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भक्ति अंधभक्ति और चमचागिरी में न बदल जाए

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डॉ. सुधा कुमारी

भक्ति मनुष्य की सकारात्मक ऊर्जा है जिसके कितने ही दिव्य और सांसारिक रूप दिखते हैं। दिव्य रूप में यह ऊर्जा ईश्वर के अविनाशी निराकार रूप की भक्ति या ईश्वर के साकार अवतारी रूप की भक्ति में दिखाई देती है, वहीं सांसारिक रूप में यह ऊर्जा माता-पिता की भक्ति, अपने प्रिय खिलाड़ी, अभिनेता, गायक, कलाकार या लेखक की भक्ति में दिखाई देती है। इसी तरह भक्ति के ऐसे और बहुत सारे रूपों में यह सकारात्मक मानवीय ऊर्जा बहती दिखाई देती है। भक्ति करनेवाले को भक्त और भक्ति पानेवाले को ईष्ट देव का कहा जाता है।

भक्ति और प्रेम में थोड़ा अंतर है। प्रेम की गली बड़ी संकरी होती है। प्रेम में दोनों का सम्बन्ध प्रेमपूर्ण होते हुए भी उनके बीच आपसी संदेह, विवाद या किसी झगड़े की सम्भावना बहुत होती है। दोनों के बीच कोई भी तीसरा व्यक्ति आ नहीं सकता और यदि आता है तो उसे बाहर निकलना पड़ता है। उनके बीच किसी झगड़े या हिंसा की सम्भावना भी होती है। किन्तु भक्ति में दोनों का सम्बन्ध बहुत प्रेमपूर्ण, मधुर, समर्पित और आत्मिक होता है और उनके बीच आपसी संदेह, विवाद या किसी झगड़े का कोई स्थान नहीं होता। यहाँ तक कि भक्त और ईष्ट देव के बीच असंख्य भक्त हो सकते हैं पर उनके बीच किसी झगड़े या हिंसा की सम्भावना नहीं होती।

मनुष्य की इस सकारात्मक ऊर्जा यानि भक्ति का ही एक विवादास्पद रूप है- किसी नेता की भक्ति। इसमें भक्त अपने प्रिय नेता को ईश्वर रूप में देखता है किन्तु उसके विरोधी उसे चम्मच या चमचा समझ लेते हैं। एक बार यह ‘भक्त’ वाली छवि बन जाए तो उससे निकल पाना लगभग असंभव हो जाता है। ऐसे लोगों को ‘भक्त’ कहकर व्यंग्य और उपहास की दृष्टि से देखा जाता है। इससे ‘भक्त’ को तो विशेष हानि नहीं होती है क्योंकि वे अनगिनत होते हैं और उनकी कोई विशेष पहचान या प्रतिष्ठित छवि नहीं होती। पर तथाकथित ईष्ट देव यानि नेता को अधिक हानि होती है और विवादास्पद बन जाने के कारण उसकी प्रतिष्ठा में कमी आती है। क्योंकि नेता जितना ही बड़ा और विख्यात होगा उसकी मानहानि उतनी ही अधिक और व्यापक होगी।

ऐसे ‘भक्त’ बेरोजगारी की दुनिया से निकलकर आये हुए नए-नए वेतनभोगी भी हो सकते हैं और सबसे छुपकर केवल इन्टरनेट की दुनिया में रहनेवाले चूहे भी हो सकते हैं। ऐसे ‘भक्तों’ का काम सिर्फ अपने नेता की ‘भक्ति’ या चमचागिरी करना नहीं बल्कि अपने ईष्ट देव या नेता की ‘शक्ति’ दिखाना भी हो सकता है। ये सिर्फ अपने नेता की पूजा नहीं करते, बल्कि अपने नेता के आलोचकों को अपमानित करने, उनसे झगड़ने, उन्हें धमकाने और हिंसा में भी बहुत तेज होते हैं। ऐसे ‘भक्त’, जिहादियों और आतंकवादियों में अधिक अंतर नहीं होता। ये सभी दूसरी विचारधारा के लोगों को स्वतंत्र विचार करने से रोकते हैं और इसलिए उनपर छुप-छुप कर घात लगाते हैं।

भक्त का कार्य भक्ति का है, समर्पण का है, दूसरों को हानि पहुंचाने का नहीं। नेता चाहे तो अपने क़ानून से आलोचकों को स्वयं दण्डित कर सकता है। पर जहां हानि पहुंचाने का यह कार्य भक्त करने लगता है, वहाँ ऐसे नेता को बाहुबली और ऐसी अंध ‘भक्ति’ को ‘गुंडागर्दी’ कहते हैं। ‘ईष्ट देव’ यानि नेता के राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय शत्रु बढ़ने लगते हैं- संख्या में और शक्ति में भी। उसे सिर्फ अपने देश के लोगों से नहीं, परदेस के लोगों से भी प्राण का भय होने लगता है और प्राण बचाने के लिए अपने ‘डुप्लीकेट’ बनाने पड़ते हैं। इस अप्रिय राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति से बचने के लिए तो भक्तवत्सल ‘ईष्ट देव’ को ही कुछ करना पड़ेगा और अपने ‘भक्तों’ को उचित मार्ग दिखाना पड़ेगा ताकि भक्ति अंधभक्ति और चमचागिरी में न बदल जाए।

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