राजेश विश्नोई
यूक्रेन समस्या ने देश के उदार दक्षिण पंथियों के चेहरे उजागर कर दिए
यूक्रेन समस्या ने देश के उदार दक्षिण पंथियों के चेहरे उजागर कर दिए हैं, इंजीनियरिंग, डॉक्टर्स एवं अन्य तरह की टेक्नीकल शिक्षा के लिए विदेश गये छात्रों की वापसी के लिए किए गए निजी/सरकारी और अन्य प्रयास इनके चेहरे के छिलके उतार रहे हैं,
*कुछ तथ्य है जिन पर गौर करना चाहिए ये भी कि सरकार का छात्रों को वापसी लाने के लिए किया गया प्रयास बेमन से हैं…?
*20000-25000 हजार का टिकिट जिसका नब्बे हजार तक वसूला गया तब दूतावास और भारत सरकार की दखल क्यो नही हुईं,
*जब मामला ज्यादा बढ़ने लगा तो सरकार एडवाइजरी जारी कर रही है, जिससे ज्यादा कंफ्यूजन बच्चों में हुआ है, पहले कहा गया कि पौलेन्ड सीमा पर आये, सैकड़ों किलोमीटर की दूरी लड़कियां हो.. वो भी अनजाने युद्ध ग्रस्त देश में, जहां पल पल सिर पर चिथड़े उड़ने का खतरा हो, बेहद खतरनाक ☠ है,
*अलग – अलग देश की बार्डर पर भारतीय छात्रों के साथ वहां की लोकल आर्मी द्वारा बुरे बर्ताव की खबरे /वीडियो लगातार आ रहे हैं, लड़कियों के साथ ज्यादा बुरे बर्ताव की खबरे मिल रही है, जो बेहद दुखद है,
*अभी भी हजारों छात्र यूक्रेन में फंसे हुए हैं जिनके लिए एडवाइजरी वाले स्थानों तक पहुंच पाना बेहद मुश्किल है, कभी कहा जा रहा है, बार्डर पर ना आये, कभी कहा जा रहा है आये… बेहद अफरा-तफरी है, और डरावना /अफसोसजनक हैं,
*दुनिया की सबसे बड़ी आर्मी जहां बम फेंक रही है… वहां ये कहा जा रहा है हमारे झंडे दिखा दो बम वापस आसमान में ही लटक जायेगा, भारतीय छात्रों पर गिरेगा नही, गोली भी हमारा तिरंगा देख कर फ्रीज हो जायेगी… वाह रे भारतीय विदेश नीति.. आजकल इतने जलवे हैं तेरे..
*तो फिर तमाम यूक्रेनियन को हमारा ध्वज पकड़ा दो सभी सुरक्षित हो जायेंगे..यानि कुछ तो भी तुक्का, वॉटस अप यूनिवर्सिटी पर फैलाते रहोगे और हजारों छात्रों की जान जोखिम में डालते रहोगे,
*यहां तथाकथित दक्षिण पंथी प्रगतिशील जिनमें माने जाने वाले लेखकों की टोली, NGOS में जिंदगी गुजारने वाले समाज सुधारक, हजारों छात्रों को जिंदगी भर ज्ञान बघारने वाले… छात्रों को फ्री लाने के सरकार के घोषणा के बाद अन्न-जल छोड़े बैठे हुए हैं, इनके नये रगड़े हैं, कह रहे हैं कि ये सब डॉक्टर इंजीनियर ही फर्जी डिग्री धारी है, एक नामी लेखिका साहिबा कह रही है कि नाकामयाब औलादें वहां सस्ती डिग्री पाने गयी है,
*और भी बहुत कुछ बका जा रहा है,अफसोसजनक हैं कि ये सब बेहद बुध्दिजीवियों की गिनती में आते हैं, जिनका सामाजिक – सरोकार का स्कोरिंग हाई हैं, (अब जीरो)
*मेरी समझ ये बनी हैं कि ये प्रोपेगैंडा एक तरफ़ा नही है बल्कि दक्षिण पंथी विचार धारा के मूल में ही है, और मध्यम वर्गीय या हाशिये पर रहे समुदाय के बच्चों की डिग्रियां तक को इतना बदनाम करदो कि लाखों खर्च करके भारत आये तो घृणा के साथ इनको देखा जाये,
*3000 करोड़ की मूर्ति का विरोध इन्होंने नही किया, उस पैसे से दर्जनों यूनिवर्सिटी बन जाती या शानदार शैक्षणिक कैम्पस बनाये जा सकते थे, तो हजारों बच्चों को विदेश जाने की जरूरत ही कहा पड़ती,
*US, UK, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया से शिक्षा के लिए बच्चे हमारे यहां भूलकर भी नही आते हैं,
*अफ्रीकन देशों के बच्चे हमारी भोपाल की बरकत उल्लाह यूनिवर्सिटी में दर्जनों मिल जायेंगे..
