सुसंस्कृति परिहार
जब आज दुनिया में पूंजीवादी फासिस्ट ताकतें गरीब गुरबे के तमाम हक हथियाने में लगीं है अमीर गरीब के बीच इतनी गहराई निरंतर बढती जा रही है कि लगता है कि अब दुनिया फिर सामंती विचार की ओर तेजी से बढ़ रही है जहां राजा और उसके गिने चुने कारंदों के अलावा सभी गुलाम होते हैं वे उन्हें इस हालत में रखते थे वे ज़िंदा रहें ताकि उनके काम ना रुकें। पूंजीवादी ताकतों का सबसे बड़ा काम आज ये हो रहा है कि वे दुनिया के सब प्राकृतिक संसाधनों पर अपना एकाधिकार चाहते हैं इसके लिए ईराक अफगानिस्तान या यूक्रेन के युद्ध से आसानी से देखा समझा जा सकता है उन्हें वहां की रियाया से कुछ मतलब नहीं।सीधी बात यह है कि अब दुनिया में ग़रीबों की हक की लड़ाई का तिलिस्म लिए पूंजीवादी मनोवृत्ति के देश मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रसंघ,विश्वबैंक जैसी संस्थाओं को अपने लिए प्रयोग करते हैं।पहले लोगों पर ज़ुल्म के नाम पर युद्ध, फिर हथियार की बिक्री,ध्वंस और फिर नवनिर्माण के नाम पर लोकप्रियता भी हासिल करते हैं।ये बात आम इंसान की समझ में नहीं आती । अफ़सोस इस बात का है कि यह सब लोकतांत्रिक चादर ओढ़े देशों में ही बड़े पैमाने पर हो रहा है।
दूसरी बात हमारे भारत देश में भी जो कथित लोकतांत्रिक देश है, में भी आजकल चुनाव के दरम्यां हिंदू मुस्लिम करने की एक परम्परा बाबरी ढांचा ध्वस्त करने के बाद से ज़ोर पकड़ती जा रही है जिसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुषंगी संगठनों के लोग बेरोजगारी और मंहगाई से त्रस्त लोगों का ध्यान हटाने उन्हें जय श्री राम नारा देकर खुले आम मुसलमानों के कत्लेआम की बात करते हैं।कैसा लोकतंत्र है हमारे देश में जब गोली मारो—को नारा लगाकर दंगा फैलाने वाला केन्द्र में सूचना प्रसारण मंत्रालय का उत्तरदायित्व संभालता है।कभी गाय माता ,कभी भारत माता , वन्दे मातरम , हिजाब,कभी सड़क पर नमाज ,कभी अति क्रमण ,कभी पत्थर बाजी के नाम पर आग सुलगाई जाती है बराबर सरकार की रुझान पर।
हाल में रामनवमी पर्व पर मध्यप्रदेश के खरगौन और दिल्ली जहांगीर पुरी में जो कुछ हुआ वह संघ द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम ही है क्योंकि जो पकड़े गए हैं वे संघी तथा भाजपाई ही हैं।ये लोग सी ए ए आंदोलन हो जे एन यू मामला हो हर जगह कभी बुर्का की ओट में कभी देश विरोधी नारे लगाकर एक विशिष्ट कौम को बदनाम कर देश का भाईचारा और गंगा जमुनी तहज़ीब को नाश करने आमादा हैं तथा 2024 में येन केन प्रकारेण देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना देख रहे हैं। मंहगाई , बेरोजगारी के बोझ तले टूटे हुए लोग धर्म के नशे में डूबते जा रहे हैं।उनकी तमाम झूठ सच लगती हैं। हिंदू ख़तरे में है जैसी खुमारी में आम आदमी भूल रहा है वह कहां जा पहुंचा है जहां से उसके सारे अधिकार खत्म किए जा रहे हैं ।वाट्स ऐप यूनिवर्सिटी का गुरु ज्ञान बराबर परोस रही है,बड़े विशाल मंदिर और मूर्तियां लोगों को तसल्ली दे रही हैं। शिक्षा की रीढ़ बुरी तरह तोड़ दी गई है। निजीकरण ने बेरोजगार और उनमें काम कर रहे लोगों के शोषण के दरवाजे खोल रखे हैं। बैंकों से विश्वास उठ गया है। साहूकारों का जाल फैल रहा है।हम दो हमारे दो ही देश में फल फूल रहे हैं।कोरोना में लाखों की जानें गईं लेकिन कारपोरेट के लिए वह आज भी मुनाफे का आधार बना हुआ है। सरकार ने भी इसके नाम पर विदेशी और देशी धन का बारा न्यारा किया ।
