गुरप्रीत चौगावाँ,
पिछले दिनों वर्तमान सरकार के हुक्मरानों के आदेश पर एनसीईआरटी मतलबNational Council of Educational Research and Trainingया राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद ने छठी से बारहवीं कक्षा तक के इतिहास,राजनीति विज्ञान और समाज विज्ञान के पाठ्यक्रम में बड़े बदलाव किए हैं। पाठयक्रम में से लोकतंत्र,मुग़ल काल,दिल्ली सल्तनत, उपनिवेशवाद,गुजरात नरसंहार,भाषा आधारित राज्य बनाने के आंदोलन,अल्पसंख्यकों से संबंधित पाठ,जनांदोलन,नक्सलबाड़ी आंदोलन आदि विषय पूरी तरह से निकाल दिए गए हैं या बहुत ज़्यादा घटा दिए गए हैं। एनसीईआरटी के अनुसार पाठ्यक्रम में कटौती का मुख्य कारण विद्यार्थियों पर पाठ्यक्रम का बोझ घटाना और मौजूदा संदर्भ में “अप्रासंगिक मतलब Irrelevant” विषयों को पाठ्यक्रम में से निकालना भर है ! अगर ग़ौर से देखा जाए तो पता चलता है कि इस फ़ैसले के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शिक्षा को भगवा स्याही के साथ लिखने का हिंदुत्वी एजेंडा छिपा हुआ है ! पाठयक्रम में से वही विषय निकाले गए हैं, जिनसे संघ परिवार नफ़रत करता है ! जिस कमेटी द्वारा की गई सिफ़ारिशों के तहत ये बदलाव किए गए हैं,उसके ज़्यादातर सदस्य किसी न किसी रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं !
भारत में पहले भी समय-समय पर पाठ्य-पुस्तकों में बदलाव किए जाते रहे हैं। सत्ता पर कब्जा जमाए पूँजीवादी शासकों की बदलती ज़रूरतों के अनुसार शिक्षा नीति और पाठ्यक्रम भी तैयार किए जाते रहे हैं, परन्तु वर्ष 2014 के बाद इस प्रक्रिया में गुणात्मक तब्दीली आई है ! अब सत्ता पर क़ाबिज़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा भाजपा का मक़सद अपने पूँजीवादी शासकों के हितों की पूर्ति के साथ-साथ भारत को एक फ़ासीवादी हिंदू राष्ट्र बनाना है ! इस मक़सद की पूर्ति के लिए शिक्षा एक बहुत ही प्रभावी माध्यम है,जिसके द्वारा सरकारी ख़र्चे पर संघ की शाखा लगाने का प्रबंध किया जा रहा है ! भाजपा हुकूमत ने पहले भी वर्ष 2014 और वर्ष 2017 में पाठ्यक्रम में कई बहुत बड़ा बदलाव की थीं। पाठ्य पुस्तकों के पाठ्यक्रम द्वारा विद्यार्थियों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुसलमानों,दलितों, औरतों,कम्युनिस्टों और अन्य अल्पसंख्यक लोगों के ख़िलाफ़ नफ़रत की भावना भरकर सांप्रदायिक जुनूनी भीड़ तैयार की जाएगी।
लोकतंत्र और जनांदोलनों के प्रति संघियों की नफ़रत बहुत पहले से जगजाहिर है !
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपूर्ण संगठनात्मक ढाँचे में लोकतंत्र नाम की कोई चीज़ ही नहीं है ! लाज़िमी ही ये संघी किसी भी तरह के लोकतंत्र और नागरिक -अधिकारों के कट्टर विरोधी हैं। छठी कक्षा की राजनीतिक विज्ञान की किताब में से लोकतंत्र से संबंधित चार पाठ निकाल दिए गए हैं। इनमें न्याय,बराबरी जैसे पाठ भी शामिल हैं ! इसका बहाना यह लगाया जा रहा है कि यह अन्य किताबों में पढ़ाए जाते हैं। चाहे इन पाठों में पूँजीवादी नज़रिए से ही लोकतंत्र की बात की गई थी, पर फिर भी ये किसी हद तक विद्यार्थियों को नागरिक अधिकारों के बारे में अवगत कराते थे। इन तब्दीलियों द्वारा ये संघी आमजन में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता को ख़त्म कर देना चाहते हैं। संघ का तथाकथित हिंदू राष्ट्र एक फ़ासीवादी -तानाशाही होगी, जिसमें किसी भी नागरिक को कोई अधिकार नहीं होंगे !
