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माध्यम सामाजिक है?

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शशिकांत गुप्ते

सामाजिक माध्यम सरलता समझने के लिए, Social Media.
सामाजिक माध्यम मानवों के लिए है,कारण कहा जाता है कि,
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं। समाज में अलग-थलग रहना उसके लिए न तो उचित है और ना ही संभव है। समाज में रहते हुए समाज को अधिक से अधिक स्वस्थ बनाने में सहायक हो सके, इसी में उसके जीवन की उपादेयता है। स्वस्थ व्यक्तियों से ही स्वस्थ समाज का निमार्ण होता है।
यहाँ स्वस्थ से तात्पर्य शारीरिक सुदृढ़ता ही नहीं है,मानव को मानसिक रूप से भी पूर्णतया स्वस्थ होना चाहिए।
यदि मनुष्य मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होगा तो,जीवन के हरक्षेत्र के लिए ये कहावत सटीक होगी। नो दिन चले अढ़ाई कोस
कोस शब्द का अर्थ दूरी नापने का पैमाना। एक कोस बराबर,दो मील, दो मील बराबर 3.12 किलोमीटर।
उक्त कहावत का वाक्य प्रयोग
सोशल मीडिया में इसतरह किया जा रहा है।
एक पक्ष का कहना है कि, सन 1947 से सन 2014 तक प्रगति की गति नो दिन चले अढ़ाई कोस ही थी।
विपरीत पक्ष का कहना है कि, पूर्व में गति अढ़ाई कोस तो थी अब तो गति थम ही गई है।
इस तरह नो दिन और अढ़ाई कोस वाली कहावत का उपयोग दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे कोसने के लिए कर रहें हैं। इस कहावत का सोशल मीडिया का दुरूपयोग हो रहा है।
कोसना शब्द का अर्थ होता है। श्राप देना,बद्दुआ देना, पानी पी पी कर कोसना।
सोशल मीडिया पर कोसना एक फैशन हो गया है। सोशल मीडिया में सामाजिकता कितने कोसों दूर है यह अहम प्रश्न है।
सोशल मीडिया पर Immunity बढाने के सैकड़ों नुस्खों के संदेश मिलेंगे। सवाल तो यह है कि समाज में Humanity कब आएगी?
सोशल मीडिया का सबसे बड़ा लाभ उन लोगों के लिए है जो मोबाइल में मेसेज फॉरवर्ड करना जानतें हैं। बगैर पढ़े, बगैर जाने की मेसेज झूठा है या सच्चा है,बगैर जाने मेसेज फॉरवर्ड करने से सामाजिक महौल खराब हो सकता है। फॉरवर्ड कर देतें हैं।
एक फैशनबल संदेश बहुत जोरशोर चल रहा है।
सन 2014 के पूर्व घरेलू उपयोग में आने वाली गैस के रिक्त सिलेंडर लेकर सार्वजनिक स्थानों पर कुच्चीपुड़ी और भरतनाट्यम नृत्य किया जाता था। अब हम इतने उदारमना हो गएं हैं कि हम हमें डायन डार्लिंग लगने लगी है।
जो भी कुछ गलत हुआ,वह सन 1947 में ही हुआ? यह संदेश फॉरवर्ड करते समय हम भूल जातें हैं कि 15 अगस्त 1947 के दिन अपना देश भारत स्वतंत्र हुआ।
एक संदेश यह भी बहुत प्रचारित हुआ है कि, सन 1947 से सन 2014 तक का इतिहास शून्य है?
सन 1947 के पूर्व के इतिहास का जिक्र सोशल मीडिया में होना चाहिए वह नहीं हो रहा है।
असंख्य देश भक्तों ने अपनी शहादत दी, फिरंगियों की तानाशाही, अत्याचार,अन्याय का प्रतिकार किया।
इतिहास में यह लिखा है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कईं बार जेल गए। महात्मा गांधीजी ने सत्य अहिंसा का उपदेश दिया।
असंख्य देशभक्तों ने स्वतंत्रत संग्राम में सक्रिय योगदान दिया।
स्वतंत्रता सैनानियों को भूल कर सोशल मीडिया में हम राष्ट्रवादी बन रहें हैं।
अब हम स्वतंत्र है। इक्कीसवी सदी में हमारे पास अत्याधुनिक तकनीक है।
मोबाइल है। मोबाइल द्वारा संदेशों का आदान प्रदान करने के लिए कईं स्रोत हैं। सबसे बड़ा स्रोत सोशल मीडिया है।
सोशल मीडिया में सक्रिय लोगों के लिए एक अहम संदेश है।
यह संदेश प्रख्यात शायर वसीम बरेलवीजी के इस शेर के माध्यम से है।
अपनी अपनी भीड़ से फुर्सत मिले तो सोचना
जिंदगी की दौड़ में हम कितने पीछे रह गए
बरेलवी जी का एक और शेर प्रासंगिक है।
बात बढ़ जाती हो दोनों का खोटा होता सफर
मै पीछे हट गया और उसको रास्ता दे दिया

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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