अग्नि आलोक
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_अब अबला नहीं नारी…..!

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अबला नारी अब हम नहीं,_
शान भी हैं गाँव की …!
घर की इज्जत भी हैं !
तैयार हैं हम बढ़ने के लिए,आगे..,
कदम से कदम भी मिलाएंगे..!
बदल गया है आज जमाना,
सोच भी अब बदलो सज्जन !
भोग-विलास की वस्तु रही ना नारी ..,
आधुनिक समाज में अब,
महत्व हमारी भी समझों सज्जन..,
परम्परा की सिकड़ बांधे कब तक रखोगे ?
किसी से नहीं पीछे हम…!
माना हमने भी,
पुरुषों की सत्ता है समाज पर,
हम भी अब अबला नहीं हैं…,
घर ही नहीं सिर्फ हमारी दुनिया..!
आज बदल गई है परिस्थितियाँ..!
मन में उड़ने की सपने हमारे..!
दीपक हैं बेटे घर के अगर..,
हम बेटियाँ भी हैं बाती..!
रुकेंगे नहीं कदम अब हमारे,
नजरिया बदलना जरूरी है..!
परिवर्तन लाना जरूरी है..!

       *_साभार - शंभू राय , सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल, संपर्क -  74786 23472 , ईमेल - shambhuray926@gmail.com_*

       _संकलन - निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद उप्र, संपर्क - 9910629632_
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