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देश की सार्वजनिक आरोग्य व्यवस्था को गौण मानने कीपरंपरा जारी रखनेवाला केंद्रीय अर्थसंकल्प -23-24

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डॉ.अभिजित वैद्य

लोकशाही राज्यव्यवस्था ‘कल्याणकारी राज्यव्यवस्था’ होनी चाहिए l कल्याणकारी राज्यव्यवस्था का अर्थ
है जनता का, खासतौर पर निम्नस्तरकी जनता की कल्याण का विचार करनेवाली राज्यव्यवस्था अपितु
मुट्ठीभर लोगों के कुशल का विचार करनेवाली व्यवस्था नहीं l अगर आपको कल्याणकारी राज्यव्यवस्था
निर्माण करनी हो तो देश की अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदु इस देश का आम आदमी होना चाहिए l आम आदमी
की जिंदगी सुखमय करने की लिए प्रत्येक सार्वजनिक व्यवस्था को अर्थव्यवस्था ने आधार देना चाहिए l आम
इन्सान का जीवन सुखदायी बनानेवाली सार्वजनिक व्यवस्थाओं में सार्वजनिक अरोग्यव्यवस्था बहुत ही
महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है l
भारत जैसे खंडप्राय देश की बहुत बडी आबादी, विशेषतः ग्रामीण तथा जिस देश की ७०% जनता गरीब है
उस देश की आरोग्यव्यव्स्था सुदृढ़ रखनी हो तो उसकी जिम्मेदारी शासन द्वारा ही उठानी चाहिए, उसे
खासगी आरोग्यव्यवस्था के हाथों सौंप देने से काम नहीं चलेगा l भारत जैसे देश की जनता के आरोग्य की
जिम्मेदारी सरकार ने लेनी चाहिए इसका अर्थ ‘रेवड़ी’ (मीठाई) बाँटना नहीं l यह सरकार का बुनियादी
कर्तव्य है l और इस कर्तव्य को नजर अंदाज करने की परंपरा मोदी सरकार ने गत ९ सालतक निरंतर जारी
रखी है l २०२३-२४ के अर्थसंकल्प का अवलोकन किया तो इसके बारे में थोड़ी भी आशंका नहीं लगती l
मोदी सरकार के सभी अर्थसंकल्प तथा विविध निर्णय गरीबों की मजाक करनेवाले तथा धनवान लोगों के
साथ इमान रखनेवाले, शब्दों के बुलबुले और अंकों का मृगजल है इसमें कोई संदेह नहीं l जनता के साथ
धोखा अर्थात देश के साथ धोखा l जागतिक आरोग्य संघटना के निकष के अनुसार देश की जीडीपी के कम से
कम ५% प्रावधान सार्वजनिक आरोग्य व्यवस्था के लिए होनी चाहिए l कोविड की महामारी की सबक से
देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करना कितना आवश्यक है यह बात अब सरकार के ध्यान में आ गई होगी ऐसा
हमारा भ्रम उस समय और उसके बाद प्रस्तुत की हुए अर्थसंकल्पों ने दूर कर दिया l २०१४ से आज २०२३
तक करीबन ९ साल मोदी सरकार २% के दायरे में ही घूम रहे हैं l मोदी और उनके पिलावल की एक मजे
की बात है-वे अतीत का उपयोग करके भविष्य के सपने दिखाते हैं, लेकिन खुद का वर्तमान वास्तव उन के
लिए अस्तित्व में नहीं होता l वर्तमान में अपयश पानेवाली व्यक्ति भी वह अपयश छुपाने के लिए भूतकाल
के असत्य पर भविष्य की काल्पनिक मंजिले खड़ी करने की बकवास करके पूरे विश्व को हमेशा फँसाती रहती
