मुनेश त्यागी
अंबेडकर 14 अप्रैल 1891 को पैदा हुए थे, उनके पिता राम जी और माता रमाबाई थी ।भीमराव अंबेडकर को अपने जन्म से ही संघर्ष का सामना करना पड़ा था, उनको सामाजिक अन्याय का सामना करना पडा। नाई ने उनके बाल नहीं काटे, गाड़ी वाले ने गाड़ी पर नहीं बिठाया, तांगे वाले ने तांगे पर नहीं बिठाया, पानी नहीं पीने दिया गया, मंदिरों में घुसने नहीं दिया गया, तालाबों से पानी नहीं पीने दिया गया, ऊंची जातियों ने कमरा नहीं दिया सड़क पर चलने तक की मनाही उनको झेलनी पड़ी।
अंबेडकर अपने बचपन से ही पढ़ाकू प्रवृत्ति के विद्यार्थी थे, इसी मनोवृति के तहत उन्होंने शिक्षा की कई डिग्री हासिल की m.a. एमएससी,डीएससी, बार एट ला आदि डिग्रियां उन्होंने प्राप्त की। वे जातिवाद को एक कोढ समझते थे, जातिवाद और वर्ण व्यवस्था को कोढ समझते थे।
अंबेडकर ने क्या किया? उन्होंने जनता को वाणी दी, नारे दिए, लड़ना और संघर्ष करना सिखाया,कालेज खोले, अखबार और पत्र निकाले, लेख लिखे, किताबें लिखी, ज्ञान प्राप्ति की, जनता को जगाया, खतरे मोल लिए, तर्क करना सिखाया, शिक्षा का प्रचार किया, मनुवाद की कब्र खोदी और श्रमिक एकता की बात की।
वह एक ऐसे समाज का सपना देखते थे जिसमें भाईचारा हो, बंधुत्व हो, शोषण ना हो ,समता और समानता हो, अन्याय न हो, भेदभाव ना हो और ऐसे समाज की स्थापना के लिए पूरी जिंदगी लगे रहे। उन्होंने पत्थर खाए, जलसों का नेतृत्व किया, सत्याग्रह किए, तालाबों मंदिरों में प्रवेश कराए, जाति की खाई को पाटने वाला पुल बने। अन्याय, अत्याचार का विरोध किया। वे अवैज्ञानिकता, अंधविश्वासों, पाखंडों और अज्ञानता के जानी दुश्मन थे।
वह कहते थे कि बंधुत्व के बिना प्रजातंत्र समता, समानता, न्याय, गणतंत्र, धर्मनिरपेक्षता सब अधूरे हैं। उनका कहना था कि अस्पृश्यता और असमानता के विनाश के लिए असली जनवाद और क्रांति की जरूरत है। वे विद्रोह का प्रतीक थे, विज्ञान के शिल्पी थे। अज्ञान, अत्याचार, दमन, भेदभाव के खिलाफ सतत संघर्ष किया और वे चिर विद्रोही थे। उन्होंने अपने जीवन में नारा दिया,,, अस्पर्शता जलाओ, जातिभेद जलाओ, मनुस्मृति जलाओ और उन्होंने यह किया भी । उन्होंने भारत की जनता को नारे दिए,,, शिक्षित हो, संगठित हो, संघर्ष करो प्रचारक बनो और आशावादी बनो। उनके ये कमाल के नारे हैं, जिन्हें आज भी हमारी जनता अपने संघर्षों में यूज करती है।
अंबेडकर साहेब जन्मजात बागी थे। कांग्रेस से बगावत, गांधी से बगावत, हिंदू समाज से बगावत, जातिवाद से बगावत, वर्ण वाद से बगावत। वह उच्च कोटि के त्यागी, तपस्वी, संघर्षी, अविराम विद्रोही, तेजस्वी वक्ता, लेखक, महान विचारक, आंदोलनकर्ता, चिरविद्रोही, पुस्तक प्रेमी, संयमी, मितव्यई, पढ़ाकू और सत्रह अट्ठारह घंटे अध्यन करने वाले स्वाबलंबी व्यक्ति थे।
उनकी लिखी पुस्तकों की सूची भी लंबी है जैसे शूद्र कौन?, जाति विनाश, हिंदुत्व की पहेलियां, भारत में जातियां, भारत में खेती-बाड़ी और उनका निदान, रुपए की समस्या,पाकिस्तान का विचार। वे स्पष्ट वक्ता थे, अपनी बात के पक्के थे, अपनी धुन के पक्के थे, वह पूंजीवाद के और ब्राह्मणवाद के जानी दुश्मन थे। वह इन दोनों को समाज का दुश्मन समझते थे। वे संविधान शिल्पी थे।
उन्होंने अपने मिशन को पूरा करने के लिए प्रोफेसर, लेक्चरर, जज जैसे पद छोड़ें, समाज सेवा के लिए नौकरी नहीं की और वकालत की, ताकि अभावग्रस्त और वंचितों की कानूनी सहायता की जा सके और मजदूरों के संघर्ष को आगे बढ़ाया जा सके। उनका मानना था कि हिंदू धर्म एक रोग है, एक विकृति है, यह अधिकांश जनों को धन संग्रह नहीं करने देता , अशिक्षित रखना चाहता है, निर्धन रखना चाहता है, अनपढ़ रखना चाहता है, मंदिर नहीं जाने देता, यह भाईचारे और समानता का विरोधी है। यह लोगों में छुआछूत फैलाता है और उनको अछूत ही बनाए रखना चाहता है।
हिंदुत्ववादी राष्ट्र के बारे में उनका कहना था कि हिंदू धर्म स्वतंत्रता, समता, भाईचारे का दुश्मन है, हिंदुत्ववादी राष्ट्र को किसी भी कीमत पर बनने से रोको ,यह था उनका सपना। वे समरसता,आजादी, समानता, भाईचारे, जातीय एकता और समस्त श्रमिक एकता के हामी थे। वे मनुवाद, जातिवाद, वर्णवाद, जातीय शोषण, अन्याय और भेदभाव के शत्रु और विरोधी थे। उनका कहना था कि जब तक समाज में सभी को आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक आजादी नहीं मिलेगी तब तक हमारा समाज आजाद नहीं हो सकता और उन्होंने जोर देकर कहा था कि जब तक हमारे देश के समस्त नागरिकों को आर्थिक आजादी नहीं मिल जाती तब तक राजनीतिक आजादी के कोई मायने नहीं है।
