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करो योग – रहो निरोग!

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योग साधिका विनीता पाल,

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
कोरोना काल में योग बहुत काम आ रहा है। विशेषकर आक्सीजन स्तर को सही रखने के लिए लोग योग का भी सहारा ले रहे हैं। नियमित रूप से प्राणायाम करने और आयुर्वेदिक काढ़े का प्रयोग करने का हमारा निवेदन है। नियमित योगाभ्यास से आक्सीजन की कमी नहीं होती है तो तनाव भी दूर रहता है। खासकर रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी में कारगर सिद्ध होता है। पेड़-पौधे हमारे सबसे बड़े मित्र हैं। वे हमें जीवनदायिनी आक्सीजन देते हैं तथा हमारे द्वारा छोड़ी विषेली कार्बन डाई आक्साइड को शोषित कर पर्यावरण को प्रदुषित होने से बचाते हैं।
‘‘योग क्रिया से शांति और विकास में योगदान मिल सकता है। यह मनुष्य को तनाव से राहत दिलाता है। वास्तव में योग व्यक्ति और प्रकृति के बीच तालमेल बनाता है। इसमें केवल व्यायाम नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और मनुष्य के बीच की कड़ी है। यह जलवायु परिवर्तन से लड़ने में हमारी मदद करता है। आज के समय लोगों ने भौतिक जगत में बहुत ऊँचाई हासिल कर ली है, लेकिन अपने अंदर झाँकने का मौका केवल भारतीय संस्कृति ही देती है। वास्तव में योग एवं अध्यात्म की गुणात्मक शिक्षा में पूरी मानवता को एकजुट करने की शक्ति है।
योग हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है। महर्षि पंतजलि के अनुसार – ‘‘युगश्चित्तवृत्ति निरोधः’’ अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।
आज इस भाग-दौड़ वाली जिन्दगी में अनेक ऐसे पल आते हैं, जब हम मानसिक रूप से तनाव में आ जाते हैं। ऐसी स्थिति में हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। स्वयं को स्वस्थ एवं ऊर्जावान बनाऐ रखने के लिए योग हमारे लिए अति आवश्यक है। योग के माध्यम से जीवन की गति को एक संगीतमय रफ्तार मिल जाती है।
योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा विज्ञान है, जीवन जीने की एक कला है। ‘योग’ शब्द के दो अर्थ निकलते हैं – जोड़ तथा समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुडें़गे तब तक समाधि तक पहुँचना कठिन होगा। अर्थात् जीवन में सफलता की ऊँचाई पर परचम लहराने के लिए तन, मन और आत्मा का स्वस्थ होना अतिआवश्यक है।
अनेक सकारात्मक ऊर्जा के लिए योग का गीता में विशेष स्थान है। भगवत् गीता में कहा गया है – सिद्ययसिद्ययों समोभूत्वा समत्वयोगः उच्चते।’’ अर्थात् सुख-दुख, लाभ-हानि, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि दवंदवों में सर्वत्र समभाव रखना योग है। यदि हम योग को जीवन का हिस्सा बना लें तो हम स्वयं को पहचान लेंगें। योग जीवन की कला है, यह एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है।
आज जिस तरह से लोगों का रहन-सहन तथा खान-पान हो गया है उसे देखते हुए हम सब योग को अपनाएं और अपने भारतीय गौरव को एक स्वस्थ संदेश के माध्यम से गौरवान्वित करें। गीता में लिखा है- ‘‘योग स्वयं की स्वयं के माध्यम से स्वयं तक पहुँचने की यात्रा है’’।
आइए हम सब इस यौगिक यात्रा में शामिल हो जाएं और अपने जीवन को सफल बनाएं।

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