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व्यंग -पहचानिए

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 विवेक मेहता 

              भ्रम फैलाया हुआ था कि वह तीन पहिया वाहन का चौथा पहिया है। जबकि वह अब स्टेपनी भी नहीं था। इसी भ्रम का वह फायदा उठाते हुए गुलाब जामुन खाकर मुहावरे को सच साबित कर रहा था।

            बीते जमाने में एक मिशन के रूप में पीर- बावर्ची-भिश्ती बनकर उसके पुरखों ने काम चालू किया था। बुराई,भ्रष्टाचार,शोषण,अनैतिकता की परतें खोलते- खोलते वे खुद भी मिट जाते। तब चौथे पहिये की इज्जत समाज ने धंधे को दी थी। इस काम की ताकत ने कुबेरपतियों को इस ओर खींचा। मिशन रहा नहीं। वह मालिक से नौकर में बदल गया। तब रीढ़ की हड्डी सीधी थी इसलिए इरादों में अंतर नहीं आया। धीरे-धीरे समय के साथ धंधा फला-फूला। बातों के चटकारे किसे पसंद नहीं आते!

               धीरे-धीरे समाज बदला। इरादें बदलें। रीढ़ की हड्डी झुकने लगी। कुछ मालिक नीले फीतो के किस्सों से लोगों को डरा कर पीले फूल उगाने लगे। जिनके कारनामे नंगें करना थे, वे नंगाई पर आ गए। सच्चाई को भ्रम में बदलने से पैसे उपजने लगे। मालिक की उंगलियों पर नाचते वह भविष्य के सुनहरे बनने का सपना पालने लगा। हवा में उड़ता।चीखता-चिल्लाता। भड़कता-भड़काता। फिजाओं में कड़वाहट घोलता। दिन को रात, रात को दिन घोषित करने में एड़ी-चोटी का जोर लगाता। कठपुतली की तरह नाचता। सच्चाई सामने लाने की बात करता प्राणी खुद आका होने के भ्रम में जीता। 

                  आप तो जानते ही हैं उस प्राणी को।

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