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मिशन 2023 …आरएसएस के अनुषांगिक संगठन अब संभालेंगे चुनाव में मोर्चा

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भोपाल मिशन 2023 के मद्देनजर मप्र चुनावी मोड में आ चुका है। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के परिणामों का आंकलन कर संघ ने आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए मैदानी जमावट पर काम शुरू कर दिया है। हमेशा पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाला संघ इस बार कई मार्चे पर फ्रंट पर रहकर भाजपा के लिए चुनावी काम करेगा। इसके लिए इस बार हार्ड हिंदुत्ववादी और सेवा संगठनों को फ्रंट मोर्चे पर तैनाती की तैयारी की गई है। गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनाव से सबक लेते हुए संघ ने इस बार समय से पहले चुनावी मोर्चा संभालना शुरू कर दिया है। खास तौर पर कांग्रेस के प्रभाव वाली सीटों पर विशेष फोकस किया जा रहा है। इन क्षेत्रों में संघ के प्रचारक, समयदानी और विस्तारकों की विशेष टोलियों को भेजा जाएगा। संघ के ये वालंटियर भाजपा के पक्ष में माहौल तैयार करेंगे और क्षेत्र में पार्टी की मौजूदा स्थिति का फीडबैक भी देंगे। जिलों में बढ़ती गुटबाजी को नेताओं के बगावती तेवरों को साधने का रास्ता भी सुझाएंगे।
भाजपा में लागू होगासंघ का पैटर्न
नगर निगम चुनावों मे मिली हार से भाजपा से लेकर संघ तक में चिंता से लेकर चिंतन तक का दौर शुरू हो गया है। हाल ही में हुए संघ में बदलाव को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। इसके पीछे का बड़ा कारण पार्टी की जमीन पर कमजोर होती पकड़ माना जा रहा है। संघ ने पिछले साल संभागीय संगठन मंत्रियों की व्यवस्था खत्म कर उनकी ताजपोशी निगम-मंडलों में कर दी। इस बदलाव के बाद भाजपा की जमीनी पकड़ कमजोर होती गई जिसका उदाहरण नगर निगम चुनाव हैं जिनमें भाजपा की सीट 16 से घटकर 9 पर आ गईं। हाल ही में वरिष्ठ संघ नेता अजय जामवाल को क्षेत्रीय संगठन महामंत्री बनाया गया है, उनको मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी दी गई है। इस बदलाव के बाद अब प्रदेश संगठन महामंत्री के साथ दो सह संगठन मंत्रियों को जोड़ा जा रहा है। पार्टी सूत्रों ने संगठन मंत्रियों को हटाए जाने की बड़ी वजह मानी है कि संभागीय कार्यालय सत्ता और संगठन के नए केंद्र के रूप में काम कर रहे थे। विधायकों से लेकर जिलों में काम करने वाले पदाधिकारियों का संगठन मंत्रियों के प्रभाव में आकर फैसले लेने का प्रचलन बढ़ता जा रहा था। इतना ही नहीं, प्रशासनिक कार्यप्रणाली भी इनके हस्तक्षेप से प्रभावित हो रही थी। यही वजह है कि अब नई व्यवस्था को लागू किया जा रहा है।
संघ के कम हुए दखल से भाजपा पर पड़ा असर
संघ ने भाजपा में अपना दखल कम किया तो पार्टी पर इसका बड़ा असर पड़ा। नगर निगम चुनावों ने दिखा दिया कि किस तरह पार्टी की पकड़ जमीनी स्तर पर कम होती जा रही है। यही कारण है कि अब संघ के पैटर्न पर भाजपा में नया बदलाव किया जा रहा है। अब आरएसएस की निगरानी में नगर अध्यक्ष भी रहेंगे। संघ ने यह भी माना है कि निगम चुनाव में नगर इकाई नाकाम साबित हुई हैं। चुनाव जैसे बड़े काम अकेले नगर अध्यक्ष के बस की बात नहीं है। आने वाले समय में विधानसभा चुनाव हैं इसलिए इन कमियों को दुरुस्त करने का जिम्मा संघ ने फिर से उठाया है। नगर निगम चुनावों के बाद फिर संगठन मंत्री की कमी महसूस होने लगी है। अब फिर से संघ संगठन मंत्रियों के रूप