तमाम जनांदोलनों को भी पाठ्यक्रमों से निकाला !
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लोकतंत्र के अलावा आज़ाद भारत में हुए अलग-अलग जनांदोलनों के इतिहास को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है ! बारहवीं कक्षा की किताब में से चिपको आन्दोलन,नर्मदा बचाओ आंदोलन,वर्ष 1980 के दशक के किसान आंदोलन,महाराष्ट्र के दलित पैंथर आंदोलन, नक्सलबाड़ी विद्रोह के बारे में बहुत सारी जानकारी पाठयक्रम में से निकाल दी गई है ! फ़ासीवादी जनांदोलनों से बहुत डरते हैं ! इसलिए वे इतिहास में लोगों द्वारा किए गए किसी भी आंदोलन के बारे में हर तरह की जानकारी छिपाकर लोगों को उनके जुझारू इतिहास से वंचित करने की कोशिश करते हैं। भले ही यह कोशिश ज़्यादा समय तक प्रभावी नहीं रहती है !
कथित हिन्दू राष्ट्र के बहाने कार्पोरेट और आरएसएस का नापाक गठजोड़ !
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इसके अलावा आठवीं कक्षा की इतिहास की किताब में से आज़ाद भारत में भाषा के आधार पर बने राज्यों और उनके लिए हुए आंदोलनों के बारे में पाठ भी पाठ्यक्रम में से निकाल दिए गए हैं। ऐसा करने के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक ख़ास उद्देश्य है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बहुराष्ट्रीय भारत में बस रहे अलग-अलग राष्ट्रों की भाषाएँ,संस्कृतियों को कुचलकर उन्हें जबरन एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहता है ! इस प्रोजेक्ट में भारत के बड़े एकाधिकारी-पूँजीपति वर्ग की भी दिलचस्पी है। हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान के नारे के तहत काम कर रही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाषा आधारित राज्य बनाने के सख़्त ख़िलाफ़ थी। भाषा आधारित राज्य बनाने के आंदोलनों के इतिहास को पाठ्यक्रम में से निकालकर संघ भारत को कथित एक राष्ट्र बनाने के अपने एजेंडे के लिए रास्ता साफ़ कर रहा है,चाहे यह एक सिरे से असंभव कार्य भी क्यों न हो !
सांप्रदायिकता,आपातकाल और गुजरात नरसंहार संबंधी पाठ को इतिहास से निकालने की गंभीर संघी साजिश !
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जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मूल आधार ही सांप्रदायिक है,वह भला सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ कैसे बोल सकती है ? बारहवीं कक्षा के समाज विज्ञान की किताब में से सांप्रदायिकता से संबंधित पाठ 6 में से काफ़ी कुछ हटा दिया गया है। इस पाठ में यह बताया जाता था कि सांप्रदायिकता लोगों को दूसरे संप्रदाय के लोगों का क़त्ल करने के लिए,बलात्कार करने के लिए उकसाती है ! इसके अलावा 1984 के सिख विरोधी क़त्लेआम और गुजरात क़त्लेआम के बारे में तथ्य और टिप्पणियों वाले पैरे भी किताब में से निकाल दिए गए हैं ! वर्ष 2002 के गुजरात नरसंहार के बारे में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की उस समय की भाजपा सरकार की आलोचना भी संघ परिवार को बिल्कुल रास नहीं आती है ! उल्लेखनीय है कि वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान जानबूझकर कराए गए क़त्लेआम में हिन्दू-मुस्लिम मिलकर कुल 2500से भी ज़्यादा निरपराध और बेकसूर लोग मारे गए थे,सैकड़ों लोग लापता हुए थे,हज़ारों लोग बेरोज़गार और बेघर हो गए ! उस समय गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और यही नरेंद्र मोदी जो आज दुर्घटना और दुर्भाग्य से