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कर्कश ध्वनि कांव कांव

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शशिकांत गुप्ते

इनदिनों कौवे मानसिक रूप से आहत है। कौवों ने एक सार्वजनिक सभा आयोजित की।
सभा मे सभी कौवों ने कर्कश आवाज में कांव कांव करते हुए, एक जुटाता का परिचय दिया।
अन्य पक्षियों के प्रतिनिधियों ने कौवों की सभा में उपस्थित होकर सभा आयोजित करने का कारण पूछा?
कौवे के प्रवक्ता ने अन्य पक्षियों के प्रतिनिधियों से कहा कि, मनुष्यों के आचरण से हम सभी कौवे आहत हैं। मनुष्य झूठ बोलतें रहतें हैं। मनुष्यों ने एक झूठी कहावत को प्रचलित कर दिया कि, झूठ बोले तो कौवा काटे।
झूठ बोलने की आदत मनुष्यों की और सजा हम कौवे उसे काट कर दें? यह कैसे संभव हो सकता है?
चलो मनुष्य कभी कभार झूठ बोले और कोई कौवा उसे काट ले तो यह महज एक सयोंग ही हो सकता है।
हम कौवे कैसे पहचान पाएंगे की मनुष्य झूठ बोल रहा है। हम तो मनुष्यों की भाषा जानते ही नहीं है।
मान भी लो कि हम कौवों को यह अधिकार प्राप्त भी हो जाए कि, झूठ बोलने वाले मनुष्य को काटना है। तब एक विकट समस्या हमारे समक्ष पैदा होगी मनुष्यों की संख्या की तुलना में हम कौवों की संख्या बहुत कम है।
जब कौवों का प्रवक्ता अन्य पक्षियों के प्रतिनिधियों से चर्चा कर रहा था,तब कौवे के मुखिया ने आकर अन्य पक्षियों के प्रतिनिधियों के समक्ष एक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की।
इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में एक अहम जानकारी थी। पूर्व में ज्यादातर चोर,उठाईगिरे,उच्चके,ठग,
पाखण्डी,बेईमान,लफंगे,डाकू
और लुटेरे ही झूठ बोलते थे।

अब तो हर कोई झूठ बोल रहा है। बहुत से रसूखदार लोग तो पवित्र स्थानों पर सरेआम झूठ बोल रहें हैं। आश्चर्य तो तब होता है,जब मनुष्य संविधान की शपथ लेकर देश के पवित्र सभागृह में झूठ बोलतें हैं। मनुष्य शरीर की सुंदरता को बरकरार रखनें के लिए साज सिंगार करता है। दिनभर में चार पाँच बार परिधान बदलता है,लेकिन झूठ बोलने में कोई कसर नहीं छोड़ता है।
अब आप ही बताइए कि, हम ऐसे रसूखदार लोगों को कैसे काटेंगे।
हम कौवे हुए तो क्या हुआ हमारे भी कुछ संस्कार है।
हम कौवों को मनुष्य द्वारा कितना भी अपावन क्यों न समझा जाए, लेकिन धर्मशास्त्र के अनुसार हम कौवे ही मनुष्य की मृत्यु होने पर उसके पिंड को चोंच मारकर मनुष्य की आत्मा को मोक्ष प्रदान करतें हैं।
यदि हम ऐसा नहीं करतें है, तो
मनुष्यों की आत्मा भूत बनकर भटकती ही रहती है।ऐसी अंधविश्वास भरी मान्यता मनुष्यों ने फैलाई है।
हम कौवों में और मनुष्य में एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंतर है। हम कौवों के समाज में कोई विभिन्न जाति,बिरादरी,उच,नीच,रूपरंग का कोई भेदभाव नहीं होता है।
हम कौवों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण गुण है। हम सभी कौवों की भाषा एक सी ही है।
सबसे महत्वपूर्ण हम कौवों में साम्प्रदायिक सद्भाव है।
कौवों के साथ सभी पक्षियों के प्रतिनिधियों ने एक जुटता का परिचय देतें हुए,मनुष्यों के झूठ बोलने की आदत की तीव्र शब्दों में भर्त्सना की।
पक्षियों के कलरव और कौवों की कर्कश आवाज में सभी ने एक साथ नारे लगाए,हम सब एक हैं।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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