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जीत जाएगा तो दिल्ली मे अराजकता फैल जाएगी ….

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मनीष सिंह

मई 2014 में मोदी जी राष्ट्र के प्रधानमंत्री हुए. वे काम करने कार्यालय में पहुंचे कि पार्टी ने दिल्ली राज्य में चुनाव की जानकारी दी. यहां केजरीवाल नामक झूठे आदमी ने अन्ना जी को धोखा देकर सरकार बनाई थी.

राजनीति में न आने की बच्चों की कसम खाने वाला ये आदमी पूरा एनार्किस्ट आदमी था, अराजकतावादी. जीत जाता दिल्ली में तो अराजकता फैल जाती. अभी देश को देने के लिए पूरे साढ़े चार साल बचे थे. पहले दिल्ली को बचाना जरूरी था.

दिल्ली को बचाने के लिए 14 रैलियां की. रामलीला मैदान में पूरे देश में सबको 2022 तक मकान देने का भी वादा किया. छह माह मोदी जी की कड़ी मेहनत से बावजूद केजरीवाल पांच साल के लिए आ गए. इसका दुष्परिणाम है कि 2022 तक 600 करोड़ लोगों को मकान न पहुंच सका.

पर पीएम ने अपनी कोशिश न छोड़ी. केजरीवाल के पीछे एलजी को लगाया और खुद वो काम करने पीएमओ पहुंचे लेकिन पार्टी ने बताया कि बदमाश केंचुआ बिहार में चुनाव करवा रहा है.

वहां उनका दुष्ट नीतिषे कुमार ने जंगलराज वाले से महाठगबंधन किया था. बिहार मे जंगलराज आ जाता.अभी चार साल बाकी थे, देश के लिए, पहले बिहार बचाना जरूरी था. बिहार में मोदी जी ने 31 रैली की, बिहार को पैकेज दिया, बोली लगवाई.

सिंकदर को बिहार पहुंचाया, बिहारियों का डीएनए भी चेक कराया, पर डीएनए खोटा निकला. जंगल राज पार्टी जीत गई. बिहार बच न सका, तो वहां राज्यपाल को लगायाए और दिसंबर 2015 में दिल्ली लौटे.

अभी वो कुछ स्मार्ट सिटी बनाने ही वाले थे कि खबर आई कि असम, पच्छिम बंगाल, केरल, पांडिचेरी और तमिलनाडु में चुनाव लगा है.

ये यह बड़े ही महत्वपूर्ण चुनाव थे. मूर्ख जनता नहीं जानती कि लोकसभा जीतने से कुछ नहीं होता है. राज्यसभा जीतनी पड़ती है, जिसे जीतने के लिए विधानसभाऐं जीतनी पडती हैं, वरना विपच्छी बात-बात में अडंगा लगा देते है.

अगर केवल 4 माह वे कांग्रेस मुक्त भारत और भाजपायुक्त राज्यसभा बनाने में लगा दें तो बचे 3 साल देश के विकास में पूरे मन से ध्यान दिया जा सकता था तो कोई 63 रैली की, बैठक, मीटिंग, बूथ मजबूत किया.

लेकिन असम छोड़कर बाकी जगह पुदुचेरी को वनक्कम हो गया. बड़ी दिक्कत हो गई लेकिन मोदी जी पक्के इरादे और धैर्य वाले मनुष्य हैं. धैर्यवान का साथ तो स्वयं देवता भी देते हे. केचुआ ने पंजाब, गोआ, उत्तराखंड, यूपी, मणिपुर में चुनाव लगा दिये.

6 माह जमकर तैयारी हुई. परिश्रम का फल मीठा होता है. यूपी में डबल इंजन की सरकार बनी, मणिपुर, गोवा, उत्तराखंड में सरकार बन गईं लेकिन दिक्क्त ये कि अभी भी राज्य सभा में पूरा बहुमत नहीं था.