भारतीय गणराज्य का प्रधानमंत्री हैं,वही उस समय गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री थे ! उस शर्मनाक और इंसानियत को शर्मसार करनेवाले दंगे में ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,विश्व हिंदू परिषद,बजरंग दल के कार्यकर्ता या गुंडे गुजरात की सड़कों पर गुजरात राज्य के मुखिया इसी नरेंद्र दास दामोदरदास मोदी के सरकारी सरपरस्ती में मुसलमानों का सरेआम क़त्लेआम कर रहे थे ! उनकी औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार कर रहे थे,उन्हें जला रहे थे ! ‘एक संघी कातिल बाबू बजरंगी तो यहाँ तक कहता है कि उसने एक गर्भवती महिला का पेट चीरकर उसका बच्चा त्रिशूल पर टाँगा था ! ‘ इसकी विडियो सोशल मिडिया पर अभी भी उपलब्ध है ! इस सबके लिए मोदी और भाजपा की पूरे संसार में खूब फजीहत और थू-थू भी हुई थी ! लेकिन अब वही भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गुजरात में हुई इस क़त्लेआम को न्यायालयों और जांच एजेंसियों में अपने द्वारा रखे गए गुर्गों के हाथों इतिहास से भी मिटाने की असफल कोशिश कर रहे हैं या उसके ताक में हैं ! फ़ासिस्ट हमेशा अपने किए कामों को तत्कालीन समाज,देश और दुनिया से भी हमेशा छुपाने की भरसक कोशिश करते हैं !अब एक तरफ़ तो ये संघी अपने अंदरूनी गोष्ठियों और जलसों में इस जघन्यतम् क़त्लेआम के लिए मोदी की खूब प्रशंसा भी करते रहते हैं,दूसरी तरफ़ इसके बारे में थोड़ी-सी आलोचना भी लोगों तक नहीं पहुँचने देना चाहते हैं ! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी की यही असल राजनीति है कि क़त्लेआम भी करो और उसे समाज की नज़रों से छिपा भी लो !
वर्तमान मोदीदौर इंदिरा के इमर्जेंसी के दौर से भी भयावह दौर !
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इसके अलावा बारहवीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताब में से 1975 में इंदिरा गाँधी की सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल का भी ज़िक्र हटा दिया गया है। 1975 में कांग्रेस द्वारा लगाए गए आपातकाल में सारे राजनीतिक विरोधियों को जेलों में डाल दिया था। मीडिया, अख़बारों, राजनीतिक रैलियों आदि सब कुछ पर सरकार द्वारा पाबंदी लगाई गई थी। अब पहली नज़र में लग सकता है कि उस वक़्त कांग्रेस की सरकार थी,फिर मोदी कांग्रेस के किए बुरे कामों को क्यों छुपाना चाहता है। इसका जवाब है कि ख़ुद मोदी के राज में भी इंदिरा के इमर्जेंसी दौर भी भयावहतम् दौर चल रहा है ! आज के समय देश में कई अर्थों में आपातकाल से भी ज्यादा भयावह काल चल रहा है ! मीडिया मोदी की गोदी में बैठा हुआ है ! सरकार के गलत और जनविरोधी कामों की थोड़ी-सी भी आलोचना करने पर भी लेखकों, कवियों,प्रोफेसरों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को कथित देशद्रोह के केस लगाकर जेलों में ठूँसा जा रहा है ! राज्य की सारी संस्थाएँ हिंदुत्वी एजेंडे को लागू करने में संघ की मदद कर रही हैं ! इसके अलावा समाज विज्ञान की किताबों में ट्रेड यूनियनों पर लगाई गई पाबंदियों वाला पाठ भी पाठ्यक्रम से निकाल दिया गया है ! आज के भारत में मोदी हुकूमत द्वारा लगातार हमला किया जा रहा है। मज़दूरों के अधिकारों में जो भी थोड़े-बहुत श्रम क़ानून थे,उन्हें भी ख़त्म करके पूँजीपतियों को मज़दूरों की लूट करने की छूट दी जा रही है ! इस सब पर नज़र डालकर सरलता से समझा जा सकता है कि ये “बदलाव ” क्यों किए गए हैं ?
इतिहास को ही सांप्रदायिकरण रंग !
