डॉ पीयूष जोशी
देश बंधा है
कंठ रुंधा है
समय संकुचित
प्राण प्रताड़ित
मर्यादा मर्दित
मन कलुषित
तथाकथित अब
यथाकथित
षडयंत्रों का तंत्र है
भ्रष्टाचार गुरुमंत्र है
नैतिकता की बात है
और नैतिकता पर घात है
बिके हुए सब मन हैं
बिके हुए जीवन हैं
बिके सभी जंगल झरने
बिकी आत्मा लगी मरने
बिकना अब सम्मान है
नीलामी अभिमान है
सज्जनता का छद्म आवरण
ओढे दुर्जन भगवान है
देस मेरा रंगीन है
और ईमानदार गमगीन है
किसी समयकाल की सोचें
तो अपराध ये संगीन है
देश धरा का मोल भाव है
धर्म इसका व्यभिचारी है
सब मौज है रोज़ डकैती
सरकारी है सरकारी है
पुते रंग और खाल को डाले
सियार संत समान है
दीपक और तूफान कथा का
नायक अब तूफान है
डॉ पीयूष जोशी