पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह के आने से हर रैली में खर्च होते हैं करोड़ों रुपए*
कर्ज में डूबा प्रदेश, भव्यता पर सरकार ने खर्च कर दिये करोड़ों
आदिवासी और ओबीसी को रिझाने से पहले बीजेपी करे गुटबाजी से परहेज
विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रैली के साथ भारतीय जनता पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों का शंखनाद कर दिया है। पिछले 10 महीनों पर गौर करें तो भारतीय जनता पार्टी का झुकाव आदिवासी वोटों की तरफ बहुत ज्यादा रहा है। यही वजह है कि बीते 10 महीने के भीतर देश के शीर्षस्थ नेता तीन बार मध्यप्रदेश में आदिवासियों की रैली को संबोधित कर चुके हैं। 18 सितंबर को जबलपुर में अमित शाह, 15 नवंबर को भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 22 अप्रैल को भोपाल में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की दूसरी आदिवासी समुदाय के लिए रैली इस बात की ओर से साफ इशारा करती है कि इस बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए अभी से जुट गई है।
लेकिन ऐसे आयोजनों का क्या फायदा
देखा जाये तो आदिवासी समुदाय के लोग भी इस धरती का हिस्सा हैं। उन्हें भी समाज में पूरे हक के साथ जीने का अधिकार है। लेकिन शिवराज सरकार द्वारा आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए जो तरकीब अपनाई जा रही है वो समझ के परे है। लगातार तीन बड़ी रैलियों के आयोजन से एक सवाल जो उठता है वह यह कि जब प्रदेश सरकार आदिवासियों बंधुओं को अपना बताती है, उनके हितों को लेकर चिंतित है तो फिर शिवराज सरकार उनके इलाके में जाकर आयोजन करने से क्यों कतराती है। आखिर हर बार क्यों आदिवासियों को राजधानी बुलाकर करोड़ों रुपए खर्च किये जाते हैं। चुनावी कार्यक्रम को राज्य सरकार शासन का कार्यक्रम बनाकर क्यों करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। भाजपा पार्टी फंड से क्यों नहीं इस तरह के आयोजन करती। अगर सरकर आदिवासी इलाकों में जाकर आयोजन करें तो इससे न सिर्फ उन क्षेत्रों में विकास होगा बल्कि स्थानीय जनता के भीतर सरकार के प्रति एक विश्वास और अपनत्व का भाव भी पैदा होगा।
तेंदूपत्ता पर बोनस तो हर साल मिलता है
सोचने वाली बात है कि तेंदूपत्ता संग्राहकों को तो हर साल बोनस मिलता है। यह आदिवासियों का हक भी है। फिर सरकार इसकी वाहवाही लूटने का क्या जरूरत है। इससे तो यही लगता है कि बोनस बांटकर सरकार बताना चाहती है कि उसने कोई सौगात दी है। इस आयोजन को भव्य करने की क्या जरूरत थी।
एक घंटे के लिए करोड़ों फूंके
भारतीय जनता पार्टी की सरकार आयोजनों की सरकार बन गई है। इस सरकार में सबसे ज्यादा ध्यान काम से ज्यादा ब्रांडिंग पर दिया जाता है। यही वजह है कि आज पूरा शहर फ्लैक्स, होर्डिंग्स से पटा पड़ा हुआ है। गृहमंत्री अमित शाह मुख्य रूप से वनवासी तेंदूपत्ता संग्राहक सम्मेलन के लिए आए। वे इस कार्यक्रम में लगभग एक घंटे रूके। लेकिन शाह के आने की योजना से लेकर कार्यक्रम के समापन और जनता को उनके स्थान पर छोड़ने तक हर चीज का हिसाब लगाया जाये तो डेढ़ घंटे आगमन के लिए शिवराज सरकार ने करोड़ों रुपए फूंक दिए। एक तरफ आम आदमी मंहगाई की चपेट में है, उसे राहत पहुंचाने के बजाय प्रदेश सरकार इस तरह के आयोजनों में करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। जबकि देखा जाए तो अगर यह सरकार इसी पैसे का सही उपयोग करती तो इन्हीं गरीबों के घर रोशन हो जाते, युवाओं को रोजगार मिलता।
नरेंद्र मोदी के समय उड़ाए थे 55 करोड़