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वर्तमान समय के कथित हिंदुत्ववादी ताक़तों की मुसलमानों,ईसाइयों,सिखों और अन्य अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत किसी से छिपी नहीं है और ये संघी भी समय-समय पर अपनी सांप्रदायिक विचारधारा की नुमाइश करते रहते हैं।हिंदुत्ववादी तत्वों की विचारधारा में एक ख़ास तत्व हमेशा नज़र आता है,वह यह है कि इनके अनुसार अतीत में भारत एक बहुत ख़ुशहाल देश था,जहाँ किसी भी क़िस्म की कोई बुराई ही नहीं थी। विज्ञान,शिक्षा,स्वास्थ्य सुविधा के मामले में भारत बहुत ही अमीर देश था,जहाँ हवाई जहाज चलते थे,प्लास्टिक सर्जरी होती थी, फिर अचानक भारत पर विदेशियों यानी यवनों,यूनानियों, पुर्तगालियों के अलावा अरबों,अफगानियों, इरानियों और मध्य एशियाई देशों के तमाम देशों आदि के मुस्लिम धर्मावलंबियों ने हमला कर दिया और भारतीयों से उनकी संस्कृति ही छीन ली ! अब अपने ग़ैर-वैज्ञानिक और ग़ैर-ऐतिहासिक विचारों को शिक्षा के ज़रिए विद्यार्थियों के मनों में भरने के लिए इतिहास के साथ छेड़-छाड़ की जा रही है ! उदाहरण के लिए सातवीं कक्षा की किताब में से महमूद ग़ज़नवी के हमलों के साथ संबंधित पाठ में यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि ग़ज़नी के हमलों का मक़सद यहाँ के लोगों को लूटना नहीं,अपितु एक धार्मिक उद्देश्य के साथ ये हमले किए गए थे। इस धारणा के अनुसार,ग़ज़नी यहाँ हिंदू धर्म को ख़त्म करने के इरादे से आया था। इतिहास को इस्लाम बनाम हिंदू धर्म बनाकर पेश करना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पुरानी साज़िश रही है ! इसके अलावा दिल्ली सल्तनत संबंधी पाठ भी पाठ्यक्रम में से निकाले गए हैं। मुग़ल दौर के दौरान महाभारत और रामायण के फ़ारसी भाषा में किए अनुवादों के बारे में ज़िक्र करने वाले हिस्से भी पाठ्यक्रम में से हटा दिए हैं ! ताकि मुगलों के अच्छे कामों के प्रति भारतीय हिन्दू आमजन अनभिज्ञ रहे ! कुल मिलाकर यह इतिहास को सांप्रदायिक नज़रिए से लिखने की कोशिश भर है !
जाति व्यवस्था और दलित संघर्षों का इतिहास भी पाठ्यक्रम से बाहर !
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छठी कक्षा की किताब के ‘हमारा इतिहास ’ नामक पाठ में से पुरातन भारत में जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था और जाति आधारित भेदभाव के साथ संबंधित हिस्से भी संघियों को रास न आने की वजह से पाठ्यक्रम से बाहर कर दिए गए हैं। इस पाठ में ब्राह्मणों के ऊँची पदवियों पर होने और समाज में निम्न वर्ग के कामों का दलितों के हिस्से में आने का भी ज़िक्र था ! आश्रम में दलितों और औरतों को पढ़ने से मनाही थी और दलितों को वेद पढ़ने से मनाही होने जैसे प्रमाणिक तथ्य भी अब इस पाठ का हिस्सा नहीं होंगे ! तथाकथित उच्च जाति के लोगों के बराबर बैठने से मनाही, गाँव में से कूड़ा इकट्ठा आदि की सफाई करने और मरे हुए जानवरों को ठिकाने लगाने के निम्न वर्ग के काम करने के बारे में ज़िक्र करने वाले वाक्य भी अब नई पुस्तक में नहीं होंगे। असल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुसार पुरातन भारत में किसी भी प्रकार की कोई भी अशांति या संघर्ष नहीं था। सब वर्ण अपने-अपने काम करते रहते थे और उसी में ख़ुश थे ! कुल मिलाकर यह जातिवाद जैसी अमानवीय व्यवस्था को सही साबित करने की कोशिश है,क्योंकि यह संघ परिवार अपने तथाकथित हिंदू राष्ट्र में भी वर्ण व्यवस्था को फिर से क़ानूनी रूप में लागू करना चाहता है ! यह मनुस्मृति को हिंदू राष्ट्र का संविधान बनाना चाहता है, जो कि सैद्धांतिक रूप में मनुष्यों में ग़ैर-बराबरी,निकृष्टतम् जातिवादी कुव्यवस्था को सही मानता है। इसके अलावा दलित संघर्षों को भी पाठ्यक्रम से बाहर किया गया है !