है l
२०२३-२४ का केंद्रीय अर्थसंकल्प सद्यस्थिती का किसी भी प्रकार का प्रमाणिक आत्मपरीक्षण न करके
अगली २५ साल की कालावधि का ‘अमृतकाल’ नामक ‘मृगजल’दिखाने का प्रयास है l जिंदा रहकर मृत्यु
अनुभवित करनेवालों को स्वर्ग या जन्नत की लालूच दिखाने जैसा है l ज्यादातर धर्म यही दिखाते है की मृत्यु

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के उपरान्त जीवन बहुत ही रंगीन होता है और जितने भी हालात उसने सहन किए हैं उसे भूला जा सकता
है l धर्मों द्वारा निर्माण किए हुए इन करेबी संकल्पनाओं का विद्यमान सत्ताधीश अपनी राजनीति के लिए
पूरा उपयोग करते आ रहे हैं l वैसे देखा जाए तो मोदीजी के प्रधानमंत्रीपद के दूसरे कार्यकाल में से यह
अंतिम अर्थसंकल्प है l इस कार्यकाल में अर्थसंकल्प प्रस्तुत करनेवाली अर्थमंत्री निर्मला सीतारमण महोदया
के बारे में अगर कुछ न कहा जाए तो अच्छा ही होगा l उस महिला की अंग्रेजी उनके स्तर की अपेक्षा बहुत
ही अच्छी है l इस मोहतरमा ने अपने भाषण में बढती हुई महँगाई, बेरोजगारी, दरिद्रता तथा आर्थिक
विषमता का जरा भी उल्लेख नहीं किया l खासगी निवेश में कमी हुई है l निर्यात में पतन हुआ है और मॅडम
७% विकास दर का निराधार दावा कर रही है l उनकी ओर से ऑक्सफॅम अहवाल तथा अदानी का उल्लेख
होने की अपेक्षा करना उचित नहीं था l अर्थसंकल्प तैयार करने में उनका असली हिस्सा कितना होता है
ऐसा भी एक सवाल उठता है l ‘सम्राट मोदी’ के कार्यालय की ओर से प्राप्त अर्थसंकल्प केवल पढने का कम
वो कर रही है ऐसा ही लगता है l
कुल ४५ लाख ३ हजार ९७ करोड़ रुपयों का यह अर्थसंकल्प है l इसमें १४० करोड़ जनता की सार्वजनिक
आरोग्य व्यवस्था हेतु केवल ८८,९५६ करोड़ रुपये अर्थात बडी मुश्किल से १.९८%, इसमें अन्यान्य कुछ
घटकों को मिलाकर सरकार ने सार्वजनिक आरोग्य के लिए जीडीपी के २.१% का प्रावधान किया है ऐसा
दिखाया है जो गत साल १.४% था l सार्वजनिक आरोग्य के प्रावधान में उटपटांग घटकों को घुसडने की
फरेबी मूलतः मोदी सरकार ने शुरू की l देश का पूरा राष्ट्रीय उत्पादन है १५८ लाख करोड़ रुपये l उसके
२% तथा उसमें शासन का हिस्सा ४०% प्रामाणिकता के तौर पर देना अगर निश्चित किया तो भी यह
रकम १.५ लाख करोड़ रुपए होनी चाहिए l शिक्षा हेतु प्रावधान है १ लाख १२ हजार ८९९ करोड़ रूपए
अर्थात २.५% l कृषिक्षेत्र के लिए ८४ हजार २१४ करोड़ रूपए अर्थात १.८७% l सुरक्षा के लिए ४ लाख
३२ हजार ७२० करोड़ अर्थात ९.६% और अंतर्गत सुरक्षा पर प्रावधान है १,३४,९१७ करोड़ रूपए अर्थात
कुल १२.६१% I आरोग्य, शिक्षण तथा खेती की एकमुश्त प्रावधान से दुगना प्रावधान बाह्य एवं अंतर्गत
सुरक्षा पर की गई है l जिस देश में उसके शासक हमेशा सामाजिक तनाव रखते हैं और उस देश के
