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उद्धव ठाकरे अब बिना सेना के सेनापति

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एस पी मित्तल, अजमेर

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को भले ही एनसीपी और कांग्रेस का समर्थन अभी भी मिला हुआ हो, लेकिन 55 में से मात्र 13 विधायक ही उनके पास रह गए हैं। जो विधायक उद्धव के सामने बोलने की हिम्मत नहीं करते थे, वे विधायक ही उनके नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं। लेकिन उद्धव को लगता है कि वे शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं। यही वजह है कि उद्धव ने सीएम का सरकारी आवास तो खाली कर दिया है, लेकिन सीएम पद से इस्तीफा नहीं दिया है। हालांकि राजनीति में नैतिकता की बात करना बेमानी है, लेकिन महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार ने जिस सख्त रवैए से राजनीति की, उसे देखते हुए उद्धव ठाकरे से नैतिकता की थोड़ी उम्मीद तो की जा रही है। गुवाहाटी में बैठे शिवसेना के 38 विधायकों ने उद्धव को अपना नेता मानने से इंकार कर दिया है, लेकिन फिर भी उद्धव मुख्यमंत्री के पद का मोह नहीं छोड़ रहे हैं। हो सकता है कि शरद पवार के झांसे में आकर उद्धव ठाकरे विधानसभा उपाध्रूख की मदद से एकनाथ शिंदे के समर्थक वाले शिवसेना के 13 विधायकों को अयोग्य घोषित करवा दें। लेकिन यह काम उद्धव ठाकरे के लिए आत्मघाती साबित होगा। शरद पवार के झांसे में आने के बजाए उद्धव को अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप देना चाहिए। उद्धव खुद बताएं कि मात्र 13 विधायकों के समर्थन से मुख्यमंत्री पद पर बना रहा जा सकता है? जब शिवसेना के विधायक ही उन्हें अपना नेता नहीं मान रहे हैं, तब एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से कितने दिन मुख्यमंत्री रह सकते हैं? उद्धव माने या नहीं, लेकिन शिवसेना को कमजोर कर कांग्रेस और एनसीपी अपने मकसद में कामयाब हो रही हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना और ठाकरे परिवार का जो रौब रुतबा था, वह बेहद कमजोर हो गया है। उद्धव जितने दिन सीएम की कुर्सी पर रहेंगे, उतना ही शिवसेना कमजोर होगी। उद्धव को उनके पिता बाला साहब ठाकरे ने जो विरासत सौंपी है, उसे बचाने की जरूरत है। शिवसेना पर ठाकरे परिवार का दबदबा बना रहे, इसलिए बाला साहब ने कभी सरकारी पद स्वीकार नहीं किया। यह बाला साहब का रुतबा ही था कि मनोहर जोशी जैसे शिवसैनिक को पहले मुख्यमंत्री बनवाया और लोकसभा का अध्यक्ष। बाला साहब ने जिसे चाहा उसे महाराष्ट्र की गद्दी सौंपी। सीएम की कुर्सी पर बैठने वाले शिव सैनिकों को भी पता था कि बाला साहब की मेहरबानी से ही कुर्सी मिली है। यानी मुख्यमंत्री न रहते हुए भी बाला साहब सरकार के सर्वेसर्वा थे। बाला साहब के निर्णय को चुनौती देने की हिम्मत किसी में नहीं थी, लेकिन आज उद्धव ठाकरे किस लाचारी में खड़े हैं, उसे पूरा देश देख रहा है। जिन राजनीतिक दलों के खिलाफ बाला साहब ने शिवसेना का गठन किया, उन्हीं विरोधी दलों के सामने उद्धव ठाकरे लाचारी दिखा रहे हैं। आखिर बाला साहब वाला वह रुतबा कहां चला गया?

देशद्रोह का मुकदमा:

जुलाई 2020 में डिप्टी सीएम सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 विधायक जयपुर से दिल्ली चले गए थे, तब राजस्थान में इन सभी विधायकों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था। इधर पुलिस में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ तो उधर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने इन विधायकों को कारण बताओं नोटिस जारी कर दिए। दिल्ली जाने वाले कांग्रेसी विधायकों को नियंत्रण में लाने के लिए जो कुछ भी किया जाना चाहिए था, वह अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार ने किया। 24 जून को मुंबई में पुलिस आयुक्त ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद ही यह कयास लगाए जा रहे हैं कि राजस्थान की तरह महाराष्ट्र में गुवाहाटी जाने वाले शिवसेना के विधायकों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो सकता है। यदि राजस्थान की तरह महाराष्ट्र में भी विधायकों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होता है तो फिर शिवसेना के विधायकों के लिए गुवाहाटी से मुंबई लौटना आसान नहीं होगा। 

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