(द डिजीज ऑफ डूइंग बिजनेस इन इंडिया)
~ पुष्पा गुप्ता
_विनोद चंद ने लिखा है, मुझे बैंक में चालू खाता खोलना है, मेरा बैंक मुझसे फूड लाइसेंस मांग रहा है। मेरे पास फूड लाइसेंस होने या न होने का चालू खाता खोलने से क्या संबंध है?_
इसी तरह आपको सैकड़ों फॉर्म मिलेंगे जिनमें बेमतलब की सूचनाएं चाहिए होती हैं। इसे, द डिजीज ऑफ डूइंग बिजनेस इन इंडिया कहा जाता है। यह सरकारी प्रचार, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस …. पर व्यंग है और कारोबार करने की सहूलियत को कारोबार करने (से लगने वाली) बीमारी कहा जा रहा है।
आप कोई भी कारोबार शुरू करें हर किसी को यह जानना रहता है कि उन्हें आपसे क्या मिलेगा (मिल सकता है) भले ही आपने एक रुपया भी नहीं कमाया हो।
यही नहीं अच्छे दिन से पहले बैंक में बचत खाता रखने का कोई खर्च नहीं लगता था। अब न्यूनतम 1000 रुपये रखने पर बैंक के शुल्क ब्याज से ज्यादा हैं। पहले सिंडिकेट बैंक और अब केनरा बैंक के मेरे एक बचत बैंक के खाते में (एफडी के अलावा) 1800 रुपए पड़े हुए हैं।
बैंक ब्याज में जो देता है उससे ज्यादा सर्विस चार्ज लेता है। खाते में एक भी ट्रांसैक्शन नहीं है तब। कुल मिलाकर, मेरे 1800 रुपए रखने के बैंक मुझसे पैसे ले रहा है। यह हाल है बैंकों का और रोज फोन आता है कि कर्ज ले लो, क्रेडिट कार्ड ले लो।
अभी जब नौकरियां नहीं हैं, कोई नया बड़ा कारखाना नहीं लग रहा है या नौकरी देने वाला नहीं है, विदेशी कंपनियां काम समेट रही हैं तो सरकार को चाहिए कि हर किसी को रोजगार करने की छूट दे।
सबसे कहा जाए कि जो कर सकते हो करो, कमाओ एक-तीन या पांच साल कोई टैक्स नहीं कोई पूछताछ नहीं। उसके बाद टैक्स देना।
कहने की जरूरत नहीं है कि इसका फायदा होगा लोग काम-धंधा करने के लिए प्रेरित होंगे। खाली बैठे लोग काम कर पाएंगे शायद कमाने भी लगें। पर सरकार है कि हर जगह अड़ंगा।
आप विदेश से मुफ्त में (या अपने काम या अपनी योग्यता या अपने परिचय के दम पर) चंदा प्राप्त कर सकते हैं तो सरकार वह भी नहीं करने देगी। भले आप उससे जनसेवा करना चाहते हों। उसे डर है कि इस दम पर आपके उसके खिलाफ हो सकते हैं।
फोटो लगे झोले में ‘फ्री का अनाज’ बांटेगी और सीएसआर के पैसे भी लेकर पीएम केयर्स में रख लेगी। बदले में लोकोपकारी गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) बंद करा दिये जाएंगे ताकि भरे पेट वाले सरकार के खिलाफ बोलने के लिए हों ही नहीं।
कारोबार में सरकारी अड़ंगेबाजी का एक मामला पिछले दिनों प्रकाश में आया। एक व्यक्ति का आयकर रिफंड ‘नहीं हो पाया’ (सूचना यही थी) क्योंकि उसका पैन खाते से लिंक नहीं था। दरअसल खाता संयुक्त है और एक ही व्यक्ति का पैन और फोन खाते से लिंक था।
लेकिन साल भर पहले कटा टीडीएस, समय पर आयकर फाइल करने के लिए बार-बार याद दिलाए जाने पर रिटर्न दाखिल कर दिए जाने के बाद भी खाते में नहीं पहुंचेगा क्योंकि खाता पैन से लिंक नहीं है।
इसकी जरूरत ना खाता रखने के लिए थी, ना कमाने के लिए थी ना टीडीएस काटने-कटवाने जमा करने के लिए थी।
वापसी के समय सब चाहिए वह भी तब जब पिछले साल तक रिफंड इसी खाते में आता रहा है भले ही तब बैंक का नाम कुछ और होता था। यही है सबका साथ सबका विकास या अच्छे दिन या नामुमकिन मुमकिन है।
100 दिन में बनने वाला सपनों का भारत या 50 दिन में विदेश में रखा काला धन वापस आने के बाद बना भारत।
फिलहाल तो आप पॉलिएस्टर का बना झंडा फहराइए और याद कीजिए कि तिरंगा खादी का होता था तो सबके फहराने पर रोक थी। अब फहरायेंगे तो आपको क्या मिलेगा या पहले क्या नहीं मिलता था।
_70 साल कुछ नहीं हुआ बनाम आठ साल में नोटबंदी हुई, जीएसटी लगा और शौंचालय बने।_
{चेतना विकास मिशन)