©नगेंद्र चतुर्वेदी
भेड़ें सवाल नहीं करतीं, वो चली जाती हैं झुंड में एक के पीछे एक चिपकी हुई एक दूसरे से, यहां वहां भी नहीं देखती।
भेड़ों का होता है एक गड़रिया और वह निर्देशित करता है एक टेना, टेने की भेड़ों की पीठ पर होते हैं कुछ निशान जो अलग करते हैं उन्हें दूसरे टेने या झुंड की भेड़ों से।
गड़रिया का होता है एक कुत्ता जो उनकी देखभाल करता है और झुंड से अलग हो रही भेड़ को भौंक कर डरा कर अंदर कर देता है झुंड में और चलता है अपनी मस्ती में।
गड़रिये की होती है एक निश्चित आवाज की सीटी या होंटों को गोल किए बनाई एक आवाज जो भेड़ें समझती हैं। एक आवाज और डंडे से हांक दी जाती हैं भेड़ें।
किसी विशाल चारागाह पर रहती हैं वह एक दड़बे के भीतर जिसकी रखवाली करता है एक कुत्ता। दड़बा खोलते ही वह चरने लग जाती हैं हरी हरी घांस।
वह दिन भर चरती हैं जितना खा सकती हैं खा लेती हैं घांस एक स्वांस में ज्यादा से ज्यादा और फिर आ जाती हैं उसी झुंड में उस दायरे के भीतर।
अच्छी तंदुरुस्त भेड़ के जब बाल उतारे जाते हैं तो सिर्फ वही भेड़ चिल्लाती है, बाकी भेड़ें सिर्फ उसे देखती हैं वह आवाज भी नहीं करतीं।
उन्हें मतलब ही नहीं रहता की अगली बारी उनकी भी आनी है, वह अपने में व्यस्त हैं, चरने में मस्त हैं। चरती हैं और ढेर सारी लेंडियाँ नित्यक्रिया में हगती हैं।
एक चारागाह खाली करने के बाद वो चलती हैं झुंड में किसी नए हरेभरे स्थान की तरफ अपने गड़रिये के मार्गदर्शन में और यह क्रम ताउम्र जारी रहता है।
भेड़ों को चराने वाले इस व्यक्ति के कपड़े रहते हैं एक दम उजले सफेद, एक सफेदपोश नेता की तरह जो हांकता है आवाम, जो भेड़ों सी हो चली है।
बीमार या बबाल करने वाली भेड़ को गड़रिया झुंड से अलग कर अपने साथ रखता है। अब वह कुत्ते के साथ चलती है, डरी डरी और पुनः सामान्य हो फिर टेने का हिस्सा हो जाती है।
आप भी कब भेड़ हो गए आपको पता ना चला। क्योंकि भेड़ सवाल नहीं करती, भेड़ बबाल भी नहीं करती। झुंड से कब एक भेड़ बेंच दी जाती है अन्य को कहां पता चलता है।
पता है भीड़ और भेड़ों की कोई रीढ़ नहीं होती उनका होता है नीड़ जिसे वे कभी नहीं छोड़ती और हम रीढ़विहीन हो भेड़ हो चले हैं। क्योंकि भेड़ सवाल नहीं करतीं, उन्हें हांक रहे सफेदपोश से।।।
©नगेंद्र चतुर्वेदी