अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

निश्चिंत रहो समस्याओं का काल निश्चित है?

Share

शशिकांत गुप्ते

काल की गणना भूत,वर्तमान और भविष्य इसी क्रम में होती है।
इसी क्रम के अनुसार भूतकाल में भ्रष्ट्राचार,महंगाई,आतंकवाद,
कालाधन,मुद्रास्फीति,सीमा सुरक्षा,और परिवारवाद जैसी समस्याएं निरंतर बढ़ रही थी।
भूतकाल में जो विपक्ष में थे,
वे सिर्फ तमाम समस्याओं की आकर, प्रकार और स्वरूप को बढ़ता देख रहे थे।
स्वाभविक है,यदि वे ऐसा नहीं करते तो आज सत्ता में बैठकर जनता को समस्याओं से अवगत कैसे करवातें? शायद इसीलिए ये लोग विपक्ष को महत्व नहीं देतें हैं?
सामान्यज्ञान का उपयोग करने पर
पता चलता है कि, यदि लोकतंत्र में विश्वास होतो, विपक्ष का महत्व समझ में आता है? बगैर विपक्ष के लोकतंत्र मजबूत हो ही नहीं सकता है।
बहरहाल विषय है काल का क्रम।
वर्तमान में भूतकाल में व्याप्त सभी समस्याओं का हल करने का वादा बहुत सशक्त दावे के साथ किया गया है। अभी जुम्मा जुम्मा सिर्फ आठ वर्ष और आधा दर्जन माह ही हुए हैं। उक्त समस्याओं को हल करने के लिए यह समयावधि अपर्याप्त है।
सारी समस्याएं भविष्य ,में हल होगी, इस बात पर देश की जनता ने उम्मीद रखना चाहिए।
भविष्यकाल तब शुरू होगा जब वर्तमान समाप्त होगा?
वर्तमान सशक्त हाथों में सुरक्षित है। वर्तमान के समर्थक एक बाबा ने योग से संजोग से तो पेट्रोल 35 रुपये लीटर बिकवाने का योग बैठाया था।
एक ‘अ’अर्थ शास्त्री ने सलाह दी जो चीज महंगी होगी वह खाना ही नहीं चाहिए।
एक बहुत बड़ा एलान यह हुआ कि भ्रष्ट्राचार को जड़मूल से नष्ठ करने के लिए ना तो खाऊंगा ना ही खाने दूंगा।
सबसे बडी समस्या तो परिवारवाद की है। कुछ लोग परिवारवाद और पुत्र मोह के अंतर पर बहस में उलझे हैं?
उक्त मुद्दों पर समाजशास्त्र के विशेषज्ञों का विश्लेषणात्म अध्यनय है। परिवारवाद एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। पुत्र मोह को याद करने पर सीधे धृतराष्ट्र की याद आती है। धृतराष्ट्र की याद मतलब कौरवों का स्मरण और महाभारत की स्मृति होती है।
द्वापरयुग की याद आते ही प्रख्यात कवि रामधारीसिंह दिनकरजी रचित इन पंक्तियों का स्मरण होता है।
जब नाश मनुज पर छाता है
विवेक पहले ही मर जाता है
द्वापर युग से पुनः कलयुग में प्रवेश करते हैं।
कलयुग में हम त्रेतायुग के भगवान रामजी की जय जय कार कर रहें हैं।
रामभगवान का स्मरण होते ही यह भजन गुनगुना के मन करता है।
तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार
उदासी मन काहे को करें।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें