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भारत के मज़दूर आन्दोलन मे  कॉमरेड नियोगी के संघर्ष और निर्माण का प्रयोग

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शेख अनसार

कॉमरेड शंकर गुहा नियोगी मार्क्सवाद – लेनिनवाद में विश्वास करते थे। अपने समय के सभी साम्यवादी दलों से उनका संबंध रहा है और उनसें सम्बद्ध आन्दोलन में भाग लिया है। इस अनुभव से उन्होंने सीखा कि जब तक मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा को छत्तीसगढ़ की माटी से जोड़कर वहां की सांस्कृतिक विरासत के परिपेक्ष्य में न उतारा जाये, तब तक न्यायपूर्ण समाज रचना का रास्ता स्पष्ट नहीं हो पायेगा। अतः कॉमरेड नियोगी ने छत्तीसगढ़ की परिस्थिति का बारीकी से अध्ययन किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ की जनता की क्षमताओं को पहचाना, उनकी आशाओं – आकांक्षाओं, परिपाटी – परम्पराओं और संस्कृति – सभ्यता को समझा तथा उनके अनुभवों को आत्मसात किया।

कॉमरेड नियोगी ने देखा कि मेहनतकश जनता दो हिस्सों मे बँटी हुई है – एक ओर स्थायी औद्योगिक मज़दूर और दूसरी ओर अस्थायी ठेका मज़दूर, गरीब किसान, आदिवासी, बेरोजगार युवा आदि। औद्योगिक प्रतिष्ठानों के स्थायीं व बेहतर वेतन पाने वाले मज़दूर ज्यादातर छत्तीसगढ़ के बाहर से आये थे। शायद इसी कारण से, संगठित होने के बावजूद, उनकी छत्तीसगढ़ के विकास में आपेक्षाकृत कम रूचि थी। उनका नेतृत्व कर रही केंद्रीय ट्रेड यूनियनें भी उन्हें वेतन-बोनस या आठ घंटे के यूनियनबाजी के दायरे से बाहर निकालने और स्थानीय विकास के प्रश्नों से  जुड़ने की दिशा नहीं दे पा रहे थे।  आपातकाल के अंतिम  दौर में दल्लीराजहरा की लौह अयस्क खदानों के लगभग दस हजार ठेका मज़दूरो ने इस असमानता –  विसंगति को पहचानने लगे थे। वे स्थापित केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के स्थानीय नेतृत्व के मैनेजमेंट-परस्त और मज़दूर-विरोधी चरित्र के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करने लगे थे। उन्हें अब भिलाई इस्पात कारखाने के स्थायी कर्मचारियों की तुलना में अपना दोयम दर्जा मंजूर नही था। बीएसपी मैनेजमेंट का ठेका मज़दूरों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका था। उनकी लड़ाई अब केवल आर्थिक मुद्दों तक सीमित नहीं रह गयीं थी – यह उनकी अस्मिता और प्रतिष्ठा की लड़ाई का रूप ले चुकी थी, ये मज़दूर आठ घंटे के चौहद्दी से निकलकर मज़दूर वर्ग के २४ घंटों क्रियाकलापों मे शामिल होकर अपना जीवन और समाज को संवारने का सपना देखने लगे थे। कॉमरेड नियोगी आपातकाल के बाद जेल से छूटे तो उन्होंने ठेका मज़दूरों के दर्द – समस्याओं को समझा और उनके  भावनाओं से जुड़कर  उनकी लड़ाई से जुड़ गये। आपातकाल में मीसा के तहत देश भर के सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक कार्यकर्ता, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओ गिरफ्तार किये गये उस समय शंकरगुहा नियोगी को भी गिरफ्तार कर पुराने सेन्ट्रल जेल रायपुर के बैरक नं. ४ में रखा गया था, यहीं उन्हें पुराने बीसाली बंदियों और सामाजिक कार्यकर्ता शर्मानंद गाडिया से मुलाकात हुई जो किसी अन्य प्रकरण में निरूद्ध थे। नियोगी जी को प्रारंभिक तौर पर १८५७ के क्रांतिकारी वीरनारायण सिंह के विषय मे जानकारी मिली जब नियोगी जी जेल से रिहा हुए तब संघर्ष के व्यस्त जीवन से समय निकालकर  ठाकुर प्यारेलालसिंह के पुत्र हरिठाकुर से मिलकर सोनाखान के वीरनारायण सिंह के विषय में और जानकारी एकत्र किए। श्री कनक तिवारी,  श्री हरिठाकुर से लम्बी चर्चा के बाद रविशंकर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के डॉ. रमेन्द्र मिश्रा से मिलकर वीरनारायणसिंह पर लिखित दस्तावेज की  जानकारी चाही, विश्वविद्यालय से कोई ख़ास जानकारी उन्हें नही मिल पायीं लेहाज़ा उन्होंने अपने तई वीरनारायण सिंह के संघर्षगाथा को समझने के लिए *छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ* की सबसे पुरानी जीप ७९७१ को लेकर कुछ साथियों के साथ सोनाखान गये। सोनाखानमें नियोगी जी वीरनारायणसिंह के वंशजों से मुलाकात कर अन्य जानकारी हासिल किया। जानकारी प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने ने निश्चय कि वीरनारायणसिंह के गौरवशाली संघर्ष को जनमानस तक पहुंचाने के लिए *शहीद वीरनारायणसिंह* पर एक पुस्तिका लिखा और उसी पुस्तिका के आधार पर छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंडली *नवा अँजोर* का गठन किया , जो जनकवि फागूराम यादव की अगुवाई मे छत्तीसगढ़ के विभिन्न  अंचलों मे प्रदर्शन करती रही है।  

*प्रस्तुतकर्ता – शेख अनसार*

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