पड़ोसवाले देश के साथ संबंध बिगड़ जाते हैं उन देशों को आरोग्य, शिक्षण, खेती जैसी मूलभूत घटकों को
छोड़कर वो पूरा पैसा सुरक्षा पर खर्च करने के आलावा अन्य कोई विकल्प नहीं रहता l इस पार्श्वभूमि पर
अमेरिका ने २०२१ में सार्वजनिक आरोग्य पर जीडीपी के १७.८% तथा सुरक्षा पर ३.८% खर्च किए l
चीन भी सार्वजनिक आरोग्य पर ६.७% और सुरक्षा पर १.३% खर्च किए यह सच हमे भूलना नहीं
चाहिए l ये दोनों देश आर्थिक एवं लश्करी महासत्ता है l
अर्थसंकल्प के पूर्व केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत अहवाल के अनुसार वर्ष २०१४ में हमारे देश में १,५२,३००
आरोग्य उपकेंद्र थी जो २०२२ में १,५७,९०० तक पहुँच गई l उपकेंद्र सार्वजनिक आरोग्य केंद्र का सबसे
नीचला बिंदू l इस केंद्र में एक महिला परिचारिका या सुईण और एक पुरुष आरोग्यसेवक होता है l
कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की संख्या २०१४ में ५४०० थी जो २०२२ में ५५०० तक पहुँच गई l एक कम्युनिटी
सेंटर ४ प्राथमिक आरोग्य केंद्र के लिए रेफरल केंद्र के रूप में काम करता है जिसमें ३० चारपाईयों का
रुग्णालय, परिचारिका एवं तज्ञ डॉक्टर्स होते हैं l प्राथमिक आरोग्य केंद्र के डॉक्टर्स की संख्या २०१४ में
२७४०० थी जो २०२२ में ३०६०० तक पहुँच गई l प्राथमिक आरोग्य केंद्र – उपकेंद्र एवं कम्युनिटी सेंटर
के बीच की महत्त्वपूर्ण कडी होती है l एक प्राथमिक केंद्र ६ उपकेंद्रों का रेफरल केंद्र के रूप में काम देखता है l
जिसमें ४-६ चारपाई, एक वैद्यकीय अधिकारी एवं परिचारिका, पॅरामेडीक होते हैं l तज्ञ डॉक्टरों की संख्या

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२०१४ में ४१०० थी जो २०२२ में ४५०० पहुँच गई l लॅबोरेटरी एक्सपर्ट की संख्या २०१४ में १६७००
थी जो २०२२ में २२८०० हुई l परिचारिओं की संख्या ६३९०० थी जो २०२२ में ७९९०० हुई l
कर्मचारियों की संख्या में हुई वृध्दि जो दिखाई है वह बहुत ही सामान्य है लेकिन प्राथमिक आरोग्य केंद्र की
संख्या में जो घट हुई है यह बात बडी गंभीर है l प्राथमिक आरोग्य केंद्र सार्वजनिक आरोग्य व्यवस्था की रीढ़
की हड्डी है l २०१४ को देश में २५००० प्राथमिक आरोग्य केंद्र थे उनकी संख्या २०२२ में २४९०० पर आ
गई l भारत की जनता के आरोग्य को अगर न्याय देना हो तो यह संख्या कम से कम १,२५,००० होनी
चाहिए l इसे ‘आरोग्य सेना’ ने मनमोहन सिंग सरकार के शासनकाल में अर्थात कम से कम एक दशक पूर्व
सप्रमाण दिखा दिया है l ऐसी यह अत्यंत लज्जास्पद संख्या केंद्र ने आरोग्य की मूलभूत यंत्रणा की प्रगति के
रूप में प्रस्तुत की l अर्थात ज्यादा से ज्यादा ३०००० डॉक्टर्स और ४५०० तज्ञ अपने इतने बड़े देश की
