~>डॉ. ज्योति
लोहड़ी सिक्खों का धार्मिक त्यौहार नहीं है। इसे गुरद्वारों में अग्नि पूजा हेतु अरदास करके मनाना सिक्ख सिद्धांतों के विपरीत है.
इसे घरों में अथवा सार्वजनिक स्थलों पर कैम्प फायर के रूप में लोक पर्व के रूप में उल्लास पूर्वक मनाया जा सकता है।
लोहड़ी का पर्व मुस्लिम राजपूत राय अबदुल्ला खाँ “दुल्ला भट्टी” की शोर्यगाथा को स्मरण करने का लोकपर्व है।
अकबर के शासनकाल के इस बागी नायक को जो शासकीय धन लूट कर गरीबों की सहायता करता था २६-३-१५८९ को मृत्यु दंड दे कर सरकार द्वारा शरीर मे भूसा भर लाहौर के चौराहे पर लटकवा दिया गया था।
दुल्ला भट्टी ने दो अगवा ब्राह्मण कन्यायों सुन्दरी मुन्दरी को मुगल आक्रांताओं से मुक्त करा कर मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या पर जंगल मे ब्राह्मण युवकों के साथ अग्नि के फेरे लगवा कर शादी करवा दी थी.
इसी घटना की याद मे मकर संक्रान्ति के एक दिन पूर्व यह पर्व मनाया जाता है। इस नायक की कब्र लाहौर के मियाँनी बाजार में स्थित है। (चेतना विकास मिशन)