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पौराणिक मिथक : कौन हैं सप्तऋषि?

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दिव्या गुप्ता 

     _सभी हिन्दुओं का कोई न कोई गौत्र होता है. यह मूलतः साथ ऋषियों मे से किसी एक पर आधारित होता है. यानी सभी ऋषिपूर्वज की संतान है, डार्विन के सिद्धांत के अनुसार बंदर से मनुष्य नहीं बने हैं._

           हिंदू धर्म में ईश्वर द्वारा दिए गए निर्देशानुसार सप्तऋषि पृथ्वी पर अच्छे और बुरे का संतुलन बनाए रख सृष्टि के संचालन में अपनी भूमिका निभाते हैं।

        वेदों में सप्तऋषियों को वैदिक धर्म का संरक्षक कहा गया है। संस्कृत श्लोक के माध्यम से सप्त ऋषियों के नामों के बारे में बताया गया है जो कि इस प्रकार है :

     *सप्त ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षय:।*

*कण्डर्षिश्च, श्रुतर्षिश्च, राजर्षिश्च क्रमावश:।।*

अर्थात : 

1. ब्रह्मर्षि, 2. देवर्षि, 3. महर्षि, 4. परमर्षि, 5. काण्डर्षि, 6. श्रुतर्षि और 7. राजर्षि- ये 7 ऋषि होते हैं जिन्हें सप्तर्षि की संज्ञा दी गई है।

*सप्त ऋषियों का जन्म :*

      सप्त ऋषियों के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा कहती है कि इनका जन्म ब्रह्मा जी के मस्तिष्क से हुआ था।

       यही कारण है सप्त ऋषि को ज्ञान-विज्ञान, धर्म-ज्योतिष और योग में सर्वोपरि विद्वान माना जाता है। इनके होने से ही हमें धार्मिक वेद और पुराण प्राप्त हुए।

      *सप्त ऋषियों के गुरु :*

सप्त ऋषि जिन्हें ब्रह्मा जी ने अपने मस्तिष्क से जन्म तो दिया था पर उनकी शिक्षा का जिम्मा भगवान शिव के पास था।

       धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने सर्वप्रथम जिन 7 लोगों को योग, शैव कर्म और वैदिक ज्ञान दिया था वे ही आगे चलकर Saptarishi ke naam से जाने गए। सनातन धर्म में जितने भी धार्मिक ग्रन्थ मौजूद है उनमें सप्त ऋषियों का योगदान वर्णित है।

       इसलिए कहा जाता है कि भगवान शिव ही थे जिन्होंने गुरु बनकर सप्त ऋषियों को ज्ञान दिया और सप्त ऋषियों ने उस ज्ञान को संसार में जन-जन तक पहुंचाया।  

*सप्तर्षियों के नाम :*

 ये सातों ऋषि प्राचीन भारत के ऋषि हैं जिनका जिक्र वेदों और अन्य हिंदू ग्रंथों में मिलता है।

       उपनिषदों में इनका विस्तार से वर्णन किया गया है। वेदों में इन सात ऋषियों को वैदिक धर्म का संरक्षक माना गया है।

 इनके नाम हैं- वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक।

*1. वशिष्ठ–*

वशिष्ठ मुनि राजा दरशरथ के कुल गुरु थे। वशिष्ठ ऋषि दशरथ के चारों पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के गुरु थे।

      वशिष्ठ के कहने पर ही राजा दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के कहने पर उनके आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज था।

*2. विश्वामित्र–*

ऋषि विश्वामित्र मुनि होने के साथ ही राजा भी थे। हिंदू ग्रंथों में उनकी एक कथा काफी प्रचलित है।

       जिसमें विश्वामित्र ने ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु गाय हड़पने के लिए युद्ध किया था। युद्ध में वे ऋषि वशिष्ठ के हाथों हार गए थे। ऋषि विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उसे भंग करने की कथा काफी प्रचलित है।

*3. कण्व–*

इनके बारे में कहा जाता है कि हिंदू रीति-रिवाजों में सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्व ऋषियों ने ही शुरू किया था।

       कण्व ऋषियों के आश्रम में ही हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण किया गया था।

*4. भारद्वाज–*

ऋषियों में भारद्वाज को सबसे श्रेष्ण स्थान प्राप्त है। भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे। अथर्ववेद में भारद्वाज के 23 मंत्र मिलते हैं। भारद्वाज स्मृति और भारद्वाज संहिता के रचयिता ऋषि भारद्वाज ही थे।

      ऋषि भारद्वाज ने यंत्र सर्वस्व नाम के ग्रंथ की रचना की थी।

*5. अत्रि–*

ऋषि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता, कर्दम प्रजापति और देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे।देश में कृषि के विकास के लिए ऋषि अत्रि का योगदान सबसे बड़ा माना जाता है।

        अत्र ऋषियों के बारे में कहा जाता है वे लोग सिंधु पार कर पारस यानी कि आज का ईरान चले गए थे, जहां उन्होंने हिंदू यज्ञों का प्रचार किया। माना जाता है कि अत्रि ऋषियों के कारण ही पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ।

*6. वामदेव–*

ऋषि वामदेव को संगीत का सूत्रपात करने के लिए जाना जाता है।वामदेव गौतम ऋषि के बेटे थे।

    वामदेव को जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माना जाता है।

*7. शौनक–*

ऋषि शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के लिए गुरुकुल चलाया था। इस विशाल गुरुकुल व्यवस्था के लिए उन्हें कुलपति का सम्मान हासिल है।

      वैदिक धर्म में ऋषि शौनक के अलावा यह सम्मान किसी को नहीं मिला।

*तारामंडल के 7 ऋषि :*

इन सात ऋषियों के साथ ही सप्तर्षि तारामंडल का जिक्र भी मिलता है। इस तारामंडल को हम आकाश में आसानी से देख सकते हैं। यह तारामंडल आकाश के उत्तरी छोर पर रात में दिखता है। इसे फागुन-चैत महीने से लेकर सावन-भादो महीने तक आकाश में सात तारों के समूह के रूप में देखा जा सकता है। इस समूह में सातों तारे के खास रूप में होते हैं।

      अगर आगे के दो तारों को जोड़ने वाली लाइन को सीधे उत्तर दिशा में बढ़ाएं तो यह ध्रुव तारे तक पहुंचती है। इन सात तारों को आकाश में सात ऋषियों की मौजूदगी बताई जाती है। एक मिथक के अनुसार जिसे सप्तर्सि मंडल नहीं दिखे, उसकी मृत्यु निकट होती है.

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