीं तो इंदौर विकास प्राधिकरण में ही कर दो की तर्ज पर इसी प्रकार के चौकानेवाले निर्णय करने के लिए सुहास भगत प्रसिद्ध है… उन्होंने अपने पसंद के 12 जिला अध्यक्षों की नियुक्ति भी भाजपा जिला संगठन में कर दी थी।
दुर्भाग्य से एक दौर था जब राजेंद्र धारकर और नारायण धर्म उत्सव चंद पोरवाल भंवर सिंह शेखावत जैसे दमदार नेता इंदौर में होने वाली किसी भी प्रशासनिक अथवा राजनीतिक नियुक्ति के पूर्व परस्पर चर्चा करके निर्णय लेते थे। मजाक बन चुका भारतीय जनता पार्टी का पूरा संगठन खुद अपने इतिहास पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है?
पूर्व में इंदौर विकास प्राधिकरण इंदौर नगर निगम इंदौर नगर भाजपा अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से चर्चा करके सहमति के आधार पर निर्णय करने की परंपरा भाजपा में रही है। इस नई भाजपा में पुराने लोगों को बोलने का बहुत अधिक अधिकार भी नहीं बचा है। इंदौर में संभागीय संगठन मंत्री रहते हुए भी जयपाल सिंह चावड़ा की कोई खास लोकप्रियता नहीं रही– कुछ अपने पसंदीदा लोगों को बिना किसी से पूछे पदाधिकारी बनाने के अलावा –निचले स्तर पर आम संगठन के समर्पित कार्यकर्ताओं के बीच जाकर उन्होंने कोई काम नहीं किया। चावड़ा के खिलाफ तो भारतीय जनता पार्टी की बैठकों में सरेआम कार्यकर्ताओं ने खड़े होकर आपत्तियां भी वरिष्ठ नेताओं को दर्ज कराई थी।
दुर्भाग्य से अपनी आंखों के सामने भाजपा संगठन को कमजोर होते देखते भाजपा नेता भी सिर्फ अपने पद को बचाने का संघर्ष कर रहे हैं …..तभी तो इंदौर से इसके पूर्व की शिवराज सरकार में एक भी मंत्री नहीं बन पाया था। सिंधिया की कृपा से विधायकों को भाजपा में लाकर बैसाखी से बनी सरकार में भी . महेंद्र हार्डिया .. रमेश मेंदोला जैसी खाटी कार्यकर्ताओं का स्थान तुलसी सिलावट व उषा ठाकुर जैसे नेताओं ने ले लिया है….. इतना तो स्पष्ट हो गया है संगठन स्तर पर होने वाले निर्णयों में भाजपा संगठन के कार्यकर्ताओं की कोई भूमिका नहीं रही है।
जब चावड़ा को इंदौर संभाग के संगठन मंत्री पद से मुक्त किया गया था तब उन्हें भाजपा प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया था तब भी उनके नाम के आगे देवास जिला लिखा था।
दुर्भाग्य से आज इंदौर जैसे मजबूत भाजपा संगठन में ऐसे मजबूत नेता और कार्यकर्ता नहीं बचे…. जो इस प्रकार के मनमाने निर्णय के खिलाफ खड़े हो सके।
जो नेता अपनी बात रखना चाहेंगे उनकी सुनने कौन वाला है।
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