सार्वजनिक आरोग्य व्यवस्था चला रहे है I इसमें कितने डॉक्टर्स इन केंद्रों पर उपस्थित रहते हैं और सभी
प्रकार की कौन-कौनसी सभी स्तरों पर उपलब्ध होती है यह विषय संशोधन का हो सकता है l इस अहवाल
में केंद्र सरकार ने ऐसा भी दिखया है की देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर होनेवाले कुल खर्च से २०१३-१४
वर्ष में कुल २८.६% खर्चा शासन की ओर से होता था और ६४.२% खर्च जनता अपनी जेब से करती थी l
२०१८-१९ में शासन का हिस्सा ४०.६% तक पहुँचा और जनता का ४८.२% तक नीचे आ गया l
सार्वजनिक आरोग्य व्यवस्था के प्रावधान में बिना वृध्दि करके यह सब कैसे घटित हुआ इसे शासन ने स्पष्ट
करना चाहिए l
अर्थसंकल्प में प्रत्यक्ष रूप में किया हुआ प्रावधान गतवर्ष में जो ८६,८२९ करोड़ रुपयों का था वो अब
८८,६९५ करोड़ रुपयों का है l इसका अर्थ है की यह वृध्दि केवल १८६६ करोड़ रुपयों की याने २.१४%
है l बढ़ती हुई महँगाईका अगर विचार करेंगे तो यह वृध्दि अत्यंत मामूली है l राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान के
लिए तो प्रावधान में ३७४ करोड़ रुपयों का घाटा किया गया है l राष्ट्रीय ग्रामीण आरोग्य अभियान हेतु
अलग प्रावधान का आँकड़ा इस अर्थसंकल्प में दिखाई नहीं देता l ‘मेक इन इंडिया’ का उदघोष करनेवाली
तथा चीन को अहम दुश्मन माननेवाली इस सरकार को किसी भी प्रकार का, विशेषतः वैद्यकीय क्षेत्र में चीन
पर रही निर्भरता गत ९ सालों में जरा भी कम नहीं हुई l आज भी दवाइयाँ निर्मित के लिए आवश्यक ७०%
कच्चा माल एवं अनेक प्रतिजैविके तो ९०% चीन से ही आयात करनी पड़ती है l प्रतिवर्ष ६३००० करोड़
रुपयों से अधिक वैद्यकिय साहित्य अर्थात कम से कम ८०% उपकरण हमें आयात करनी पड़ती है जिसमें
२०% उपकरण केवल चीन से आते हैं l पूरे विश्व में नारा लगानेवाली इस सरकार को ९ वर्षों की प्रदीर्घ
कालावधि में देश को वैद्यकिय साधन तथा औषधों के बारे में थोडा भी आत्मनिर्भर नहीं बनाया l हमारे देश
में वैद्यकीय उपचार महँगे होने का एक मात्र महत्त्वपूर्ण कारण यह है की वैद्यकीय उपकरण तथा औषधों का
कच्चा माल हमें आज भी आयात करना पड़ता है l
आयुष्यमान भारत प्रधानमंत्री जन स्वास्थ्य योजना के लिए रु.७२०० करोड़ का प्रावधान किया है l पहले
प्रावधान की तुलना में इसमें १२% की वृध्दि की है यह एक अच्छी बात है l लेकिन गरीबों को स्वास्थ्य बीमे
का संरक्षण देनेवाली यह योजना सरकारी एवं खासगी अस्पतालों की मदद से शासन चलाती है l गत वर्ष
यह प्रावधान ६४०० करोड़ था l लेकिन प्रत्यक्षरूप में गतवर्षों के प्रावधान की तुलना में आधि रकम का भी
उपयोग नहीं किया गया और जो उपयोग में लाई गई उसमें से ७५% रकम खासगी अस्पतालों की ओर
चली गई l यह अक्षम्य है l अगर शासन ही सरकारी अस्पतालों को दुय्यम दर्जा दे रही है तो शिकायत
किसके पास करें?