फासीवादी शासक हमेशा शिक्षा,शिक्षक और बुद्धिजीवियों के खिलाफ रहे हैं !
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इतिहास गवाह है कि जहाँ-जहाँ भी फ़ासीवाद सत्ता में आया है,वहाँ उसने शिक्षा पर बड़े हमले किए हैं। जर्मनी में जब नाज़ी पार्टी हुकूमत में आई,तो शिक्षण संस्थानों द्वारा नाज़ी विचारधारा को फ़ैलाने के लिए पाठ्यक्रमों में यहूदियों के ख़िलाफ़ नफ़रती प्रचार किया गया ! भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक से दीक्षित मोदीजी भी यही काम कर रहे हैं ! फ़ासीवाद निम्न पूँजीपति वर्ग का एक गहरा प्रतिक्रियावादी आंदोलन है,जो अंतिम रूप में बड़े पूँजीपति वर्ग की सेवा करता है। यह अपने विचार मज़बूत करने के लिए शिक्षा को अपने विचारों के प्रचार के लिए इस्तेमाल करता है ! अपने सामाजिक आधार को और मज़बूत करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शिक्षा का भगवाकरण कर रही है ! अपनी विचारधारा को लोगों में फ़ैलाने के लिए शाखाएँ, अखाड़ों के साथ-साथ पूरे देश में इन्होंने विद्या-भारती,सेवा भारती जैसे स्कूलों,शिक्षण संस्थानों का एक ढाँचा खड़ा किया है,जहाँ विद्यार्थियों में दूसरे धर्मों,औरतों, दलितों के प्रति नफ़रती विचार भरे जाते हैं ! वास्तविकता यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय आमजन और लोगों के सामने एक काल्पनिक दुश्मन खड़ा करके अपने असल मालिकों मतलब भारत के बड़े इजारेदार पूँजीपतियों की ही चाकरी कर रहा है !
आरएसएस शिक्षा को सांप्रदायिक रंगों में रंग रही है !
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इस तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आयोजित शिक्षा लोगों की वर्ग चेतना को और भी भोथरा बनाने का काम करती है ! लोगों के मनों में भरे सांप्रदायिक विचार अपरोक्ष रूप से पूँजीवादी व्यवस्था की उम्र लंबी करने का ही काम करते हैं ! वर्ष 2014 से दिल्ली के तख़्त पर क़ाबिज़ होने के बाद मोदी सरकार अब सरकारी संस्थानों का उपयोग करके हिंदुत्ववादी एजेंडे को ही आम लोगों में फैलाया जा रहा है,जिस वजह से अब भारत में फ़ासीवादी तानाशाही का ख़तरा पहले से भी बहुत ज़्यादा बढ़ गया है ! इस हिंदुत्ववादी शिक्षा के माध्यम से सांप्रदायिक घृणा से भरी एक पूरी पीढ़ी को संघ में शामिल होने के लिए तैयार किया जा रहा है,जो उनके एक इशारे पर किसी वैचारिक विरोधी व्यक्ति,कथित अर्बन नक्सली या कथित शूद्र की निर्मम हत्या और किसी अबला दलित या अल्पसंख्यक की लड़की या स्त्री से बलात्कार धड़ल्ले से करने के लिए भी तैयार होगी ! हमें शिक्षा पर इस भगवे हमले का साहसपूर्वक विरोध करना ही चाहिए और इसके विरुद्ध लोगों को सतर्क और लड़ाई के लिए संगठित होने के लिए प्रेरित भी करना चाहिए !
प्रस्तुतकर्ता – श्री विजय जी द्वारा हिस्ट्री ऑफ इंडिया, संपर्क – 94252 45740
संकलन – निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद,उप्र, संपर्क – 9910629632