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साँच साँच सो साँच : सनातन धर्म नहीं है हिंदूधर्म

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 डॉ. प्रिया मानवी

_आजकल सनातन धर्म पर काफी बढ़चढ़कर चर्चाएं चल रही हैं. श्रीमद्भगवतगीता के श्लोक संख्या ११/१८ पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होगा कि,शास्वतधर्म अनादि है और यही सनातन है।_

      अनादि का आशय जिसका आदि और अंत नही होता। अर्थात् सदा एकरस रहता है। तो हिन्दूधर्म सनातन धर्म कैसे हुआ?

     _सनातन का पर्यायवाची शब्द शाश्वत है, श्रीकृष्ण ने जिसे शाश्वत धर्म कहा हम उसका अरबवाँ भाग भी पालन करते तो आज यक़ीनन विश्वगुरू होते। खैर! यहाँ हमारा फोकस “शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरूषो मे मतः” पर है._

       तो क्या हिन्दू शब्द विश्वरूप है? उत्तर होगा नही। तो सनातन हिन्दूधर्म कैसे बन गया, क्या सृष्टि के आदि मे भी हिन्दू,,था? उत्तर होगा नही।

     क्या भविष्य मे सदा सर्वदा हिन्दू रहेगा?उत्तर होगा नही।

     _हमने तो जिस सनातन/शाश्वत धर्म की बात कहा वह गीता के श्लोक संख्या /11/18/ पर आधारित है. उसके कथन को देखें तो हिन्दू धर्म उसका बच्चा भी नही है।_

 गौर करें :

*त्वमक्षरं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य रूपं निधानम्।*

*त्वमव्ययं शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरूषो मे मते।।*

     इस श्लोक मे अक्षर=विनाशरहित, अव्यय=जो खर्च नही होता (सदा एक सा बना रहनेवाला) शाश्वत= कभी नष्ट न होनेवाला, गोप्ता=धारण करनेवाला और सनातन=अविनाशी गुणवाला।

     _इतने लक्षणों/गुणोंवाला कौन सी चीज है? एक परमात्मा है जिसे साक्षात् देखकर अर्जुन कहता है :_

           इत एव ते=यह तुम हो। कौन और कैसे हो? तो इसका उत्तर है : *योगशक्तिदर्शनादनुमिनोमि—त्वमित। त्वमक्षरं न क्षरतीति परमं ब्रह्म वेदितव्यं मुमुक्षुभिः* =तुम्हारा क्षरण नही होता ऐसा केवल मुमुक्षगण जानते हैं।

   त्वमस्य विश्वस्य समस्तस्य जगतः परं प्रकृष्टं निधानं निधीयतेsस्मिन्निति निधानं पर आश्रय इत्यर्थः। किञ्च त्वमव्ययो न च तव व्ययो विद्यत इत्मव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता शश्चद्भ्वः शाश्वतो नित्यो धर्मस्तस्य गोप्ता शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनश्चिरन्तनस्त्वं पुरूषः परो मतोsभिप्रेतो मे मम।

वास्तविक रूप से न तो यहाँ धर्म के स्वरूप की चर्चा है न इसमे कहीं हिन्दू शब्द ही आया है और हिन्दू शब्द 2000 पहले जाना गया तो इसके पहले कौन धर्म था?

    _जाहिर है कि वह हिन्दूधर्म नही बल्कि शाश्वतधर्म के बारे मे कहा गया, तो 2000 वर्ष पहले जब हिन्दधर्म नही था तो यह शाश्वत कैसे कहा जा सकता है? वास्तव मे वर्तमान मे जो हिन्दू है वह न तो पहले था और न भविष्य मे रहेगा, इसलिए यह शाश्वतधर्म नही हो सकता।_

    गीता कहती है :

*बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।*

*तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप।।*

      जब कृष्ण के बहुत से जन्म हो चुके हैं, तो उन्होने जो शाश्वतधर्म था उसे बता दिया कि तुम युद्ध करो, रणक्षेत्र से बिना युद्ध किए भागोगे तो तुम्हारी अपकीर्ति होगी, कृष्ण जब स्वयं शाश्वत नही हैं तो यह हिन्दू धर्म शाश्वत कैसे हो गया? अर्थात् नही हुआ.

      _सृष्टि की उत्त्पत्ति से लेकर महाभारतकाल तक अनेको धर्म बने और बिगड़े। मनुष्य स्वयं आठ फीट का होता था आज पाँच फीट का हो रहा है। यह प्रकृति का धर्म है, अर्जुन परमात्मा से बात कर रहा है, जो इस समय आकर्षणशक्ति के रूप मे उसके सामने खड़ा है।_

        यहाँ बुद्धि भ्रष्ट अर्जुन का रथी स्वयं आत्मा है और आत्मा धर्म और अधर्म के गुणों से रहित है, केवल रथ को चलाने वाला है।

      संक्षेप मे वह काल का भी काल महाकाल है,और सबसे बड़ी बात यह है कि प्रस्तुत श्लोक मे धर्म का प्रसङ्ग है ही नही।

    _यह परमविराट के स्वरूप का वर्णन है, इसलिए हिन्दू धर्म को सनातन धर्म की प्रवञ्चना अज्ञान है जिसे हमारे यहाँ जबरपेलौनी कहते हैं।_

*{चेतना विकास मिशन)*

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