,मुनेश त्यागी
आज यानि 8अक्टूबर 1967को दुनिया के सबसे बड़े सर्वहारा अंतरराष्ट्रीयतावादी क्रांतिकारी कॉमरेड चे ग्वेरा का शहादत दिवस है, चे ग्वैरा बोलीविया में क्रांतिकारी संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे। इसी संघर्ष में बोलीविया के जंगलों में सीआईए और बोलीविया की सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनका पूरा नाम अर्नेस्टो ग्वेरा था। वे बहुत पढ़ाकू थे। उनके पास तीन हजार से ज्यादा पुस्तकें थीं। वे दुनिया के महान पुरुषों की किताबें और जीवनियां पढ़ते थे और लेनिन, रूसो, बुध उनके प्रिय लेखक थे। उन्होंने यूरोप और दक्षिणी अमेरिका के कई महान लेखकों का अध्ययन किया। उन्हें “चे” की उपाधि क्यूबा की जनता द्वारा क्यूबा की क्रांति में उनके अद्भुत योगदान को देख कर दी गई थी। “चे” के मायने हैं सर, माननीय, सम्मानीय और आदरणीय। बाद में अर्नेस्टो गुवेरा को “चे” के नाम से पूरी दुनिया में जाना गया।
चे ग्वैरा एक अर्जेंटाइनी क्रांतिकारी डॉक्टर थे जिन्होंने पूरी दक्षिणी अमरीका का मोटरसाइकिल से दौरा किया था और विभिन्न देशों में अमेरिका के पूंजीवादी साम्राज्यवाद का खूंखार चेहरा देखा था। अपनी मोटरसाइकिल यात्रा के दौरान चे ग्वेरा ने दक्षिणी अमेरिका में भुखमरी, गरीबी, शोषण, अन्याय, असामानता और पिछड़ेपन के दर्शन किए थे और उन्होंने अपनी आंखों से देखा था कि किस तरह साम्राज्यवादी लुटेरा अमेरिका, दक्षिण अमेरिकी देशों में हस्तक्षेप करता है, वहां अपनी बिट्टू सरकार कायम करता है और वहां की जनता का, प्राकृतिक संसाधनों का और किसानों मजदूरों का शोषण करता है।
उनके साथ जुल्म ज्यादती करता है तो इन्हीं विचारों को देखकर चे ग्वेरा के मन में बैठ गया था होली पक्का विश्वास हो गया था कि साम्राज्यवादी लुटेरा अमेरिका ही दुनिया का सबसे बड़ा दुश्मन है। साम्राज्यवादी लूट और शोषण के रहते दुनिया से भुखमरी, शोषण, अन्याय, जुल्म ओ सितम खत्म नहीं हो सकते। अतः इसे खत्म करने के लिए, इस का विनाश करने के लिए समाजवादी क्रांति जरूरी है और समाजवादी व्यवस्था कायम करने के बाद ही साम्राज्यवाद का विनाश किया जा सकता है।
और इसके बाद, इसी के विनाश के लिए क्रांतिकारी अभियान में जुट गए। बाद में क्रांति की तलाश में लड़ते लड़ते मेक्सिको पहुंच गए थे और वहां पर गरीब तबके के लोगों और कोढियों की सेवा और इलाज करने लगे थे। यहीं पर उनकी मुलाकात क्युबा के क्रांतिकारी फिदेल कास्त्रो और राउल कास्त्रो से हुई और यहीं से चे ग्वैरा कास्त्रो के सशस्त्र दल के साथ क्युबा में क्रांति करने के लिए उनके साथ आ गए। सशस्त्र दस्ते में चे ग्वैरा को एक डॉक्टर के रूप में लडाई में घायलों का इलाज करने के लिए शामिल किया गया था मगर बाद में जब सशस्त्र क्रांतिकारियों की संख्या में कमी हुई तो उनको अपना “दवाई का झोला” छोड़कर “बंदूक और राइफल” थामनी अपनी पड़ी और वे सर्वोत्कृष्ट कोठी के ससस्त्र गोरिल्ला वार फेयर के चैंपियन बन गए।
क्यूबा में चे ग्वैरा ने क्युबन क्रांतिकारियों के साथ मिलकर सफल क्रांति की, किसान मजदूरों का राज कायम किया, किसान मजदूरों की सत्ता कायम की और वहां की जनता को सबको मुफ्त शिक्षा, सबको काम, सबको मुफ्त इलाज, सबको मकान, सबको रोजगार, सबको सुरक्षा मोहिया करायी और तमाम तरह के शोषण, अन्याय, गैर बराबरी, भेदभाव का खात्मा किया और एक समाजवादी समाज का निर्माण किया ।
उनका मानना था की जिस आदमी के दिलो-दिमाग में समाज में फैले अन्याय के प्रति घृणा और नफरत नहीं हो सकती तो वह एक अच्छा क्रांतिकारी नहीं हो सकता उन्होंने यह भी कहा था कि जिस व्यक्ति के दिमाग में अन्याय के प्रति नफरत है और भाई इस अन्याय को खत्म करना चाहता है तो वह मेरा असली कॉमरेड है।
