कुछ दिन पहले यूपी के फिरोजाबाद में एक सिपाही का वीडियो सामने आया था। सिपाही का नाम मनोज कुमार है। मनोज ने सड़क पर रोते हुए अपनी खाने की थाली दिखाई और कहा कि 12 घंटे ड्यूटी करने के बाद ऐसी रोटियां मिल रही हैं। इस पर मनोज को लंबी छुट्टी पर भेज दिया गया।
इसके बाद हमने 10 राज्यों में पड़ताल की। इनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तराखंड और झारखंड शामिल हैं। हालात समझने के लिए यहां के रिटायर्ड SI से DGP रैंक के अफसरों तक से बात की। फिर 5 पैमाने तय किए- काम के घंटे, खाना, छुट्टी, पेट्रोल अलाउंस और मेडिकल फैसिलिटी। इनके हिसाब से पुलिसवालों को मिलने वाली सुविधाओं की तुलना की। लगभग हर जगह स्थितियां एक जैसी यानी बदतर ही नजर आईं।
फिरोजाबाद में तैनात यूपी पुलिस के सिपाही मनोज कुमार ने रोटी दिखाते हुए कहा था कि ऐसा खाना कैसे खाऊं। इन्हें झाड़कर देखिए इसमें से क्या निकल रहा है। दाल में सिर्फ पानी है।
1. सबसे पहले काम के घंटे…
ड्यूटी रोस्टर में 8 या 12 घंटे की ड्यूटी पर सिग्नेचर करते हैं, पर काम के घंटे तय नहीं। VIP ड्यूटी, त्योहार या दंगे जैसी स्थिति हुई तो 24 से 30 घंटे तक काम करना पड़ता है। दिल्ली और बिहार में तो पुलिस का कोई ड्यूटी टाइम ही नहीं है। मध्यप्रदेश में फील्ड पर रहने वाले पुलिसकर्मी सुबह 9 बजे ड्यूटी पर जाते हैं और रात 11 बजे तक काम करते हैं।
2. फूड अलाउंस: MP में सिर्फ 45, गुजरात-छत्तीसगढ़ में 200 रुपए रोज
MP में जवानों को सिर्फ 45 रुपए फूड अलाउंस मिलता है। ये देश में सबसे कम है। इसके अलावा पौष्टिक आहार के लिए हर महीने 650 रुपए मिलते हैं। गुजरात और छत्तीसगढ़ में इसके लिए सबसे ज्यादा 6 हजार रुपए महीने मिलते हैं। महाराष्ट्र में रिफ्रेशमेंट अलाउंस के 750 रुपए महीने सैलरी में जुड़कर आते हैं। ज्यादातर राज्यों में दिन का 50 से 100 रुपए फूड अलाउंस मिल रहा है।
यूपी पुलिस के SI की सैलरी स्लिप, इसमें फूड अलाउंस में 1500 रुपए मिले हैं। ये रैंक के हिसाब से मिलता है।
3. हफ्ते में छुट्टी: बिहार-राजस्थान में नहीं, यूपी में 10 दिन में एक
बिहार और राजस्थान में जवानों को हफ्ते में एक भी छुट्टी नहीं मिलती। महाराष्ट्र में सिर्फ मेडिकल लीव ले सकते हैं। यूपी में 10 दिन में एक दिन की छुट्टी मिलती है। झारखंड और उत्तराखंड में इंस्पेक्टर रैंक से नीचे के पुलिसवालों को वीकली ऑफ मिलता है।
4. पेट्रोल अलाउंस: MP में 100 रुपए साइकिल भत्ता, दिल्ली में पेट्रोल के लिए 4824 रुपए
ज्यादातर राज्यों में ट्रैवलिंग के लिए भत्ता नहीं मिलता। यूपी में पुलिसकर्मियों को हर महीने इसके लिए 200 से 700 रुपए मिलते हैं, जबकि यहां एक लीटर पेट्रोल 110 रुपए का है। मध्यप्रदेश में 100 रुपए महीने साइकिल भत्ता दिया जाता है। पेट्रोल के लिए दिल्ली में सबसे ज्यादा 4824 रुपए दिए जाते हैं। महाराष्ट्र में पुलिसवाले सरकारी बसों में फ्री सफर कर सकते हैं।
2020 में यूपी पुलिस में SI पद से रिटायर्ड आशा राय बताती हैं कि 15 साल पहले 15 रुपए महंगाई भत्ता मिलता था। अब बाहर जाने पर 400 से 500 रुपए मिलते हैं। इसमें खाने के 60 से 70 रुपए होते हैं। इसी में आने-जाने, कैदी और अपने खाने का इंतजाम करना होता है।
5. मेडिकल फैसिलिटी : MP में 8 लाख तक का इलाज, यूपी में 2 लाख का
मध्यप्रदेश में जवानों को 8 लाख रुपए और यूपी में 2 लाख तक के इलाज की सुविधा है। गुजरात में उन्हें मेडिकल इंश्योरेंस मिलता है। छत्तीसगढ़ में मेडिकल के लिए दो ऑप्शन होते हैं। जवान हर महीने 200 रुपए या एडमिट होने के बाद बिल का क्लेम कर सकते हैं। 30 साल की नौकरी के बाद रिटायर इंस्पेक्टर राजेश यादव बताते हैं कि यह प्रोसेस इतनी मुश्किल है कि आधा क्लेम ही मिल पाता है।
ADG बोले- पुलिसवालों के कपड़े उतारकर देखना, फटी बनियान मिलेगी
यूपी पुलिस में ADG रैंक के एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि हर पुलिसवाला हर दिन कम से कम 12 घंटे ड्यूटी करता है। उसके लिए हफ्ते में कोई छुट्टी नहीं होती। वह लोगों के सामने आदर्श बनने की कोशिश करता है। कभी इनकी यूनिफार्म उतरवाकर देखिए 10 में से 4 की बनियान फटी होगी, मोजे फटे हुए होंगे।
कॉन्स्टेबल से लेकर DGP तक पर पॉलिटिकल प्रेशर
पूर्व DGP विक्रम सिंह ने कहा कि जिस तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप मेरे राज्य यूपी में है, उससे शुरुआत में मुझे लगा कि मैं भी बतौर DGP फेल हो जाऊंगा, लेकिन मुझे छूट दी गई कि मेरे ऊपर कोई दबाव नहीं रहेगा। तब मैं पद स्वीकार करने के लिए तैयार हुआ। दखलअंदाजी शुरू होने पर मैं कार्यकाल पूरा होने से चार महीने पहले ही हट गया था।
कॉन्स्टेबल से लेकर DGP तक पर पॉलिटिकल प्रेशर रहता है। सारी राजनीति की गंगोत्री ही थाना, चौकी और तहसील है। किस पर केस दर्ज करना है, कौन चार्ज शीट होगा और कौन नहीं, राजनीति का यह पूरा खेल कमजोर पुलिस सिस्टम से ही चलता है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सिफारिशें लागू नहीं
पुलिस सुधारों पर सुप्रीम कोर्ट में 1996 में यूपी के पूर्व DGP प्रकाश सिंह और अन्य ने याचिका दायर की थी। इस पर 22 सितंबर 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने 7 निर्देश दिए। इनमें से 6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों और 7वां केंद्र सरकार के लिए था। 26 सितंबर को इन्हें भेजा गया। इनमें DGP की नियुक्ति से लेकर DSP रैंक से नीचे के अफसरों के तबादले, तैनाती और प्रमोशन का जिक्र था।
2006 में सोली सोराबजी की अध्यक्षता वाली एक्सपर्ट कमेटी ने मॉडल पुलिस एक्ट की कॉपी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को विचार के लिए भेजी थी। केंद्र सरकार ने 2006 के एक्ट की समीक्षा कर मॉडल पुलिस एक्ट-2015 तैयार किया। आज तक इन सिफारिशों को लागू नहीं किया जा सका है।