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सपनों के प्रमुख प्रकार और आपके विकास में उनकी भूमिका

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 डॉ. विकास मानव

(1).

    पहले प्रकार के स्‍वप्‍न तो मात्र कूड़ा करकट होते हैं। हजारों मनो विश्लेषक बस कूड़े पर कार्य कर रहे है; यह बिलकुल व्‍यर्थ है। ऐसा होता है क्‍योंकि सारे दिन में, दिन भर काम करते हुए तुम बहुत-कुड़ा कचरा इकट्ठा कर लेते हो। बिलकुल ऐसे ही जैसे शरीर पर आ जमती है धूल।

    आपके लिए होती है स्‍नान की जरूरत, एक सफाई की। इसी ढंग से मन इकट्ठा कर लेता है धूल को। लेकिन मन के स्‍नान कराने को कोई उपाय नहीं। इसलिए मन के पास होती है एक स्‍वचलित प्रक्रिया सारी धूल और कूड़े करकट को बहार फेंक देने की।

     पहली प्रकार का स्वप्न कुछ नहीं है सिवाय उस धूल को उठाने के जिसे मन फेंक रहा होता है। यह सपनों को बड़ा भाग होता है। लगभग नब्‍बे प्रतिशत। सभी सपनों का करीब-करीब नब्‍बे प्रतिशत तो फेंक दि गई धूल होती है। मत देना ज्‍यादा ध्‍यान उनकी ओर। धीरे-धीरे आपकी जागरूकता विकसित होती जाएगी। आप देख पाओगे की धूल क्‍या होती है।

(2).

      दूसरे प्रकार का स्‍वप्‍न एक प्रकार की इच्‍छा की परिपूर्ति है। बहुत सी आवश्‍यकताएं होती है। स्‍वभाविक आवश्‍यकताएं। लेकिन पंडित-पुरोहितों ने और उन तथाकथित धार्मिक शिक्षकों ने आपके मन को विषैला बना दिया है।

      जितनी इच्छाएं है चेतन मन की। अचेतन किन्‍हीं इच्‍छाओं को नहीं जानता है, इच्‍छाओं की फिक्र अचेतन को नहीं है। होती क्‍या है इच्‍छा?इच्‍छा फूटती है तुम्‍हारे सोचने-विचारे से, शिक्षा से, संस्‍कारों से।

   आप देश के राष्‍ट्रपति होना चाहोगे; अचेतन को इस बात की फिक्र नहीं है। राष्‍ट्र के राष्‍ट्रपति हो जाने में अचेतन की कोई रूचि नहीं है। अचेतन को तो मात्र इसमें रूचि है कि एक परितृप्‍ति जीवंत समग्रता किस प्रकार हुआ जाए। लेकिन चेतन मन कहता है। राष्‍ट्रपति हो जाओ।

    और यदि राष्‍ट्रपति होने में आपको अपनी स्‍त्री को त्‍यागना पड़े तो त्‍याग देना उसे। आपकी तुम्‍हारी देह की बलि देनी पड़े तो दे देना। यदि बाकी सुख चैन त्‍यागना पड़े तो त्‍याग देना।

    दूसरे प्रकार के स्‍वप्‍न के पास आपके सम्‍मुख उद्घाटित करने को बहुत कुछ होता है। दूसरे प्रकार के साथ  परिवर्तित करने लगते हो अपनी चेतना को,  बदलने लगते हो आने व्यवहार को, अपने जीवन का ढांचा बदलने लगते हो। अपनी आवश्‍यकता ओर की सुनो जो कुछ अचेतन कह रहा हो, उसे सुनो।

       हमेशा याद रखना कि अचेतन सही होता है। क्‍योंकि उसके पास युगों-युगों की बुद्धिमानी होती है। लाखों जन्‍मों से अस्‍तित्‍व रखते हो। चेतन मन तो इसी जीवन से संबंध रखता है। यह प्रशिक्षित होता रहा है विद्यालयों में और विश्‍व विद्यालओं में।

