उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से सत्ता छीनने वाली भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ अखिलेश यादव ने हर दांव आजमा लिया है लेकिन उन्हें वह सफलता नहीं मिल रही है, जैसी वह चाहते हैं। सत्ता में वापसी तो दूर, उन्हें अपने गढ़ों तक को बचाने के लिए पसीने बहाने पड़ रहे हैं। ऐसे माहौल में निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर हाई कोर्ट के फैसले ने सपा को जैसे संजीवनी दे दी है। बीजेपी के खिलाफ आरक्षण को लेकर मोर्चा खोलने वाले अखिलेश यादव अपने इस दांव के जरिए दलित और पिछड़े वर्ग के वोटरों को साधने की कोशिश में जुटे हैं। इस मसले को लेकर वह काफी ऐक्टिव हैं और इस पर एक प्रदेशव्यापी आंदोलन खड़ा करने की तैयारी में हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित ट्रिपल टेस्ट फार्मूले के तहत निकाय चुनाव के लिए आरक्षण न तय करने पर बीजेपी को हाई कोर्ट से फटकार मिली है। हाई कोर्ट ने कहा है कि प्रदेश की योगी सरकार ने आरक्षण तय करने में प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया। ऐसे में बिना ओबीसी आरक्षण के ही प्रदेश में निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी करे। हाई कोर्ट का यह फैसला आते ही उत्तर प्रदेश की सियासत में हंगामा मच गया। अखिलेश यादव ने मामले को लपक लिया और बीजेपी पर साजिश के तहत आरक्षण खत्म करने का आरोप लगा दिया।
बीजेपी सामाजिक न्याय की दुश्मनः अखिलेश
अखिलेश ने कहा कि बीजेपी सामाजिक न्याय की दुश्मन है और उसने हमेशा ही पिछड़ों के साथ सौतेला व्यवहार किया है। उनका हक छीना है। उन्होंने दलितों को भी आगाह कर दिया कि अभी योगी सरकार ने सिर्फ पिछड़ों का आरक्षण छीना है। आगे वह दलितों का हक भी छीन लेगी और दोनों ही वर्गों की आने वाली पीढ़ियों को गुलाम बना लेगी। अखिलेश ने ऐलान किया कि सपा इसके खिलाफ संघर्ष करेगी। उन्होंने इसी बहाने जातीय जनगणना की अपनी मांग को फिर से दोहरा दिया।
प्रदेश में पिछड़े वर्ग के एकमात्र नेता बनने की कोशिश में अखिलेश ने भारतीय जनता पार्टी के ओबीसी नेताओं पर भी निशाना साधा। उनके निशाने पर खासतौर पर डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य रहते हैं। उनके साथ ही भगवा पार्टी के अन्य ओबीसी नेताओं पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि बीजेपी में जाते ही पिछड़े वर्ग के नेताओं की आत्मा मर जाती है। बीजेपी को पिछड़ा विरोधी बताते हुए अखिलेश यह भी बोले कि योगी सरकार ने पुलिस भर्ती में 1700 ओबीसी और दलितों को नौकरी से बाहर कर दिया।
ट्विटर पर आरक्षण बचाओ आंदोलन
बयानों से हमलों के अलावा अखिलेश ने सोशल मीडिया पर आरक्षण के मुद्दे को लेकर आंदोलन भी छेड़ दिया है। उन्होंने हाई कोर्ट के फैसले के बाद से लगातार आरक्षण को लेकर ट्वीट किए हैं और इस मुद्दे पर ओबीसी-दलित समाज के लोगों को एकजुट करने की कोशिश की है। 27 दिसंबर को अपने एक ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘आरक्षण को बचाने की लड़ाई में पिछडों व दलितों से सपा का साथ देने की अपील है।’
उसी दिन उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा, ‘भाजपा हटाओ, आरक्षण बचाओ। दाने बांटकर खेत लूटने वालों से बचें।’ उन्होंने एक और ट्वीट किया और कहा कि बीजेपी की हार में ही आरक्षण की जीत है। आरक्षण को बचाना है। भाजपा को हटाना है। इसके अगले दिन उन्होंने ट्वीट किया, ‘आरक्षण को ख़त्म करने की कोशिश भाजपा की नकारात्मक राजनीति की विद्रूप साज़िश है।’
गुरुवार को अखिलेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर आरक्षण खत्म करने की साजिश करने के गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि केंद्र में और राज्य में भी पिछड़ों के वोट से सरकार बनी है और दोनों ही सरकारों में पिछड़ों के लिए कोई जगह नहीं है। साजिश करके बीजेपी ने इस कगार पर पहुंचा दिया है कि रिजर्वेशन के लिए रिवॉल्युशन हो जाए। जब तक बीजेपी की सरकार है, पिछड़ों के अधिकार सुरक्षित नहीं हैं।
आरक्षण क्रांति की तैयारी?
उन्होंने इसी दिन एक ट्वीट किया और लिखा, ‘भाजपा की आरक्षण विरोधी साज़िश के ख़िलाफ़ ‘आरक्षण क्रांति’ का समय आ गया है।’ अखिलेश यादव के तेवर देखकर लगता है कि वह प्रदेश में गैर-यादव पिछड़ा और दलितों का वोटबैंक मजबूत करने के लिए बड़ा आंदोलन खड़ा करने की तैयारी में हैं। उन्होंने दोनों ही समुदाय के लोगों से सपा को समर्थन देने की अपील भी की है। सिर्फ वही नहीं, उनके चाचा और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव ने भी अपने कार्यकर्ताओं को कमर कस लेने के लिए कह दिया है।
शिवपाल ने कार्यकर्ताओं को किया तैयार
हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद शिवपाल ने कहा था कि निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण खत्म करना दुर्भाग्यपूर्ण है। सामाजिक न्याय की लड़ाई को इतनी आसानी से कमजोर नहीं होने दिया जा सकता। उन्होंने कहा कि आरक्षण पाने के लिए जितना बड़ा आंदोलन करना पड़ा था, उससे बड़ा आंदोलन इसे बचाने के लिए करना पड़ेगा। कार्यकर्ता तैयार रहें। जाहिर है, नगर निकाय और लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ सपा को बड़ा हथियार मिल गया है। वह अपने इस पुराने हथकंडे को नए तेवर के साथ आजमाने की तैयारी में लगी है और भरोसे में है कि इसका फायदा उसे मिलेगा। ऐसा होगा या नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन यह बात साफ है कि पिछड़ों और दलितों की राजनैतिक पावर यूपी में तख्ता पलटने की हैसियत रखती है।
ओबीसी वोटर्स पर सबकी नजरें
दरअसल, उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोट बैंक हर राजनीतिक दल की प्राथमिकताओं में है। बताया जाता है कि राज्य में 52 फीसदी वोट ओबीसी जातियों का है। यही कारण है कि बीएसपी, बीजेपी से लेकर कांग्रेस और अब सुभासपा तक की नजर इस वोटबैंक पर है। यूपी में सत्ता की चाभी ओबीसी वोटरों के पास ही मानी जाती है। भारतीय जनता पार्टी ने ओबीसी वोटर्स को संतुष्ट रखने के लिए पहली और दूसरी सरकार में भी ओबीसी समुदाय से आने वाले केशव मौर्य को डेप्युटी सीएम बनाया है। साथ ही अनुप्रिया पटेल की अपना दल और निषाद पार्टी का साथ भी लिया है। बीजेपी ने पार्टी का अध्यक्ष भी भूपेंद्र चौधरी को बनाया है, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं।