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मेरा _ख़त_पतिदेव_के_नाम

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(पतिदेव! आपमें देव जैसा कुछ नहीं : पति हो सकते हो, परमेश्वर नहीं)
..✍🏾प्रिया सिंह

समझ में नहीं आ रहा है कि
आपको पति देव कहूँ या नहीं l
क्योंकि देव जैसा कुछ मिला ही नहीं आप में l

जब आपसे विवाह के बन्धन में बन्ध कर आयी थी
तो नहीं सोचा था कि कभी ऐसा कोई खत लिखूँगी l
अब तक जो भी लिखा था
अपने प्यार की चासनी में डूबा कर लिखा था लिए

पर आपने मेरे प्यार की कभी कोई क़द्र नहीं की
या यूँ कह लीजिये आपको एहसास ही नहीं हुआ कि
इस प्यार की भी एक क़ीमत है l

आप जानते हैं कि
खून के रिश्ते अपने आप बन्धन में बान्ध देते हैं
पर यह शादी के बाद बन्धे रिश्ते हम कमाते हैं लिए

हैरान हो गये ना आप कमाते हैं कैसे जी,
ज़नाब सिर्फ पैसे नहीं कमाये जाते
जो आप आज तक कर रहे हैं l
मैंने आपके घर में आने के बाद
अपने प्यार से सब रिश्ते कमायें हैं l
आपके भाई मेरे देवर आपकी बहन मेरी ननद और
आपके माता-पिता को अपना माना l
मुझमें और ख़ुद में फर्क़ देखना चाहते हैं लिए

तो सबूत आपकी अपनी जबान में है l
मैंने आज तक नहीं कहा आपके माता-पिता
आपके भाई-बहन l
पर इतने वर्षों के बाद भी
तुम्हारे पापा तुम्हारी मम्मी तुम्हारे भाई तुम्हारी बहन लिए

आपके भाई बहनों के बच्चों को अपना माना l
क्या कभी आपने भी यह प्यार मेरे मायके में जताया l
मेरे तो रिश्ते बन गये l
खट्टे-मीठे ही सही पर आपका क्या ?

मैंने इन्सान से शादी की थी l
ATM मशीन से नहीं l
व्यर्थ है मेरे लिए यह रूपये
जिनमें मुझे आपका साथ नहीं मिलताl
ऐसा नहीं कि आप प्यार की अनुभूति से अनभिज्ञ हैं l
आपको भी उतना ही प्यार था पर खो गया कहीं लिए.

भूल नहीं पाती कितना मान दिया था
आपने मेरे अस्तित्व को l
पर बाद में उसी अस्तित्व को ख़त्म करने में भी
आपकी ही भूमिका रही l
बच्चों के जन्म हो या अस्पताल के चक्कर
हर जगह का सफ़र अकेले तय किया लिए

अब आप कहेगें अकेले क्यों मम्मी या फिर
तुम्हारी मम्मी हमेशा साथ रहे l
सच है आपकी बात पर जीवन में मिला हर रिश्ता
धुमिल पड़ जाता है l
शादी के बाद मेरे पहले सच्चे मित्र भी अब आप ही थे l

जिनसे बिना डरे दिल की बात कह दूँ,
वह भी आप ही थे l
आपके मन का पता नहीं पर आप मेरे जीवनसाथी हैं
तो हर जगह आपको ही तलाश करती हूँ l
पर नहीं पाती मैं अब उस देव को ना पति को l
आपने हर बार मेरे ही विश्वास की धज्जियाँ उड़ायी लिए

कहते हैं स्त्री दस बातें बर्दाश्त करती है तो
पुरुष एक करता है सही है l
मैंने तो सौ बातें बर्दाश्त की पर आपने एक भी नहीं l
जब आपने मुझे अपशब्द कहे मैंने बर्दाश्त किया
पर अपना रोष तब भी प्रकट किया कि
आप समझ जायें वह व्यवहार उचित नहीं लिए

ज़ब जब आपने मेरे माता-पिता को अपशब्द कहे,
मुझ पर नाराज होते हुए अपनी ही गलती को छिपाते हुए
तो वह मुझे बर्दाश्त नहीं l
वह बेचारे तो वहाँ थे भी नहीं लिए

सच बतलाईये अगर मै आपके माता-पिता को
एक भी अपशब्द तो दूर कुछ गलत बोल दूँ तो
आप तलाक़ तक सोच लेगें बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे लिए

पर किस प्रेम और आदर की उम्मीद करते
आप आते हैं रोज मेरे सामने l
हाँ पति हो मेरे पर परमेश्वर नहीं हो अबl
आपका दिया ज़ख्म मेरे दिल का नासूर है l
मुझे आपके चेहरे में सिर्फ़ वह व्यक्ति दिखता है
अब जिसने मेरी और मेरे माता-पिता की बेइज्जती की है l
नहीं मुस्कुरा पाती अब लिए

एक छोटा सा शब्द है SORRY
दिया तो अँग्रेज़ों ने है पर कमाल का हैl
एक बार दिल से ज़बान पर इक़रार किया होता कि
हो गयी मुझसे गलती अपने गुस्से के आवेश में l
आइन्दा ख़्याल रखूँगा l

पर कैसे कहें ?
आपका पुरूषार्थ रोकता है ना l
पौरूष गलती के इनक़ार करने में नहीं
अपनी गलती मानने में है l
आपने क्या-क्या खोया आप ख़ुद परखें पर गौर करना,
अपने कमाये रिश्ते आज भी दिल से निभा रही हूँ l
जानते हैं क्यों ?

क्योंकि मेरी माँ ने सिखाया था
पति को तो औरत अपना मानती है
लेकिन रिश्ते वही निभा पाती है
जो उसके घरवालों को भी अपना ले l
सबसे प्यार करना खूब इज्ज़त करना पर
ख़ुद की भी इज्ज़त करना l
ख़ुद से भी प्यार करना लिए

बस इसलिए अब और एक अपशब्द बर्दाश्त नहीं मुझे l
आपको कोई अधिकार नहीं कि
आप मेरी या मेरे परिवार का अपमान करें l
यही कारण है अब अपने मन को आहत नहीं करूँगी l
क्योंकि दिल आपको दिया था l
जो आप सम्भाल ना सके l
सिर्फ पति हो पति परमेश्वर नहीं..!!
(चेतना विकास मिशन)

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