      परिवार और समाज में जहां  उत्‍पन्‍न हुए हो, संयोगवशात उत्‍पन्‍न हुए हो। अचेतन साथ लिए रहता है तुम्‍हारे सारे जीवनों के अनुभव। यह वहन करता है उसका अनुभव जब तुम एक चट्टान थे, यह वहन करता है उसका अनुभव जब आप एक वृक्ष थे।

    वह साथ बनाए रखता हे उसका अनुभव जब तुम पशु थे—यह सारी बातें साथ लिए रहता है। सारा अतीत। अचेतन बहुत बुद्धिमान है और चेतन बहुत मुर्ख। ऐसा होता है क्‍योंकि चेतन मन तो मात्र इसी जीवन का होता है। बहुत छोटा, बहुत अनुभवहीन। वह बहुत बचकाना होता है। अचेतन है प्राचीन बोध उसकी सुनो।

      अब पश्‍चिम में सारा मनोविश्‍लेषण केवल यही कर रहा है और कुछ नहीं। दूसरे प्रकार के स्‍वप्‍न पर ध्‍यान दे रहा है। और उसी के अनुसार तुम्‍हारे जीवन ढाँचे को बदल रहा है। और मनोविश्‍लेषण ने मदद की है बहुत लोगों की।

      इसकी कुछ अपनी सीमाएं है, तो भी इसने मदद दी है। क्‍योंकि कम से कम यह बात, दूसरे प्रकार के स्‍वप्‍न को सुनना। यह क्रिया जीवन को बना देती है अधिक शांत, कम तनावपूर्ण।

(3).

 तीसरे प्रकार का स्‍वप्‍न अति चेतन से आया संकेत होता है। दूसरे प्रकार का स्‍वप्‍न अचेतन से आया संप्रेषण है। तीसरे प्रकार का स्‍वप्‍न बहुत विरल होता है। क्‍योंकि हमने अति चेतन के साथ सारा संपर्क खो दिया है। लेकिन फिर भी यह उतरता है, क्‍योंकि अति चेतन आपका है।

     हो सकता है कि यह बादल बन चुका हो और आकाश में बढ़ गया हो, विलीन हो गया हो। हो सकता है, कि दूरी बहुत ज्‍यादा हो, लेकिन यह बस भी तुम्‍हारी पकड़ में है, और सदा से था। यह लंगर डाले है अब भी आप में।

       अति चेतन से आया संप्रेषण बहुत विरल होता है। जब तुम बहुत-बहुत जागरूक हो जाते हो केवल तभी तुम इसे अनुभव करने लगोगे। अन्‍यथा। यह उस धूल में खो जायेगा जिसे मन फेंकता है सपनों में। और जाएगा उस आकांक्षा पूर्ति में जिसके सपने मन बनाये चला जाता है;वे अधूरी दबी हुई चीजें।

     यह उनमें खो जायेगा। लेकिन जब तुम जागरूक होते हो तो यह बात हीरे के चमकने जैसी होती है—वे सारे कंकड़ जो चारों और है उनसे नितांत भिन्‍न।

      जब आप अनुभव कर सकते हो और वह स्‍वप्‍न पा सकते हो जो अति चेतन से उतर रहा होता है। तो उसे देखना,उस पर ध्‍यान करना। वहीं  मार्गदर्शन बन जाएगा। वह ले जाएगा जीवन के उस ढंग तक जो कि आपके अनुकूल पड़ सकता है। ले जाएगा सम्‍यक् अनुशासन की ओर। वह सपना भीतर एक गहन मार्ग दर्शन बन जाएगा।