और अगले 5 महीने बाद ही अगर हिमाचल और गुजरात हाथ से निकल जाते तो देश का विकास करना कठिन हो जाता. दसअसल गुजरात में पाटीदारों ने नाम में दम किया था. वहां हारने से पूरे विश्व में मोदी जी का सम्मान आहत होता.

अगले कुछ माह पूरी पार्टी और संघ परिवार ने मोदी जी के नेतृत्व में जमकर काम किया और गुजरात का किला बचा लिया लेकिन सूचना मिली कि इसके 2 माह बाद ही मेघालय, नगालैड और कर्नाटक में चुनाव थे.

दक्षिण में कर्नाटक भाजपा का एकमात्र दुर्ग है और फिर नेहरू ने जनरल थिमैया का अपमान भी किया था. ऐसे में कर्नाटक की जीत बेहद जरूरी थी. वक्त बिल्कुल नहीं था, तो वे गुजरात से डायरेक्ट कर्नाटक गए. दो माह दिन-रात मेहनत, 30 रैली की, संगठन मजबूत किया.

लेकिन स्थानीय कार्यकर्ता भीड़ को वोट में बदलने में असफल रहे, भाजपा हार गईं. ऐसे मे पूरा दारोमदार मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम पर आ गया.

ये चुनाव मात्र पांच माह बाद, याने दिसंबर 2018 में होने थे. इसमें हारने का मतलब अगले 4 माह बाद होने वाले लोकसभा इलेक्शन की एक बुरी शुरूआत होती तो सारे राज्यों में मोदी जी ने घर घर दस्तक दी, और मिजोरम में उन्हें भारी सफलता मिली.

अब देश का विकास कोई नहीं रोक सकता था. निपटकर काम करने पीएमओ पहुंचे तो चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव की तिथियां घोषित कर दी. फिर प्रचार शुरू हुआ.

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मई 2019 मे मोदी जी राष्ट्र के प्रधानमंत्री हुए. वे काम करने कार्यालय में पहुंचे कि पार्टी ने दिल्ली राज्य में चुनाव की जानकारी दी. यहां केजरीवाल नामक झूठे आदमी ने अन्ना जी को धोखा देकर सरकार बनाई थी. राजनीति में न आने की बच्चों की कसम खाने वाला ये आदमी पूरा एनार्किस्ट आदमी था, अराजकतावादी.

जीत जाता दिल्ली में तो अराजकता फैल जाती. अभी देश को देने के लिए पूरे साढे चार साल बचे थे. पहले दिल्ली को बचाना जरूरी था. दिल्ली को बचाने के लिए 14 रैलियां की.

2022 तक किसान की आय डबल करने का वादा किया. छह माह मोदी जी की कड़ी मेहनत से बावजूद केजरीवाल पांच साल के लिए आ गए, इसका दुष्परिणाम है कि 2022 तक 600 करोड़ लोगों की आय डबल न हो सकी.

पर पीएम ने अपनी कोशिश न छोड़ी. केजरीवाल के पीछे एलजी को लगाया और खुद वो काम करने पीएमओ पहुंचे लेकिन पार्टी ने बताया कि बदमाश केंचुआ बिहार में चुनाव करवा रहा है.

वहां इस बार प्रिय नीतिष कुमार के सामने दुष्ट तेजस्वी था. वो जीत जाता तो बिहार में जंगलराज आ जाता. अभी चार साल बाकी थे देश के लिए, पहले बिहार बचाना जरूरी था. बिहार में मोदी जी ने 31 रैली की, पार्टी को जितवाया लेकिन बदमाश नीतिश पल्टी मार गया, वो तेजस्वी से मिल गया.

खैर, वो दिल्ली लौटे. अभी डालर को 40 रूपये का करवाने ही वाले थे कि खबर आई कि असम, पच्छिम बंगाल, केरल, पांडिचेरी और तमिलनाडु में चुनाव लगा है.

