फंसे छात्रों को सुरक्षित निकालना भारत सरकार की पहली प्राथमिकता हो। भारतीय अभिभावक भी विचार करें एस पी मित्तल, अजमेर युद्धग्रस्त यूक्रेन में जो भारतीय छात्र-छात्राएं फंसे हैं, उन्हें सुरक्षित निकालने के लिए कई केंद्रीय मंत्री यूक्रेन की सीमा से लगे पौलेंड, रोमानिया, हंगरी आदि देशों में जा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरण रिजिजू, जनरल वीके सिंह आदि शामिल हैं। यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय बैठक में लिया गया। रूस और यूक्रेन के युद्ध के शुरुआती दौर में भारतीय छात्रों को सुगमता के साथ लाया जा रहा था, लेकिन युद्ध में हारने की स्थिति को देखते हुए यूक्रेन के सैनिक भारतीय छात्रों पर गुस्सा उतार रहे हैं। इससे छात्रों की परेशानियां और बढ़ गई है। अब युद्धग्रस्त क्षेत्रों में छात्रों को निकालना मुश्किल हो रहा है। छात्र-छात्राओं को यूक्रेन के बंकरों में शरण लेनी पड़ रही है। खाने पीने का सामान भी समाप्त हो रहा है। अपनी परेशानियों के वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सरकार पर दबाव भी बनाया जा रहा है। यह सही है कि यूक्रेन, रूस के हमलों का मुकाबला नहीं कर सकता है, लेकिन हार का गुस्सा फंसे छात्रों पर उतारना उचित नहीं है। भारत के 20 हजार युवा यूक्रेन में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं, इससे यूक्रेन को लाभ ही हो रहा है। अब यदि यूक्रेन भारतीय छात्रों को सुरक्षित नहीं रखेगा तो फिर भविष्य में कोई भी युवा पढ़ने के लिए यूक्रेन नहीं जाएगा। भारतीय छात्र-छात्राएं सकुशल भारत लौटे यह जिम्मेदारी यूक्रेन की भी है। भारतीय छात्रों पर गुस्सा उतारने के बजाए यूक्रेन के सैनिकों को छात्रों को सुरक्षित सीमावर्ती देशों में पहुंच जाना चाहिए। इन देशों में भारत सरकार ने अपने जहाज तैया रखे हैं, जो छात्रों को स्वदेश ला रहे हैं। यूक्रेन के युद्धग्रस्त क्षेत्रों से छात्रों को सीमावर्ती देशों तक लाने की मुहिम भी तेज कर दी है, इसलिए केंद्रीय मंत्रियों को संबंधित देशों में भेजा गया है। लेकिन यूक्रेन के जो हालात हैं उसमें छात्रों को निकालना इतना आसान भी नहीं है। रूस ने यूक्रेन पर चौतरफा हमला कर रखा है। यूक्रेन के सैनिक हमलों का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। रूस ने यूक्रेन को जवाबी कार्यवाही करने का मौका ही नहीं दिया है। यूक्रेन पर मिसाइलों के हमलों से पूरे यूक्रेन में दहशत का माहौल है। खुद यूक्रेन के नागरिक बड़ी संख्या में मर रहे हैं या फिर हताहत हो रहे हैं। पावर प्लांट में आग लग जाने के बाद यूक्रेन में बिजली सप्लाई भी ठप हो रही है, ऐसे में छात्रों के मोबाइल फोन चार्ज भी नहीं हो पा रहे है। मोबाइल फोनों के बंद हो जाने से छात्रों की लोकेशन का पता लगाना भी मुश्किल हो रहा है। यूक्रेन में जो हालात है, उनमें भारतीय अभिभावकों को धैर्य रखने की जरुरत हे। केंद्र सरकार अपने स्तर पर कूटनीति भ अपना कर छात्रों को सुरक्षित निकालने का प्रयास कर रही है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की भूमिगत हो गए हैं। यूक्रेन से दूतावास स्तर पर भी संपर्क मुश्किल हो रहा है। ऐसे हालातों पर भारतीय अभिभावकों को भी विचार करना चाहिए। सब जानते हैं कि भारत में जिन छात्रों को प्रवेश नहीं मिलता वे यूक्रेन जैसे देश में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हैं। यह माना कि भारत के मुकाबले में यूक्रेन में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई सस्ती है, लेकिन फिर भी अभिभावकों को अपने बच्चों को सोच समझ कर विदेश भेजना चाहिए।