पुष्पा गुप्ता
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी से संबद्ध किरदार पृथ्वी के आकाश पर उड़ती हुई चिड़िया के पर गिन सकते है। जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप नाम की अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी की दूरबीन ऐसा मुमकिन कर सकती है।
हाल ही में इस दूरबीन ने कुछ चमत्कारी तस्वीरों को खींचा है और नासा ने उसे सार्वजनिक किया है। खगोलशास्त्र में रुचि न रखने वाले लोगों के लिए यह कुछ नया है, साधारणतः लोग खगोल में रुचि रखते भी नहीं है, यह भारतीय छात्रों के लिए रट्टा लगाने का एक विषय है। हमे स्कूल में यह रटाया गया था कि सौर मंडल में हमारे आठ ग्रह है और प्लूटो पर बहस चल रही हैं।
वैज्ञानिक यह माथा भिड़ा रहे थे कि प्लूटों को ग्रह माने या नहीं, क्यों न इसे कोई बौना ग्रह मानकर छोड़ दिया जाए। लेकिन वैज्ञानिकों के मानने नहीं मानने से होना कुछ भी नहीं है, प्लूटो को क्या पता कि कहीं दूर उसे ग्रह मानने नहीं मानने में चर्चा चल रही है, इस बहस से प्लूटों पर ख़ाक असर नहीं पड़ना, वह बेचारा अपना एक चक्कर लगा कर आया जब खगोल शास्त्र तैयार हुआ। ढाई सौ साल से ऊपर उसका एक चक्कर है और आधुनिक खगोल विज्ञान को पैदा हुए कुछ सौ साल भी मुश्किल से हुए हैं।
बहरहाल, सब बच्चों की तरह मैंने भी रटा था और मान लिया था कि अरुण वरुण के बाद सब खत्म। थोड़ी समझ आयी तो मैंने इस पर पढ़ना शुरू किया। बाद में पता चला कि हबल टेलीस्कोप छोड़ा जा चुका है और वह अंतरिक्ष की अनंत यात्रा पर निकल चुका है।
फिर यह भी जाना कि ज़मीन वाले ग्रहों के बाद एक स्टेरॉइड बेल्ट है, फिर गैस जॉइंट है, फिर काइपर बेल्ट है और उसके बाद कई बौने ग्रह आवारागर्दी कर रहे हैं, वह बेचारे सौर मंडल में घुसने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह भी मेरे लिए बड़ा रोचक था कि शनि के 62 चांद है जिनमें टाइटन सबसे बड़ा है और टाइटन पर नासा एक यान भेज भी चुका है और यह मुमकिन है कि एक दिन टाइटन पर कुछ संभावना बन जाए।
यूनिवर्स में सारी चीज़ें बहुत दूर दूर है। समय जैसा कुछ भी नहीं है। यह समय हम जैसे छोटे मोटे लोगों के लिए है। जो पास में है वहां आदमी पहुंच तो सकता है लेकिन कोई काम के नहीं है। जेम्स वेब जो तस्वीरों को बताता है वह सब इतनी दूर दुनिया की है जहां हम कभी नहीं पहुंच सकते और पहुंचना भी नहीं चाहिए। प्रकाश की गति से कोई गति तेज नहीं हो सकती और वहां पहुंचने में प्रकाश की गति भी ज़ेर हो जाती है। असल में यह यूनिवर्स बना ही ऐसा है कि कोई भी एक दूसरे से मिल नहीं सकता। मतलब हदें वो खींच रखी है हरम के पासबानों ने…
वहां कई दुनिया बन रही है और मिट रही है, हमे आज नज़र आ रही है जबकि मिटे हुए एक मुद्दत हो चुकी है। इस यूनिवर्स को हम केवल देख सकते है लेकिन समझने का दम खम अगले दस हजार वर्षों में भी आना मुश्किल है। इस यूनिवर्स में आदमी की हैसियत कुछ यूं समझिए कि एक बड़े सारे कंटेनर में छोटे छोटे डिब्बे एक के अंदर एक रखे हुए हैं और उन डिब्बों में एक माचिस की डिब्बी है और उस माचिस की डिब्बी में एक कोरोना वायरस है।
यहां हर जीव दुनिया को अलग तरीके से देखता है, इसलिए छिपकली मूसा के बारे में रब से पूछती है कि तुमने मूसा को क्यों बनाया। नासा ने अपने सारे मिशन रोमन देवताओं के नाम पर रखे है जैसा अपॉलो मिशन भी रोमन देवता के नाम पर है, टाइटन भी कोई देवता है। इस यूनिवर्स की भयानकता और विशालता हमे ईश्वर की शरण में लेकर जाती है।
इतना समझ लेना चाहिए कि जो कुछ हम सोच सकते है वह सब कुछ इस यूनिवर्स में घट सकता है। हम जितना इस यूनिवर्स को जानते है हम भीतर से उतने ही रोशन ख्याल होते हैं। विज्ञान सारी कूपमंडूकता समाप्त कर देता है। विज्ञान एक क्रांतिकारी सूर्य है, जिसकी किरणें जहां पड़ जाती है वह जगह रोशन हो उठती है।
(चेतना विकास मिशन)