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अजबकाशी’गज़बकाशी : तीर्थत्व और पर्यटन

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 पवन कुमार ‘ज्योतिषाचार्य’

      _पूंजी के जिंदा रहने की मजबूरी है कि वह चीजों को एक जैसा बना दे जिससे मास प्रोडक्शन और मास कंसम्पशन हो | एक होना ही श्रेष्ठ होना है , यह दर्शन भी वही से उपजा है | मास प्रोडक्शन कॉस्ट इफेक्टिव होता है और उसका बाजार भी बना बनाया मिल जाता है |_

       तमाम विकसित शहरो को देखे सब एक दूसरे से मिलते जुलते मिलेंगे , वही चौड़ी सड़के , नियॉन लाइट्स , बहुdमंजिली इमारतें , फ्लाई ओवर , मॉल्स यह sample ही applied मिलेगा |

       मल्टीस्टोरी बनाने के लिए सिविल इंजीनियर्स के पास बने बनाये फर्मे है , यकसाँ आर्किटेक्चर है लेकिन एक ताजमहल बनाना हो तो सारा बना बनाया फरमा बेकार हो जाएगा.

      एक एक संग तराश कर बनेगा , हजारों को रोजगार देना पड़ेगा जो कत्तई महंगा पड़ेगा …. लिहाज़ा अब नायाब चीजों का दौर खत्म हो गया है भीमकाय निर्माण जितना चाहो करा लो , बनेगा तो वही , काहे कि कम्प्यूटर भी पैटर्न ही पकड़ता है , पैटर्न एक जैसा हो तो वही चलेगा ….!

काशी के साथ भी यही हुआ है , उसकी uniqueness खत्म कर उसे कॉमन टूरिस्ट स्पॉट बना दिया गया है क्योंकि टूरिस्ट स्पॉट modular होते है , वैसी ही रोड्स , होटल्स , शॉपिंग एरिया , धर्म स्थल पिकनिक स्थल हो जाते है.

       आस्था तिरोहित हो जाती है एंटरटेनमेंट अभीष्ट हो जाता है | टूरिस्ट स्पॉट और तीर्थ में विभाजक रेखा मिट जाती है | पर्यटन और तीर्थाटन का भेद खत्म हो जाता है | 

      तय यह करना था कि बनारस टूरिस्ट के लिए है या धर्मप्राण जन के हेतु | उन्होंने तय कर लिया बनारस को पर्यटन की जगह के रूप में विकसित करने का , यह आसान काम है , टूरिस्ट स्पॉट बनाने की रेडीमेड टूलकिट है , इसके लिए visionary होना जरूरी नही है बस बिजनेस मैन बनना है.

टूरिस्ट स्पॉट तो किसी रेहार को भी बनाया जा सकता है मगर तीर्थ तो होते है , तीर्थ ऎतिहासिक परिघटनाएं है वह निर्मित नही होते सदियों स्वतः विकसित और स्थापित होते है और लोगो की आस्था के केंद्र के रूप में शताब्दी दर शताब्दी पैठते जाते है|

        तीर्थ सदियों का इतिहास समेटे , हजारों किंवदंतियों को समोए रहते है यह बनाने से नही बनते.

        किसी तीर्थ को टूरिज़्म का स्पॉट बनाना यानी जीव से आत्मा निकाल देना | वही गंगा है हज़ारों किमी लंबी अनेक तटीय गांवों शहरों को सींचती जाती मगर हर शहर तो काशी नही बन जाता , काशी एक ही है काशी अद्वितीय है|

       मगर धंधे की जरूरत थी तो उसकी अद्वितीयता खत्म कर उसे कॉमन बना दिया गया | 

ऐसा क्यो है कि जितने भी हिन्दू देवी देवता है , उनके जितने भी स्थान है सब कमोवेश दुर्गम है , गिनती क्या गिनाएं खुद गिन लीजिये.

        कहने का आशय यह कि तीर्थ घूमने तफरीह करने की जगह नही है यह आस्था के केंद्र है , यानी साधने के लिये तप करना होगा , कष्ट झेलना पड़ेगा , क्लिक पर पैकेज फाइनल होते है , वैसे आपको दर्शन नही करना और पिकनिक मनानी है तो अलग बात है| वो एक क्लिक पर manage हो जाती है|

       जिन ढूंढा तिन पाइयाँ  , जो ढूंढेगे उन्हें मिलेगा ….रखा हुआ नही है कि जब जी चाहा मिल गया | निर्मल हृदय से तप करने से प्रभु मिलते है , पैकेज में प्रोडक्ट मिलते है , असली भक्त जानते है कि उनके प्रभु प्रोडक्ट नही है नकली भक्त क्या जाने.

       Tourism एक सेक्टर है जैसे मैन्युफैक्चरिंग है , फार्मा है , मेटल है| किसी आस्था के सेंटर को को टूरिस्ट प्लेस बनाना मतलब टूर ऑपरेटर्स का विकास ,  जो तीर्थ नही कराएंगे पैकेज देंगे |

       2 nights and 3 days 7999 only और अगर आप को दो दिन अस्सी घाट पर ही गुजारने का मन कर जाए , मणिकर्णिका पे जलती चिता देख मन मे वैराग्य उतपन्न हो जाये तो वो ये टूर ऑपरेटर होने नही देंगे.

        रुकना है … तो रुकिए भाड़ में गया वैराग्य पहले पूरे पैकेज का एडवांस जमा है ही , जब तक नही दीजिएगा जान नही छोड़ेंगे.

तब क्या होगा …. होगा यही की दुनिया ए फानी धर्म पर भारी पड़ जाएगी …पूजा कम होगी घण्टा ज्यादा बजेगा ….महादेव नही make my trip सत्य है वही साथ रह जाएगा बनारस खतम हो जाएगा.

       अपने राम को क्या काशी क्या मगहर … गंगा में गिर गए तो हर हर …. पहले धर्म का धंधा होता था वो गलत बात थी , बिल्कुल थी मगर अब धंधे का धर्म निभाया जाएगा यह विकास है|

     आपको यह घोट कर पिला दिया गया है कि यह गलत नही , यही युग धर्म है| हर हर महादेव|

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