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 नवंबर को भोपाल पहुंचे थे। इस दौरे के दौरान प्रदेश सरकार ने 55 करोड़ रुपए से अधिक उड़ा दिये थे। ठीक इसी तरह इस बार भी शिवराज सरकार ने अमित शाह के आगमन में आयोजित समारोह में ब्रांडिंग, परिवहन, आयोजन स्थल, खान-पान सहित अन्य मदों में लगभग 30 करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर दी। यानि कि लगभग 10 महीने में सरकार ने अपनी छवि चमकाने के लिए जनता के 80 करोड़ रुपए से अधिक फूंक दिये। जबकि यही कार्यक्रम अगर सरकार स्थानीय इलाकों में जाकर करती तो खर्चा भी कम होता और कार्यक्रम आयोजित करने की सार्थकता साबित होती।
कर्ज में डूबा है आम आदमी
शिवराज सरकार आयोजनों में करोड़ों रुपए खर्च करने का नतीजा ही है कि प्रदेश का हर नागरिक आज कर्ज में डूबा हुआ है। प्रदेश में बीते एक साल में हर बच्चे, महिला और पुरुष पर 04 हजार रुपए कर्ज बढ़ा है। 2018-19 में प्रत्येक व्यक्ति पर औसतन 25 हजार रुपए का कर्ज था, जो 2019-2020 यानी 31 मार्च को बढ़कर 29 हजार रुपए हो गया। साथ ही प्रदेश पर कुल कर्ज 02 लाख 10 हजार करोड़ रुपए हो जाएगा। अगर बीते तीन सालों से यही स्थिति बन रही है। वित्त विभाग का अनुमान है कि राज्य की वित्तीय स्थिति को देखते हुए पंद्रहवें वित्त आयोग में राजकोषीय उत्तरादायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम एक्ट 2005) में 1% कर्ज लेने की सीमा बढ़ सकती है। यानी अभी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 3.49 प्रतिशत कर्ज लिया जा सकता है जो अगले साल बढ़कर 4.5 प्रतिशत हो जाएगा। यानी अभी सरकार हर साल 26,888 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले सकती है, एक प्रतिशत सीमा बढ़ने से 09 हजार करोड़ रुपए ज्यादा कर्ज लिया जा सकता है।
रोजगार के लिए कोई फैसला नहीं
आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी शिवराज सरकार ने आदिवासियों के बड़े-बड़े आय़ोजन करके उन्हें वोट के लिए तो लुभा लिया, लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि आखिर आदिवासी भाई करें क्या। उनके बेटा-बेटियों को रोजगार से जोड़ने के लिए सरकार ने कोई बड़े कदम नहीं उठाए। आदिवासी अपने गांव घर में बैठकर केवल समय खराब करने को मजबूर हैं। मदिरा पीकर अपना शरीर और परिवार की आर्थिक स्थिति को बिगाड़ने में जुटा हुआ है। आदिवासियों को मिले बोनस का सदुपयोग किस तरह होगा यही भी चिंतनीय है क्योंकि प्रदेश सरकार ने नई शराब नीति ही ऐसी बनाई है कि लोगों को शराब सस्ती मिलने लगी है। मैंने आज के कार्यक्रम में जाकर यहां पर आये आदिवासियों से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि नई शराब नीति से अब गांव-गांव में शराब मिलने लगी है। इससे हमारी समाज पर बुरा असर पड़ने लगा है। अगर सही मायने में यह सरकार कुछ आदिवासियों के लिए करना भी चाहती है तो उन्हें रोजगार से जोड़ने का कार्य करें, ताकि उनका और उनके परिवार का कुछ भला हो सके।
भरे मंच से गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने किया सीएम शिवराज का तिरस्कार
गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने खींचा मंत्री अरविंद भदौरिया का कुर्ता
जंबूरी मैदान में हुए आयोजन में मंच पर एक वाक्या भी दिलचस्प हुआ। दरअसल मंच से सीएम शिवराज सिंह चौहान का भाषण चल रहा था। शिवराज प्रदेश सरकार की योजनाओं के विषय पर बोल रहे थे। चूंकि मंच पर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और अरविंद भदौरिया भी मौजूद थे। भाषण के दौरान किसी बात को लेकर अरविंद भदौरिया ताली बजाने के लिए अपनी कुर्सी से खड़े होने लगे। तभी पास में बैठे नरोत्तम मिश्रा ने फटाक से उनका कुर्ता पीछे से खींचते हुए बिठा दिया। इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि इस समय बीजेपी और सरकार के बीच ठीक नहीं चल रहा है। इस सीएम का तिरस्कार करना नरोत्तम मिश्रा को अपनी खीज को प्रदर्शित करना चाह रहे थे। सीएम शिवराज को भी ऐसे सार्वजनिक मंच से होते अपमान पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।