में अपने नेताओं को बीजेपी में बैठाने जा रहा है। इंदौर हो या जबलपुर या फिर ग्वालियर। इन तीनों महानगरों में नगर अध्यक्ष का काम प्रभावी नहीं रहा। यहां पर संगठन बिखरा—बिखरा सा नजर आया। नगर इकाई में चल रही बड़े नेताओं की मनमानी भी नजर आई है। इंदौर में भाजपा की लीड कम हो गई तो जबलपुर और ग्वालियर में हार का सामना करना पड़ा। संघ को ये बात भी रास नहीं आई कि संभागीय संगठन मंत्रियों की व्यवस्था खत्म कर उनको लाभ के पद पर बिठा दिया गया। संगठन मंत्रियों पर उठे सवालों पर भी संघ नाखुश है। अब इन संगठन मंत्री की डोरी संघ के खूंटे से बंधी रहेगी और वे भाजपा की नगर इकाइयों के संदर्भ में आरएसएस को समय समय पर रिपोर्ट करेंगे।
नए सिरे से कामकाज का बंटवारा
आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर संघ इस बार सुनियोजित रणनीति पर काम कर रहा है। इसके तहत संघ ने हाल ही में अपने नेटवर्क को नए सिरे से पुनर्गठित कर लहार को मध्यभारत प्रांत में आरएसएस का नया जिला बनाकर जिला प्रचारक की नियुक्ति कर दी है। इसके अलावा करीब डेढ़-दो दर्जन जिलों में प्रचारकों के बीच नए सिरे से कामकाज का विभाजन कर दिया है। शुरूआती दौर में जिन जिलों पर फोकस किया गया है उनमें से ज्यादातर ग्वालियर-चंबल संभाग क्षेत्र के अंतर्गत हैं। इन जिलों में नए सिरे से प्रचारकों की जमावट की गई है।
हार्डकोर हिंदुत्व का सहारा
इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हार्डकोर हिंदुत्व के सहारे चुनावी मैदान में काम करेगा। भाजपा एक बार फिर हार्ड हिंदुत्व का कार्ड खेलने की तैयारी में है। कोविड काल में संघ के सेवा संगठनों ने गांव-गांव में लोगों को राशन और मेडिसिन की सुविधाएं उपलब्ध कराईं थीं उससे उनके प्रति समाज में एक सकारात्मक छवि बनी है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत नहीं मिला। मार्च 2020 की सियासी उथल-पुथल के बाद भाजपा पुनः: सत्ता में है लेकिन प्रदेश में अब भी कांग्रेस की 96 सीटें हैं। यही वजह है कि कांग्रेस के प्रभाव वाली सीटों को चिन्हित कर वहां मैदानी स्तर पर भाजपा की जमीन तैयार करने की कवायद शुरू की गई है।
भागवत कर रहे समीक्षा
प्रदेश और केंद्र में भाजपा की सरकार बनाने के लिए संघ भोपाल को केंद्र बिंदु बनाकर काम करेगा। इसके लिए गत दिनों संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत विश्व हिंदू परिषद के संगठन मंत्रियों की समीक्षा बैठक में शामिल हुए। भोपाल में आयोजित बैठक में दिन भर उन्होंने हर प्रांत के कामकाज का ब्यौरा लिया। चर्चा के दौरान अयोध्या में बन रहे राम मंदिर, मथुरा और काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का मामला भी आया। भोपाल इस समय आरएसएस की सबसे प्रमुख बैठकों का केंद्र बना हुआ है। यहां एक साथ तीन महत्वपूर्ण बैठकें चल रही हैं जिनके लिए संघ प्रमुख भागवत 5 दिनी प्रवास पर राजधानी आए हैं। विहिप के देश भर में कार्यरत प्रांतीय संगठन मंत्रियों की भोपाल में पहली बार बड़ी बैठक बुलाई गई है। इसमें विहिप के सभी 44 प्रांतों के संगठन और क्षेत्रीय मंत्री स्तर के पदाधिकारी शामिल हुए हैं। संघ प्रमुख भागवत 5 एवं 6 अगस्त को विश्व विभाग द्वारा संचालित हिंदू सेवा संगठन के विदेशों में कार्यरत स्वयं सेवकों और महिला विंग की स्वयं सेविकाओं के प्रशिक्षण वर्ग में शामिल होंगे। भागवत 6 अगस्त को पीपुल्स आॅडिटोरियम में सार्वजनिक कार्यक्रम को संबोधित करेंगे।

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