     चेतन के साथ ढूंढ सकते हो गुरु को। लेकिन गुरु और कुछ नहीं होगा सिवाय शिक्षक के। अचेतन के साथ खोज सकते हो गुरु को। लेकिन गुरु एक प्रेमी से ज्‍यादा कुछ नहीं होगा– एक निश्‍चित व्‍यक्‍तित्‍व के, एक निश्‍चित ढंग के प्रेम में पड़ जाओगे।

     केवल अति चेतन सम्‍यक गुरु तक ले जा सकता है। तब वह शिक्षक नहीं होता; जो वह कहता है उससे  सम्‍मोहित नहीं होते; जो वह है उसके साथ अंधे सम्‍मोहन में नहीं पड़ते हो। बल्‍कि इसके विपरीत निर्देशित होते हो आपके परम चेतन के द्वारा कि इस व्‍यक्‍ति से आपका तालमेल बैठेगा और विकसित होने के लिए इस व्‍यक्‍ति के साथ एक सही संभावना बनेगी आपके लिए, कि वह आदमी आपके लिए आधार है, भूमि बन सकता है।

(4).

चौथे प्रकार के स्‍वप्‍न जो कि आते है पिछले जन्‍मों से। वे बहुत विरल नहीं होते है। वे घटते हैं, बहुत बार आते है वे। लेकिन हर चीज आपके भीतर इतनी गड़बड़ी में है कि कोई भेद नहीं कर पाते। वहां होते ही नहीं, भेद समझने को।

      हमने बहुत परिश्रम किया है इस चौथे प्रकार के स्‍वप्‍न पर। इसी स्‍वप्‍न के कारण हमें प्राप्‍त हो गयी पुनर्जन्‍म की धारणा। इस स्‍वप्‍न द्वारा धीरे-धीरे तुम जागरूक होते जाते हो पिछले जन्‍मों के प्रति। आप जाते हो पीछे और पीछे की और अतीत काल में।

     तब बहुत सारी चीजें आप में परिवर्तित होने लगती है। क्‍योंकि  स्मरण आ सकता है, सपने में भी कि आप क्‍या थे पिछले जन्‍म में। तब बहुत सी नयी चीजें अर्थहीन हो जाएंगी। सारा ढांचा बदल जायेगा। आपका रंग-ढंग गेस्‍टाल्‍ट  बदल जायेगा।

      यदि आपने पिछले जनम में बहुत सारा धन एकत्रित किया था। यदि देश के एक धनी व्‍यक्‍ति होकर मरे थे। और गहरे में आप भिखारी थे तो देखोगे कि फिर  वही कर रहे हो इस जीवन में.

     तो अकस्‍मात क्रिया-कलाप बदल जायेगा। यदि याद रख सको कि आपने क्‍या किया था और कैसे वह सब कुछ हो गया ना कुछ, यदि याद रख सको बहुत सारे जन्‍म कि कितनी बार वही बात फिर-फिर कर रहे हो— अटके हुए ग्रामोफोन रेकार्ड की भांति हो। एक दुस्चक्र; फिर उसी तरह आरंभ करते हो और उसी तरह अंत करते हो।  यदि याद कर सको अपने थोड़ से भी जन्‍म तो  एकदम आश्‍चर्यचकित हो जाओगे कि एक ही बात की बार-बार.

     फिर-फिर धन एकत्रित किया; बार-बार ज्ञानी बने; फिर-फिर नकली प्रेम में पड़े; और फिर-फिर चला आया वही दुःख जिसे ये प्रेम ले आता है। जब देख लेते हो यह दोहराव तो कैसे आप वहीं बने रह सकते हो। तब यह जीवन अकस्‍मात रूपांतरित हो जाता है। अब और नहीं रह सकते उसी पुरानी लीक में, उसी चक्र में।

लोग पूछते आये है बार-बार कई शताब्‍दियों से, जीवन और मृत्‍यु के इस चक्र से कैसे बाहर आएं। यह जान पड़ता है वही चक्र। यह जान पड़ती है बार-बार की वही कथा—एक दोहराव।

    यदि इसे नहीं जान लेते तो सोचते हो कि सहीं बातें कर रहे हो। उत्तेजित हो जाते हो। लेकिन देख सकता हूं कि आप वही पुरानी बातें करते रहे हो बार-बार।

  कुछ नया नहीं है आपके जीवन में; यह एक चक्र है। यह उसी मार्ग पर बढ़ता चला जाता है। क्‍योंकि आप अतीत के विषय में भूलते चले जाते हो। इसी लिए इतनी अधिक उत्‍तेजना अनुभव करते हो। एक बार स्मृति आ जाती है तो सारी उत्तेजना गिर जाती है। उसी स्मरण में सत्य घटता है।

      यही वास्तविक सन्यास है. सन्‍यास एक प्रयास है संसार के चक्र में से बाहर आने का। यह प्रयास है चक्र के बाहर छलांग लगा देने का। यह है कह देना स्‍वयं से बहुत हो गया अब मैं उस पुरानी नासमझी में भाग नहीं लेना चाहता। मैं बाहर हो रहा हूं उससे।

    यह संन्‍यास है इस चक्र से सम्पूर्णता से बाहर हो जाने का रास्‍ता। न ही केवल समाज के बहार, बल्‍कि जीवन मृत्‍यु के तुम्‍हारे भीतर के चक्र के बाहर। यह है चौथे प्रकार के स्‍वप्‍न।

(5).

   पांचवें और अन्‍तिम प्रकार के स्‍वप्‍न आता है आपके अतीत से, भविष्‍य से, संभावना से। ये स्‍वप्‍न एक विरल होता है। बहुत ही विरल। यह केवल कभी-कभी ही घटता है। जब आप होते हो बहुत संवेदनशील, खुले नमनीय, तो अतीत देता है एक छाया। भविष्‍य भी देता है एक छाया। यह आप में प्रतिबिंबित होती है।

    यदि जागरूक बन सकते हो अपने सपनों के प्रति तो किसी दिन पूरी तरह जागरूक हो जाओगे। इस संभावना के प्रति भी कि भविष्‍य आपसे झाँकता है। एकदम अकस्‍मात ही द्वार खुल जाता है। भविष्‍य का आप से संप्रेषण हो जाता है।

   ये होते है पाँच प्रकार के स्‍वप्‍न। आधुनिक मनोविज्ञान समझता है केवल दूसरे प्रकार को। रूसी मनोविज्ञान समझता है केवल पहले प्रकार कोही। तीन प्रकार—बाकी दूसरे तीनों प्रकार करीब-करीब अज्ञात है। लेकिन योग समझता है उन सभी प्रकारों को।

      यदि ध्‍यान करो और सपनों वाले अपने आंतरिक अस्‍तित्‍व के प्रति जागरूक हो जाओ तो और बहुत बातें घटेगी।

पहली बात तो यह कि धीरे-धीर जितना अधिक जागरूक होते जाओगे अपने सपनों के प्रति। उतने ही कम और कम कायल होओगे अपने जागने के समय की वास्‍तविकता के प्रति।

     इसीलिए हम कहते है कि संसार एक सपने की भांति है। अभी तो बिलकुल विपरीत है अवस्‍था। सपने देखते हो तो  सोचते हो वे सपने भी वास्‍तविक है। जब सपना आ रहा होता है, तो कोई अनुभव नहीं करता कि वह सपना अवास्‍तविक है। जब सपना आ रहा हो तो वह ठीक लगता है। वह बिलकुल वास्‍तविक लगता है। निस्‍संदेह सुबह आप कह सकते हो कि यह तो बस एक सपना था।

