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अजमेर के प्रमुख समाजसेवी सागरमल कौशिक पर लिखी पुस्तक का विमोचन

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एस पी मित्तल, अजमेर

7 जनवरी को अजमेर के चाचियावास स्थित राजस्थान महिला कल्याण मंडल के परिसर में प्रमुख समाजसेवी स्वर्गीय सागरमल कौशिक पर लिखी पुस्तक सेवाव्रती बाबूजी स्मृति चरित्र का विमोचन हुआ। इस अवसर पर राजस्थान सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति आनंद भालेराव के साथ मैं भी उपस्थित रहा। आमतौर पर ऐसे समारोह में  विमान कर्ता पुस्तक को पढ़े बिना ही भाषण दे देते हैं, लेकिन भालेराव ने स्वर्गीय कौशिक के जीवन को जिस तरह अपने भाषण में प्रस्तुत किया, उस से प्रतीत हुआ कि प्रोफेसर भालेराव ने पहले कौशिक के जीवन को अच्छी तरह समझा है। अपने संबोधन को सार्थक बनाते हुए उन्होंने कहा कि अहंकार नहीं होने की सोच भी अहंकार ही है। हमने कई बार देखा है कि कुछ लोग अपनी ईमानदारी और कार्यशीलता का कुछ ज्यादा ही बयान करते हैं। यह अच्छी बात है कि कुछ लोग सेवा की भावना से निस्वार्थ होकर करते हैं। ऐसे लोगों की समाज में मान सम्मान होना भी चाहिए, लेकिन जब ऐसे व्यक्ति अपनी उपलब्धि पर स्वयं ही अहंकार करे तो इसे भी अहंकार (घमंड) होना ही माना जाएगा। प्रो. भालेराव ने कहा कि उपलब्धि तब है, जब अपने कार्यों की दूसरे लोग प्रशंसा करें। आपको तो सिर्फ अपना कार्य करना है। आज सागरमल कौशिक भले ही हमारे बीच नहीं है, लेकिन उन्होंने जरूरतमंद महिलाओं और विमंदित बच्चों के लिए निस्वार्थ भाव से जो कार्य किए, उस की प्रशंसा आज हम कर रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने भी सेवाओं के फल की अपेक्षा न करने की बात कही है। स्व. कोशिक पर डॉ. स्वाति जाधव द्वारा पुस्तक लिखे जाने पर प्रो. भालेराव ने कहा कि राजस्थान और महाराष्ट्र का ऐतिहासिक संबंध है। मुगलकाल में जब महाराष्ट्र के शिवाजी को आगरा में कैद किया गया था, तब राजस्थान के योद्धाओं ने उन्हें छुड़ाने में मदद की थी। यह अच्छी बात है कि स्वाति जाधव ने मराठी होते हुए भी राजस्थान के प्रमुख समाजसेवी पर पुस्तक लिखी है। प्रोफेसर भालेराव ने समारोह में एक प्रेरणादायक कहानी भी रोचक तरीके से सुनाई। मराठी कहानीकार सोनोपंत दांडेकर की कहानी को अपने शब्दों पर पिराते हुए उन्होंने कहा कि एक बुजुर्ग विधवा महिला के पोते का एडमिशन जब इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ तो उसे 15 सौ रुपए की जरूरत हुई। क्योंकि बुजुर्ग महिला का पांडुरंग विट्ठल भगवान पर बहुत भरोसा था, इसलिए उसने एक पत्र भगवान  विट्ठल  को लिखकर आग्रह किया कि पोते के एडमिशन के लिए 15 सौ रुपए की आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाई जाए। महिला ने पत्र पर पता भी  विट्ठल  भगवान का ही लिखा। जब इस पत्र को पोस्टमैन ने पढ़ा तो उसे महिला के भगवान  विट्ठल  के भरोसे पर आश्चर्य हुआ। यह भरोसा बना रहे इसके लिए पोस्टमैन ने अपने साथी पोस्टमैनों की मदद से 750 रुपए एकत्रित कर बुजुर्ग महिला को भिजवा दिए। लेकिन महिला को तो 15 सौ रुपए की जरूरत थी। इसलिए उसने फिर भगवान  विट्ठल  को पत्र लिखा कि आपने तो मुझे 15 सौ रुपए ही भिजवाए होंगे, लेकिन बीच के लोगों ने 750 रुपए चुरा लिए। इसलिए आप मुझे 750 रुपए और भेजे। बुजुर्ग महिला का जब यह पत्र पोस्टमैनों ने पढ़ा तो उन्हें गुस्सा भी आया, लेकिन बुजुर्ग महिला के भरोसे को कायम रखने के लिए फिर 750 रुपए एकत्रित किए गए और महिला तक पहुंचाए गए। प्रो. भालेराव ने कहा कि ऐसी छोटी छोटी घटनाएं और कहानियां हमारे जीवन को नई प्रेरणा देती है।

प्रेरणादायक है जीवन:

जिस राजस्थान महिला कल्याण मंडल संस्था की स्थापना सागरमल कौशिक ने छोटे से पौधे के रूप में की थी, आज वह समाज सेवा का वट वृक्ष बन गया है। संस्था के प्रमुख राकेश कौशिक ने बताया कि उनके पिता का जीवन ही उनके लिए प्रेरणादायक है। रेलवे में कार्मिक होने के कारण जो वेतन मिलता था, उसमें से ही कुछ राशि समाज सेवा के कार्यों पर खर्च की जाती थी। संस्था की प्रमुख क्षमा कौशिक ने संस्था की गतिविधियों पर विस्तृत तौर पर प्रकाश डाला और बताया कि आज यह संस्था महिलाओं और विमंदित बच्चों के लिए कितना काम कर रही है।

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