तो ये कुछ मसले हैं जिन पर चर्चा, विरोध-प्रदर्शन, जनांदोलनों और लेखन पर पहरे हैं ऐसी संगीन स्थितियों में इप्टा भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की ढाई आखर प्रेम यात्रा का आयोजन बहुत महत्वपूर्ण और ज़रूरी पहल है। आजादी की पच्चत्तरवीं वर्ष गांठ के अवसर पर निकाली जा रही इस सांस्कृतिक यात्रा का प्रारंभ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से हुआ। यात्रा में शामिल हरनाम सिंह बताते हैं ‘इप्टा की इस पहल से उन जन संगठनों में नए जोश का संचार हुआ है, जो निरंतर बढ़ रहे सामाजिक विभाजन से बेचैन थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे अपने प्रतिरोध को कैसे स्वर दें।इप्टा ने कबीर के प्रेम की विरासत को इस यात्रा का लक्ष्य बनाया है। मध्ययुगीन विद्रोही कवि कबीर के दोहे *ढाई आखर प्रेम* को ही इप्टा ने अपना संदेश निर्धारित किया है। आज के समय में जब धर्म, जाति, लिंग, आधारित नफरतों का सैलाब बह रहा है ऐसे में कबीर प्रतीक रूप में इस यात्रा में प्रेम के प्रवक्ता बने हुए हैं। वर्तमान में देश को मिली औपनिवेशिक आजादी के लिए चलाए गए स्वतंत्रता संग्राम से उपजे मूल्यों में केवल प्रेम ही नहीं, आपसी भाईचारा, सामाजिक सौहार्द, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार सभी खतरे में हैं। घ्रृणा के खिलाफ लंबी लड़ाई में कबीर ही नहीं अपने समय के तमाम संत नानक, दादू, रैदास, नामदेव, सेना,धन्ना, पीपा तुलसीदास, इस अभियान के सहयात्री है। दूसरी ओर अंबेडकर, पेरियार, भगत सिंह,अशफाकउल्ला, गांधी से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के अनेक नायक नायिकाएं इस यात्रा के प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं। यात्रा के हर पड़ाव में स्थानीय नायक उनके गीत उनके बलिदानों की स्मृतियां दोहराई जा रही है।इस यात्रा में एक पात्र भी रखा गया है, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के स्थलों की मिट्टी एकत्र की जा रही है। यात्रा की समाप्ति पर इसी मिट्टी से सद्भावना का एक पौधा रोपा जाएगा।’9 अप्रैल को प्रगतिशील लेखक संघ के स्थापना दिवस से प्रगतिशील विचारों के साथ रायपुर से शुरू हुई यह ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों, कस्बों, गांवों से होते हुए 15 मई को छतरपुर के रास्ते मध्य प्रदेश में प्रवेश करेगी और टीकमगढ़, चंदेरी, अशोकनगर, गुना से होते हुए 19 मई को भोपाल पहुंचेगी। 19 और 20 मई को भोपाल समेत आसपास के विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम होंगे। भोपाल से 20 मई को यात्रा इंदौर के लिए निकलेगी, जहां 22 मई को समापन कार्यक्रम होगा।
5 राज्यों में 250 से अधिक स्थानों पर कार्यक्रमों के साथइस 45 दिवसीय यात्रा के दौरान प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, दलित लेखक संघ, जन नाट्य मंच समेत अन्य संगठनों, समूहों के सहयोग विभिन्न स्थानों पर गीत, संगीत, नाटक, फिल्म, किस्सागोई के तमाम कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
यात्रा में इप्टा के कलाकार अपने प्रतिनिधि गीत ढाई आखर प्रेम के, पढ़ने और पढ़ाने आए हैं। हम भारत से नफरत का हर दाग मिटाने आए हैं। गाते हुए चल रहे हैं। इस गीत को वर्षा, विनोद कोष्टी, मणिमय मुखर्जी, राजेश श्रीवास्तव गाते हैं। कई बार अपनी डफली लेकर निसार अली भी गायन में शामिल हो जाते हैं। इसस्थाई रूप से इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश वेदा के नेतृत्व में झारखंड इप्टा के सचिव शैलेंद्र कुमार, मणिमय मुखर्जी, राजेश श्रीवास्तव, जेएनयू इप्टा की वर्षा, विनोद कोष्ठी, रंगकर्मी निसार अली, व्यंग्य चित्रकार कुश के अलावा यात्रा की डायरी लिखने वाले म्रगेन्द्र सिंह शामिल हैं। इप्टा की इस पहल का स्वागत।कंटकाकीर्ण पथ परयह प्रयास महत्वपूर्ण और बेहद बेहतर है। शुभकामनाएं।