     लेकिन बात इसकी नहीं क्‍योंकि अब एक दूसरा मन भी कार्य कर रहा है। ये मन साक्षा बिलकुल न था। इस मन ने तो केवल उड़ती खबर सुनी थी। यह चेतन मन जो सुबह जागता है। और कहता है कि वह सब सपना था, यह मन तो बिलकुल साक्षा न था। कैसे यह मन कह सकता है कुछ? इसने तो बस एक खबर सुन ली है।

     यह ऐसा है जैसे कि आप सोये हो और दो व्‍यक्‍ति बातें कर रहे हों और आप नींद में यहां-वहां से कुछ शब्‍द सुन लेते हो क्‍योंकि वे इतनी जोर से बोल रहे होते है। मिला-जुला प्रभाव बचता है।

      ऐसा घट रहा होता है—जब अचेतन निर्मित करता है सपने और जबरदस्‍त हलचल चल रही होती है, चेतन मन सोया हुआ होता है। और केवल कोई खबर सुन लेता है। सुबह यह कह देता है, वह सब धोखा था। वह मात्र सपना था। अभी तो जब कभी आप सपना देखते हो तब  अनुभव करते हो कि वह बिलकुल वास्‍तविक है। बेतुकी चीजें भी वास्तविक लगती है। अतर्क पूर्ण चीजें वास्‍तविक दिखाई पड़ती है।

     अचेतन किसी तर्क को नहीं जानता। सड़क पर चल रहे होते हो सपने में, देखते हो किसी घोड़े को आते, और अचानक वह घोड़ा नहीं होता, वह घोड़ा आपकी पत्‍नी बन गया होता है। आपके मन को कुछ नहीं घटता वह नहीं पूछता, यह कैसे संभव है। घोड़ा अचानक पत्‍नी कैसे बन गया है? कोई समस्‍या नहीं उठती, कोई संदेह नहीं उठता।

   अचेतन नहीं जनता किसी संदेह को। इतनी बेतुकी बात पर भी विश्‍वास कर लिया जाता है। उसकी वास्‍तविकता के प्रति संदेह दूर हो जाता है आपका।

      बिलकुल विपरीत घटता है जब  जागरूक हो जाते हो सपनों के प्रति। तब अनुभव करते हो कि वे वस्‍तुत: सपने ही है। कोई चीज वास्तविक नहीं है। वे मात्र मन का खेल है। एक मनोनाटक। आप हो रंगमंच, आप ही हो अभिनेता और आप ही हो कथा लेखक,निर्देशक़, निर्माता और दर्शक भी. दूसरा कोई नहीं है वहां, बस मन का सृजन है।

   जब इस बात के प्रति जागरूक हो जाते हो तब जाग रहे होते हो। तब ये सारा संसार अपनी गुणवता बदल देगा। तब देखोगें कि यहां भी वहीं अवस्‍था है, लेकिन लंबे-चौड़े रंगमंच पर। सपना वहीं है।

  हम इस संसार को कहते है माया, भ्रम, स्‍वप्‍न-सदृश, मन की चीजों का धोखा। क्‍या मतलब होता है कथन का ? क्‍या ये कथन यह अर्थ कहते है कि यह अवास्‍तविक है? नहीं.

    यह अवास्तविक नहीं है,लेकिन जब आपका मन उसमें धुल-मिल जाता है तो आप अपना एक अवास्‍तविक संसार बना लेते हो। हम एक तरह के संसार में नहीं जीते; हर कोई अपने ही संसार मे जीता है। उतने ही संसार है जितने कि मन है।

      जब हम कहते है कि  यह संसार माया है तो उनका अर्थ होता है कि वास्‍तविकता और मन का जोड़ है माया। वास्‍तविकता, जो कि है, हम जानते नहीं है। वास्‍तविकता और मनका जोड़ भ्रम, माया। जब कोई समग्र रूप से जाग जाता है, एक बुद्ध हो जाता है। तब वह जानता है मन से मुक्‍त हो गया, वास्‍तविकता को उपलब्ध हो गया। तब वह होता है सत्‍य, ब्रह्म, परम।

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