ये यह बड़े ही महत्वपूर्ण चुनाव थे. मूर्ख जनता नहीं जानती कि लोकसभा जीतने से कुछ नहीं होता है, राज्यसभा जीतनी पड़ती है, जिसे जीतने के लिए विधानसभाऐं जीतनी पडती हैं, वरना विपच्छी बात बात में अडंगा लगा देते हैं.

अगर केवल 4 माह वे कांग्रेस मुक्त भारत और भाजपायुक्त राज्यसभा बनाने मे लगा दें, तो बचे 3 साल देश के विकास में पूरे मन से ध्यान दिया जा सकता था. तो कोई 63 रैली की, बैठक, मीटिंग, बूथ मजबूत किया.

दीदी ओ दीदी की गुहार लगाई, लेकिन उल्टा हो गया. गुहार सुनकर दीदी कुरसी पे आ गई. बड़ी दिक्कत हो गई.

लेकिन मोदी जी पक्के इरादे और धैर्य वाले मनुष्य हैं. धैर्यवान का साथ तो स्वयं देवता भी देते हैं. केचुआ ने पंजाब, गोआ, उत्तराखंड, यूपी, मणिपुर में चुनाव लगा दिये.

6 माह जमकर तैयारी हुई. परिश्रम का फल मीठा होता है. यूपी में डबल इंजन की सरकार बनी लेकिन पंजाब में फावड़े लग गए.

ऐसे में और अगले 5 महीने बाद ही अगर हिमाचल और गुजरात हाथ से निकल जाऐ तो देश का विकास थम जाए. गुजरात में हारने से संघ के भीतर मोदी जी का समर्थन कम हो जाएगा और सरकार खतरे में आ जाएगी.

तो छह माह पूरी पार्टी और संघ परिवार ने मोदी जी के नेतृत्व में जमकर काम किया और गुजरात का किला बच गया लेकिन मुसीबत ये कि तुरंत ही मेधालय, नगालैड और कर्नाटक में चुनाव है.

दक्षिण में कर्नाटक भाजपा का एकमात्र दुर्ग है. वहां से कांग्रेस को प्राणवायु मिल गई तो देश वंशवाद से बर्बाद हो जाएगा. ऐसे में कर्नाटक की जीत बेहद जरूरी थी.

वक्त बिल्कुल नहीं है इसलिए वे गुजरात से डायरेक्ट कर्नाटक चले गए. दो माह दिन रात मेहनत, 30 रैली कर संगठन मजबूत करेंगे.

कुछ गड़बड़ हो गई तो ऐसे में पूरा दारोमदार मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम पर आ जाएगा. इस चुनाव के मात्र पांच माह बाद लोकसभा के चुनाव लगने हैं.

इसमें हारने का मतलब अगले 4 माह बाद होने वाले लोकसभा इलेक्शन की एक बुरी शुरूआत होगी. यहां वे मन प्रण से काम करेंगे. बूथ बूथ जाऐंगे. इनको जीतकर ऐसे तो देश का विकास करने में कोई बाधा नही बचेगी, एक्सेप्ट की कार्यकाल खत्म होने वाला होगा.

वे तुरंत लोकसभा की तैयारी मे लगेंगे. अत्यंत परीश्रम करेंगे. अंतिम बार प्रधनमंत्री बनने के लिए वोट मांगेंगे. जीतेंगे, और …

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मई 2024 में वे राष्ट्र के प्रधानमंत्री होंगे.

वे काम करने कार्यालय मे पहुंचेगे कि पार्टी सहयोगी दिल्ली राज्य में चुनाव की जानकारी देंगे. यहां केजरीवाल नामक झूठे आदमी ने अन्ना जी को धोखा देकर सरकार बनाई थी. राजनीति में न आने की बच्चों की कसम खाने वाला ये आदमी पूरा एनार्किस्ट आदमी है, अराजकतावादी.

जीत जाएगा तो दिल्ली मे अराजकता फैल जाएगी ….

To be continued …

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