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भक्त के उदगार?

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शशिकांत गुप्ते

मानव की आयु साठ वर्ष की पूर्ण होने पर वह वरिष्ठ नागरिक कहलाता है।
मराठी भाषा में एक कहावत है, साठी बुद्धी नाठी इसका मतलब, ऐसा माना जाता है कि, साठ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर मानव की स्मरणशक्ति कमजोर होती है। उसके शारीरिक अवयवों की क्षमता क्षीण होने लगती है।
इसीलिए शासकीय या निजी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को साठ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर सेवनिवृत्त किया जाता है।
उक्त मान्यता पर विचारकों में मत भिन्नता है।
एक सामान्यज्ञान का प्रश्न उपस्थित होता है,क्या उक्त मान्यता सिर्फ आमजन के लिए ही लागू होती है?
हाल ही में सबका साथ,सबका विकास और सबका विश्वास की घोषणा करने वाली राजनैतिक व्यवस्था ने वरिष्ठ नागरिकों को रेलवे से यात्रा करने पर मिलने वाली रियायत बन्द कर दी है। रियायत मतलब Concession.
इस सुविधा से वरिष्ठ नागरिक वंचित हो गए है।
हमारे जन प्रतिनिधियों को मिलने वाली सारी रियायतें बरकरार है।
आमजन के द्वारा प्राप्त अप्रत्यक्ष, या प्रत्यक्ष रूप से कर अदा करने पर प्राप्त होने वाले राजस्व की आय से जनप्रतिनिधियों को सुविधा मिलती है।
मतलब मालिक सुविधाओं से वंचित,और सेवक सभी तरह की सुविधाओं का उपभोग करतें हैं।
इस वक्तव्य पर व्यंग्यकार सीतारामजी के विचार भिन्न है।
सीतारामजी का कहना है कि वर्तमान राजनीति आमजन को सुविधाभोगी बनने से रोक रही है। आमजन में सुविधाभोगी मानसिकता पनपने से आमजन पूर्ण रूप से अवलम्बित हो जाता है।
वर्तमान व्यवस्था उसे स्वावलंबी बना रही है।
महंगाई कोई समस्या नहीं है। यदि महंगाई समस्या होती तो आमजन त्रस्त होकर सत्ता परिवर्तन करने की चेष्ठा करता है?
पिछले आठ वर्षों में आमजन का जीवनस्तर ऊंचा हुआ है।
मैने कहा आपभी कागजी घोड़े दौड़ाने लग गए हो?
सीतारामजी ने कहा यह कागजी घोड़े नहीं है एक भक्त के उदगार हैं।
मैने पूछा सिर्फ भक्त के? सीतारामजी कुछ जवाब देतें उसके पूर्व मैने ही कह दिया क्षमा करना, मुझे विस्मृति हो गई थी कि, याद आ गया आप व्यंग्यकार हो।
वर्तमान व्यवस्था,अभूतपूर्व योजना के तहत युवावर्ग को मात्र चार वर्षो में भूतपूर्व होने का प्रमाण पत्र देने जा रही है।
सीतारामजी ने अपना वक्तव्य जारी रखते हुए कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है।
मैने कहा आज साधारण समाज तो मानसिक दड़पन में जी रहा है।
सीतारामजी ने कहा हिंदी साहित्य के युगों पर विचार करने पर यह क्रम दृष्टि गोचर होता है।
आदिकाल,भक्तिकाल रीतिकाल और वर्तमान में आधुनिक काल चल रहा है।
मेने कहा आधुनिक काल में चितंन,मनन समाप्त होता नजर आता है।
सीतारामजी ने कहा समयानुसार परिवर्तन होता है।
पुर्व में Silmple living and high thinking मतलब सादा जीवन उच्च विचार।
फिर High living and simple thinking, उच्च जीवन और सादा विचार
बाद में सिर्फ High living and no thinking मतलब उच्च जीवन शैली और विचार हीनता।
मैने कहा सही मायने में तो निम्नानुसार होना चाहिए।
Simple living high thinking bright outfit
मतलब सादा जीवन उच्च विचार उज्ज्वल पोशाक।
सीतारामजी कहने लगे आखिर आ गए ना आप पोशाक पर।
पोशाक पर दाग नहीं लगना चाहिए। पोशाक हमेशा उज्ज्वल होना चाहिए,भलेही दिन में चार बार बदलना पड़े?
मैने कहा विषयान्तर हो गया है।
सीतातामजी ने कहा नहीं बिलकूल नहीं। अपनी चर्चा जीवन स्तर पर ही कायम है।
आमजन बगैर किसी तरह का विरोध किए महंगा खा रहा है महंगा पहन रहा है। महंगा ईंधन खरीद रहा है। यह उच्च जीवन स्तर का प्रत्यक्ष प्रमाण है। सीतारामजी ने कहा यह सारे उदगार भक्त के हैं।
आमजन को समझना चाहिए कि,अच्छे दिन आते नहीं है महसूस करना पड़ते हैं।
भक्त की भक्ति को प्रणाम करते हुए, चर्चा को पूर्ण विराम।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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