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प्रधानमंत्री आयुष्यमान भारत स्वास्थ्य मूलभूत सुविधा अभियान के लिए ४२०० करोड़ रुपयों का प्रावधान
किया गया है l आयुष्यमान भारत योजनांतर्गत १.५ लाख वेलनेस सेंटर्स निर्माण करने का नारा गत अनेक
वर्षों से लगाया जा रहा है और इस साल के अर्थसंकल्प में इसका उल्लेख भी नहीं है l लेकिन ये १.५ लाख
वेलनेस सेंटर्स मूलतः जो प्राथमिक आरोग्य केंद्र तथा उपकेंद्र हैं उनका रुपांतरण हो सकता था, नए सिरे से
निर्माण नहीं किया जानेवाले थे l जब मोदी शासन शुरू हुआ तब देश में १,५२,३०० उपकेंद्र तथा २५०००
प्राथमिक केंद्र, ऐसे कुल मिलाकर १,७७,३०० केंद्र थे l अर्थात जो योजनाएँ पहले से ही अस्तित्त्व में थी उन
योजनाओं के नाम बदलकर या उसका दोबारा उपयोग करके श्रेय किस तरह से हासिल करना इसका यह
उत्कृष्ट उदहारण है l
राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम हेतु १३३ करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है l मानसिक
बीमारी के बारे में आज भी लोगों के मन में बहुत गलतफहमियाँ हैं l वे इसके कारण दूर होने की संभावनाएँ
बहुत ही कम है l एआयआयएमएस (एम्स) के आधार पर नए वैद्यकिय महाविद्यालयों का निर्माण करने हेतु
६८३५ करोड़ रुपयों का प्रावधान किया है l स्वतंत्र भारत का निर्माण करने हेतु पंडित नेहरूजी ने दूर की
सोच रखकर जो घटक पूरे किए उसमें ‘एम्स’ एक संस्था है l जो वैद्यकिय संशोधन और शिक्षा का अंतराष्ट्रीय
अस्पताल दिल्ली में १९५६ में शुरू किया गया था l आगे चलकर अटलबिहारी वाजपेयी जी ने ६ नए ‘एम्स’
की घोषणा की लेकिन इसका निर्माण मनमोहनसिंग जी के शासनकाल में हुआ l मोदी सरकार ने २०१४ में
सत्ता में आने पर नए १५ ‘एम्स’ की घोषणा की लेकिन अंशतः केवल ६ ‘एम्स’ का निर्माण हुआ l फ़िलहाल
१६ ‘एम्स’ निर्माण होने की प्राथमिक अवस्था में है और जनवरी २०२५ तक वे पूरी तरह से कार्यरत होंगे
ऐसा सरकार का कहना है l ये ‘एम्स’ पूरे देश में होंगे l उसमें वैद्यकिय शिक्षण संबंधित राज्य की भाषा में
दिया जाएगा क्या ? इसे अमित शहा जी ने निश्चित करना आवश्यक है l वैद्यकिय ज्ञान का महासागर
स्थानीय भाषाओँ में किस तरह से उपलब्ध किया जाएगा यह भी उनहोंने स्पष्ट करना चाहिए l अगर ऐसा
हुआ तो राष्ट्रीय स्तर पर स्पर्धा परीक्षाओं का आयोजन करने का मतलबही नहीं l अल्पशिक्षित एवं
अल्पज्ञानी स्वार्थी और विशेषतःधर्मांध लोग जब शासन चलाते है तब उनके अनेक निर्णय जनता
का जीवन ध्वस्त करनेवाले होते हैं l
इस अर्थसंकल्प में १५७ नर्सिंग महाविद्यालय शुरू करने की घोषणा की है l अर्थात अभी जो वैद्यकीय
महाविद्यालय हैं उसमें वे शुरू होनेवाली है l यह एक अच्छी बात है l देश में आज कम-से-कम ७.५ लाख
परिचारिकों की आवश्यकता है l लेकिन ये नर्सिंग महाविद्यालय कब शुरू होगी और उनमें से प्रतिवर्ष
कितनी परिचारिकाएँ तैयार होगी इसकी योजना होनी चाहिए l अन्यथा यह भी घोषणा केवल कागज
परही रहेगी l
वैद्यकीय संशोधन हेतु २६६३ करोड़ रुपयों का जो प्रावधान था उसमें २०% वृध्दि करके उसे ३२०१ करोड़
किया गया है l लेकिन पूर्व प्रावधान का परिवर्तित आँकड़ा अगर ध्यान में लिया तो यह वृध्दि केवल ४%
है l महामारी एवं संसर्गजन्य बिमारियों के संशोधन हेतु पहली बार ६९० करोड़ रुपयों का प्रावधान किया
गया है l लेकिन प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना जो कोविड की महामारी में काम करनेवाले आरोग्य
रक्षकों का प्रावधान ७२% तक घटाकर २२६ करोड़ रुपए किया गया है l
अतः मोदी शासनकाल का कोई भी अर्थसंकल्प सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर गंभीरता एवं
आत्मीयता से देखनेवाला नहीं है l या इस सरकारने इसे कभी भी प्रधानता नहीं दी l अदानी जैसे उद्योगपति

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को हर वर्ष कम से कम डेढ़ लाख रुपयों का कर माफ़ करनेवाले इस सरकार से ऐसी अपेक्षा करना भी
पागलपन है l केवल इतनी ही रकम में देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में विशेष बदल हो सकता है l

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