क्युबा में वे कई पदों पर मंत्री रहे जैसे उद्योग मंत्री, शिक्षा मंत्री । इसके बाद उन्होंने सारी दुनिया का दौरा किया, 1959 हिंदुस्तान का भी दौरा किया। मेरठ के गांव पिलाना में आकर वहां के किसानों से मिले और अपनी क्रांति भूमि क्यूबा लौट गए और वहां क्रांति को मजबूत और सशक्त करने में जुट गए। उसके बाद कांगो में चले गए जहां उन्होंने क्रांतिकारी लड़ाई में भाग लिया और वहां के लड़ाकूओं को गोरिल्ला वारफेयर की जानकारी दी। इसके बाद फिदेल कास्तरो के साथ एक सोची-समझी रणनीति के तहत चे ग्वैरा बोलिविया मे क्रांति करने चले गए जहां उन्होंने एक गोरिल्ला सेना का निर्माण किया और इतिहासकार कहते हैं और यह कडवी हकीकत भी है कि अगर कुछ किसान गद्दारी ना करते और उनके कुछ साथी, उनका विरोध ना करते तो उन्होंने वहां पर भी क्रांति सफल कर दी थी।
मगर अफसोस चे ग्वैरा बोलीविया में और क्रांति के लिए लड़ते लड़ते 9,अक्टुबर1967को शहीद हो गए। इसी दिन उन्हीं अमर शहीद महान क्रांतिकारी कामरेड चे ग्वेरा के सम्मान में बलिदान दिवस मनाया जाता है। मरने से पहले बोलीविया का एक सैनिक कामरेड चेहरा से पूछ रहा था कि “तुम क्या सोच रहे हो, तो इस पर कामरेड चे ग्वेरा ने जवाब दिया था कि मैं क्रांति की अमरता के बारे में सोच रहा हूं, क्रांतिकारी विचार हमेशा अमर रहेंगे।” ये अंतर्राष्ट्रीयतावादी क्रांतिकारी कॉमरेड चे ग्वेरा के अंतिम शब्द थे। वे कितने महान थे कि अपने जीवन के आखिरी क्षणों में भी वे क्रांति की अमरता के बारे में सोच रहे थे और यह बात आज भी कितनी सच है कि क्रांति के विचार दुनिया में आज भी अमर और सर्वोपरी बने हुए हैं।
दोस्तों, आइए हम उनकी याद में क्रांति के कारवां को, समाजवादी समाज की व्यवस्था को, समाजवादी विचारों को, आगे बढ़ाएं और उनके चाहे समाज की स्थापना करें और भारत समेत दुनिया में एक ऐसा समाज काम करें जिसमें सबको आधुनिक और अनिवार्य शिक्षा मिले, सबको आधुनिक और आवश्यक इलाज मिले,सबको काम मिले, सबको घर मिले, सबको रोटी, वस्त्र और सुरक्षा मिले।किसी का शोषण ना हो, किसी पर अन्याय ना हो ,किसी के साथ जुल्म ना हो किसी के साथ भी ज्यादती ना हो और पूरे समाज में समता और समानता का साम्राज्य कायम हो। वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे कि जहां धर्म, जाति, नस्ल, वर्ग,वर्ण, क्षेत्र और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव ना हो। आदमी और औरत के साथ बराबरी का बर्ताव किया जाए, जहां औरतों को भोग्या न समझा जाए, सेक्स की वस्तु ना समझी जाए और उसके साथ बराबरी का व्यवहार किया जाए।
महान क्रांतिकारी कामरेड चे ग्वैरा के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। कॉमरेड चे ग्वेरा आज भी दुनिया के हीरो बने हुए हैं, सबसे ज्यादा नौजवान उन्हीं की छपी हुई टी शर्ट पहनते हैं। वे समाजवाद के अमर सेनानी है, क्रांति के अमिट सेनानी हैं। आदमी को शोषण जुल्म अन्याय अत्याचार गरीबी से मुक्त करने के लिए चे ग्वेरा ने अपना देश, अपना पेशा, अपने पद अपने बच्चे और परिवार, सब छोड़ दिया था।
ऐसे महान पुरुष दुनिया में विरले ही मिलते हैं और यह क्यूबा का समाज, वहां की कम्युनिस्ट पार्टी और चे ग्वेरा के साथियों का कमाल देखिए कि चे ग्वेरा के अपने क्रांतिकारी मिशन पर जाने के बाद, उनकी बीवी और बच्चों का पूरा खर्च, शिक्षा और रोजगार की जिम्मेदारी क्यूबा के समाज और सरकार ने उठाया और चे ग्वेरा के बच्चों और उनके परिवार को किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। आज चे ग्वेरा के बच्चे क्यूबा के क्रांतिकारी मिशन में लगे हुए हैं। पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं और बारोजगार हैं।
जब तक यह दुनिया रहेगी, जब तक यह प्रकृति रहेगी, जब तक दुनिया में गरीबी, भुखमरी, शोषण, अन्याय जुल्म ओ सितम और गैरबराबरी की मौजूदगी रहेगी, जब तक इन मानव विरोधी व्यवस्था और प्रवृत्तियों के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा, तब तक डाक्टर मेजर अर्नेस्टो “चे” ग्वैरा का नाम अमर रहेगा।