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ब्राह्मणों ने जयपुर में किया शक्ति प्रदर्शन,जाटों की तरह मांगा मुख्यमंत्री का पद

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एस पी मित्तल,अजमेर

आमतौर पर राजनीति में यह माना जाता है कि बनिए-ब्राह्मणों की सुनने वाला कोई नहीं है। जो जातियां एकजुट होती है, उनका ही राजनीति में दबदबा होता है। जो विधानसभा क्षेत्र आरक्षित होते हैं, उन्हें छोड़ कर शेष में सभी राजनीतिक दल जातिगत नजरिए से ही उम्मीदवार तय करते हैं। राजनीतिक दलों के इस नजरिए से बनिए और ब्राह्मण राज नेता काफी पीछे रह जाते हैं। चूंकि इन दोनों ही जातियों में एकता का अभाव रहता है, इसलिए बड़े नेताओं पर दबाव नहीं बनता। लेकिन 19 मार्च को बनियों से आगे निकल ब्राह्मणों ने जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में शक्ति प्रदर्शन किया। इस शक्ति प्रदर्शन में राजस्थान भर के ब्राह्मण एकत्रित हुए। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने स्पष्ट कहा कि आज ब्राह्मणों ने अपनी ताकत दिखाई है। इसलिए भगवान परशुराम पर डाक टिकट जारी हुआ है। ब्राह्मणों की संख्या को देखते हुए ही भाजपा और कांग्रेस के नेता उपस्थित रहे। हालांकि मंच से राजनेताओं को दूर रखा गया, लेकिन राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं को ब्राह्मणों ने अपनी ताकत का अहसास करा दिया। माना जा रहा है कि राजस्थान के प्रत्येक ब्राह्मण परिवार से एक-दो सदस्यों ने 19 मार्च को जयपुर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। सबसे खास बात तो यह रही कि ब्राह्मणों ने अपने खर्चे से जयपुर की यात्रा की। भीड़ को देखकर उत्साहित ब्राह्मणों ने भी राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोक दिया। राजस्थान में आठ माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं, ऐसे में ब्राह्मणों का मुख्यमंत्री पद पर दावा करना राजनीतिक नजरिए से महत्वपूर्ण है। ब्राह्मणों का यह दावा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि एक सप्ताह पहले जयपुर के इसी विद्याधर नगर के स्टेडियम में जाटों का महाकुंभ हुआ था। इस  महाकुंभ में भी जाटों ने मुख्यमंत्री के पद पर दावा किया। जिस प्रकार ब्राह्मणों की महापंचायत में भाजपा कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने शिरकत की, उसी प्रकार जाटों के महाकुंभ में भी जाट राजनेता उपस्थित रहे। चूंकि यह चुनावी वर्ष है, इसलिए हो सकता है कि आने वाले दिनों में अन्य जातियां भी शक्ति प्रदर्शन करें। 19 मार्च की महापंचायत से ब्राह्मणों की एकजुटता को मजबूती मिली है। जहां तक बनियों का सवाल है तो एकजुट होने के लिए वैश्य महासभा बना रखी है। वैश्य समुदाय में अग्रवाल, जैन, खंडेलवाल, माहेश्वरी आदि 17 जातियां को शामिल किया गया है। लेकिन मौजूदा समय में वैश्य समाज में एकजुटता का अभाव है। वैश्य महासभा के अधिकांश पदाधिकारियों का ध्यान अपने कारोबार में ही है। भाजपा के राज्यसभा सांसद रहे रामदास अग्रवाल ने राजस्थान में वैश्य समाज को एकजुट करने का प्रयास किया था, लेकिन अग्रवाल के निधन के बाद रिक्त स्थान को भरा नहीं जा सकता है। हो सकता है कि ब्राह्मणों के शक्ति प्रदर्शन को देखकर वैश्यों में भी कोई चिंगारी निकले। राजनीति में संख्या बल का ही खेल है। 

     

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