उन्होंने जो संविधान लिखा था, आज उस पर जातिवाद, संप्रदायिकता, फासीवाद, पूंजीवाद, क्षेत्रीयता और भाषावाद के भयंकर खतरे और हमले मौजूद हैं। हमें किसी भी कीमत पर अंबेडकर साहब के इन विचारों को बचाना होगा और हमें आज यह सोचना है कि आखिर अंबेडकर साहब के सपने कैसे पूरे होंगे। आज पूरा का पूरा लुटेरा शासक वर्ग अंबेडकर के बनाए संविधान पर हमले कर रहा है, वह संविधान के सिद्धांतों पर, प्रस्थापना, प्रतिज्ञा और आदर्शों का घोर विरोध उल्लंघन कर रहा है। वह अंबेडकर के सपनों, विचारधारा, मान्यताओं और सिद्धांतों को मटिया मीट कर रहा है और एक तरह से अंबेडकर के विचारों की हत्या कर रहा है।
डॉक्टर अंबेडकर ने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, वैज्ञानिक संस्कृति और किसानों मजदूरों की बेहतरी की जो बात संविधान में की थी, इन मुद्दों को लेकर 1917 में हुई रूसी क्रांति के बाद रूस में धरती पर उतारा जा चुका था। वहां पर क्रांति के बाद सबको शिक्षा, सबको स्वास्थ्य, सब को रोजगार, सबको घर, जमीन और धन में सब का हिस्सा आदि मूलभूत बातें संविधान में लिखी गई थीं और इन पर अमल करते हुए अगले 25 सालों में रूस दुनिया का सबसे विकसित और एक महाशक्ति बन बैठा। इन्हीं सब मुद्दों को अंबेडकर ने भारत के संविधान में शामिल किया था। यहीं पर हम कहना चाहते हैं कि काश अंबेडकर भी संविधान में शिक्षा और रोजगार को बुनियादी अधिकार बना देते, तो आज भारत की, भारत के संविधान की और उनके विचारों की यह दुर्गति न होती, जो आज हो रही है। फिर भी अंबेडकर सामाजिक क्रांति के क्रांतिधर्मां थे। उन्होंने क्रांतिकारी विचारों को संविधान में जोड़कर एक महान भूमिका अदा की थी। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि अंबेडकर के सपनों को लागू करने के लिए क्रांति की नई पटकथा लिखें और क्रांति की इस अधूरी कहानी को, हम सब एकजुट होकर उनके क्रांतिकारी विचारों को धरती पर उतारें।
इसमें हमारा एक ही कहना है कि तमाम मेहनतकश मजदूरों, किसानों को, नौजवानों को,महिलाओं को एकजुट करो और उनको संग्राम में लगाओ, किसानों मजदूरों की सरकार कायम करो, दुनिया के सारे क्रांतिकारी समाजवादी देशों के इतिहास का अध्ययन करें और उन सब से एकजुट नतीजा निकालकर जनता की एकता कायम करें।आज एलपीजी ने यानी,,,, लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन की आर्थिक नीतियों ने आरक्षण को नाकाम कर दिया है और संविधान में जो सपने अंबेडकर साहब ने संजोए थे उसके लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। आज अंबेडकर के मिशन के रास्ते में अनेक समस्याएं और चुनौतियां खड़ी हुई हैं। यह व्यवस्था लगभग फेल हो चुकी है। हमारी जनता आज भी अन्याय का शिकार है हमारे देश में आज पांच करोड़ से ज्यादा मुकदमे विभिन्न अदालतों में पेंडिंग हैं जिस वजह से जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल रहा है यह स्थिति डॉक्टर अंबेडकर के विचारों और सपनों के बिल्कुल विपरीत है।
आज हमें विभिन्न चुनौतियों का सामना करना होगा। इन चुनौतियों का सामना करने के बिना और समस्याओं का समाधान किए बिना हम अंबेडकर साहब के सपनों का भारत नहीं बना सकते। उनके सपनों को पूरा नहीं कर सकते। हमें जातिवाद से लड़ना है, दिन रात बढ़ती जा रही आर्थिक असमानता से लड़ना है और इसे रोकना है, सांप्रदायिकता से लड़ना है, सड़े हुए पूंजीवाद से लड़ना है, ऊंच-नीच की और बड़े छोटे की मानसिकता से लड़ना है और जनता की टूट से लड़ना है, उसके बिखराव से लड़ना है और हमें आपसी मनमुटाव और आपसी बिखराव से भी लड़ना होगा। आज की परिस्थितियों में हमें किसी भी दशा में एकजुट होना पड़ेगा, हमें इन सब मुद्दों पर जनता को एकजुट करना होगा और मिलजुलकर लड़ाई लड़नी होगी, तभी अंबेडकर के सपनों का भारत बनाया जा सकता है।