*मेरी गुजारिश प्रगतिशीलों से भी है कि थोड़े गौर से देखिए- समझिए कि इन छात्रों में भी सत्तर फीसदी वे छात्र हैं जो वाकई में भारत के संस्थानों में करोड़ों व्यय करके शिक्षा नही पा सकतें हैं.. जितना यहां डोनेशन देना है उतने में वहां पढ सकतें हैं,
*विदेश में पढ रहे हैं ये हौव्वा आपके मन में हैं, लेकिन अधिकांश लोग अमीर नही है किसान, छोटे व्यापारी, शिक्षक, और सरकारी नौकरी वाले वे लोग जिनकी तनख्वाह कम ही है..
*यानि इन वर्गो को ये अधिकार नही कि इधर उधर से जुगाड़ करके कर्ज लेकर, जमीन जेवरात बेच बाच कर अपने बच्चों को डॉक्टर्स, इंजीनियरिंग और प्रोफेशनल डिग्री के लिए मदद करे.. लेकिन जब देखते हैं कि यहां पढ़ने के लिए हमारी औकात नही है तब विदेश भेजने का प्लान किया जाता है.. कभी उन परिवारों से जाकर पूछिये कि बच्चों की जिंदगी बनाने के खातिर आपने क्या क्या खो डाला है…
*इस देश की शिक्षा नीति ने लाखों प्रतिभाशाली छात्रों को रोड़ पर खड़े होकर चाय बेचने पर मजबूर कर दिया है, क्योंकि इतना मंहगी शिक्षा की.. अफोर्डेबल नही है,
*कुछ सीटें हैं जो बेहद प्रतिभाशाली के लिए कोटा (कोटा यानि तय हैं कि छलनी लग कर आया हुआ बोल्ड अनाज) के निमित्त रखी जाती है, हर बच्चा प्रतिभाशाली क्यों नही बन सकता है..
*मेरी पत्नी की कैंसर से मृत्यु के साल भर बाद में इस स्थिति में नहीं था कि बेटी की मेडिकल पढाई करा सकूं,
*मैंने खुद अपनी बेटी की शिक्षा के लिए समुदाय से मदद ली है, पैतृक जमीन बेची हैं, और पिछ्ले चार सालों से खर्च हो ही रहा है, दूसरा बेटा भी मेडिकल की पढ़ाई देश में कर रहा है, बेटी विदेश में बेटा देश में दोनों मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं..
- बुध्दिजीवी बन जाना भाषण पेलना आसान है… बच्चों को बडा करके फिर उन्हें उचित शिक्षा दिलाना बेहद मुश्किल होता जा रहा है,
कुछ लोग सुझाव दे रहे हैं कि मुश्किल में उस देश को क्यों छोड़ रहे हैं.. वहीं रहे.. उन बावलो के लिए मॉफी बस मॉफी.. वे समझ पाते काश..!
यूक्रेन के लोग पलायन में अपने पालतू श्वान तक ले साथ ले जा रहे हैं.. यानि स्थिति इतनी भयावह हैं..
ज्ञान मत पेलो महाराज बच्चों को देश आ जाने दीजिए बस जैसे भी हो.. वो हमारे बेटे हैं.. हमारी बेटियां हैं.. 🙏🙏
(उन सभी साथियों एवं हमारे शुभ चिंतकों का बेहद शुक्रिया जिन्होंने पिछले सप्ताह भर से लगातार मुझे और बेटी को भी कॉल करके चिंता जताई है, बिटिया किरगिजस्तान में हैं, यूक्रेन से दूर हैं लेकिन रसिया के करीब का देश हैं लेकिन यहां अभी चिंता जैसी स्थिति बिल्कुल नही हैं )
राजेश विश्नोई