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ध्यान : एकी जन्म या पुनर्जन्म?

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(यथार्थ दर्शन की मीमांसा)

         *नीलम ज्योति*

 मुसलमान और ईसाई आदि कहते हैं कि एक ही जीवन हैं. एक शरीर के अंत के साथ जीवन खत्म. हिंदू बौद्ध और जैन कहते हैं कि अनेक जीवन हैं. जन्मों का एक लंबा सिलसिला है। जब तक कोई मुक्त नहीं होता, उसे बारंबार जन्म लेना होगा। सच क्या है?

 यह कहा जाता है की, जीसस आत्मज्ञानी नहीं थे. होते तो उन्हें अवश्य पता होता। अगर मोहम्मद या मूसा ज्ञानीरूप का अतिक्रमण कर गये होते तो उन्हें मालूम होता कि नहीं, अनेक जीवन हैं। अगर आप उन्हें सही बताते हैं तो शिव, कृष्ण, महावीर, बुद्ध शंकर के बारे में क्या कहेंगे?

       अगर ईसाइयत सही है तो बुद्ध, कृष्ण और महावीर गलत हैं। अगर महावीर, कृष्ण और बुद्ध सही हैं तो मोहम्मद, जीसस और मूसा गलत हैं। दोनों सही कैसे हो सकते हैं?

दरअसल दोनों उपाय हैं। न कोई सही है, न कोई गलत. सिर्फ उपाय, तरीके, विधियां। 

     मोहम्मद, जीसस और मूसा एक ढंग के मनों से बोल रहे थे और बुद्ध, महावीर और कृष्ण बहुत भिन्न ढंग के मनों से बोल रहे थे। दो ही स्रोत धर्म हैं—हिंदू और यहूदी।

    भारत में, हिंदू धर्म से जन्मे सभी धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं. यहूदी चिंतना से जन्मे सभी धर्म, इस्लाम और ईसाइयत एक जीवन की धारणा में विश्वास करते हैं। ये दो उपाय हैं। 

       इसे समझने की कोशिश करो। हमारे दिमाग बंधे हुए हैं, इसलिए हम चीजों को उपाय की तरह न लेकर सिद्धांत की तरह लेते हैं। इस बात की फिक्र किए बिना कि कौन सही है और कौन गलत है, आपकी उत्सुकता इसमें होनी चाहिए कि कौन सा उपाय काम आता है।

भारत में वे बहुजन्म के उपाय को काम में लाते हैं। क्यों? इसमें कई बातें हैं। पश्चिम में, खासकर यहूदी चिंतन से जो धर्म निकले, वे सब गरीब लोगों के धर्म थे। उनके पैगंबर शिक्षित नहीं थे। जीसस शिक्षित नहीं थे, मोहम्मद शिक्षित नहीं थे। वे अशिक्षित थे, अपरिष्कृत थे, सरल थे। जिस जनता से उन्हें बोलना था, वह तो बिलकुल अपरिष्कृत थी, दरिद्र थी।

     गरीब आदमी के लिए एक जीवन काफी है, काफी से ज्यादा है। वह भूखों मर रहा है। अगर तुम उससे कहो कि अनेक जन्म हैं कि तुम बार—बार जन्म लोगे कि तुम्हें हजारों जन्म के चक्र से गुजरना पड़ेगा, तो गरीब आदमी पूरी चीज से बहुत हताश हो उठेगा। तुम क्या कह रहे हो? वह पूछेगा। एक ही जीवन बहुत है, हजारों—लाखों की बात मत करो। यह बात ही मत करो। हमें इसी जीवन के बाद स्वर्ग दे दो। ईश्वर उस आदमी के लिए तभी यथार्थ हो सकता है जब वह इसी जीवन के बाद प्राप्त हो सके, तुरंत।

     कृष्ण, बुद्ध, महावीर, बहुत समृद्ध समाज से बात कर रहे थे। आज यह समझना कठिन हो गया है, क्योंकि चाक पूरा घूम चुका है। अब पश्चिम समृद्ध है और पूर्व दरिद्र, तब पश्चिम गरीब था और पूर्व अमीर। हिंदुओं के सभी अवतार, जैनों के सभी तीर्थंकर,

सभी बुद्ध राजपुत्र थे। वे राजबघरानों से आए थे। वे सभी सुसंस्कृत थे, सुशिक्षित थे, परिष्‍कृत थे। सभी तरह से परिमार्जित थे।

    आप बुद्ध को अधिक परिमार्जित नहीं कर सकते। वे पूरी तरह परिष्कृत, सुसंस्कृत और सुशिक्षित थे। उनमें कुछ जोडा नहीं जा सकता। यदि आज भी बुद्ध हमारे बीच आएं तो उनमें कुछ जोड़ा नहीं जा सकता। वे जिस समाज से बोल रहे थे, वह भी समृद्ध था।

याद रहे, समृद्ध समाज की समस्याएं भिन्न होती हैं। समृद्ध समाज के लिए सुख अर्थहीन है, स्वर्ग अर्थहीन है। गरीब समाज के लिए स्वर्ग बहुत अर्थपूर्ण होता है। मगर जो समाज स्वर्ग में ही हैं उनके लिए स्वर्ग व्यर्थ है। इसलिए उन्हें स्वर्ग के नाम पर कुछ करने को प्रेरित नहीं कर सकते। वे स्वर्ग में ही हैं और ऊबे हुए हैं।

     इसलिए बुद्ध, महावीर और कृष्ण स्वर्ग की बात नहीं करते हैं। वे मुक्ति की, मोक्ष की बात करते हैं। वे यहां के पार किसी सुखदायी जगत के होने की बात नहीं करते, वे एक ऐसे जगत की बात करते हैं जहां न दुख है और न सुख। सिर्फ आनंद है. शाश्वत आनंद. जीसस का स्वर्ग उन्हें नहीं भाता, वे उसमें ही जीते थे।

    दूसरी बात कि धनी आदमी के लिए असली समस्या ऊब है। गरीब को आप भविष्य में सुख का प्रलोभन दे सकते हो, गरीब आदमी के लिए दुख उसकी समस्या है। धनी आदमी के लिए दुख समस्या नहीं है, उसके लिए ऊब समस्या है। वह सब सुखों से ऊबा हुआ है। महावीर, बुद्ध और कृष्ण, सबने इस ऊब का उपयोग किया और कहा कि अगर तुम कुछ नहीं करते तो तुम्हें बार—बार जन्म लेना होगा। यह चक्र चलता रहेगा। याद रखना, वही जिंदगी बार—बार दुहरेगी। वही काम— भोग, वही अमीरी, वही भोजन, वही राजमहल बार—बार मिलेंगे, हजार बार तुम कोल्ह के बैल जैसा एक ही चक्कर में घूमते रहोगे।

     एक अमीर आदमी के लिए, जिसने सब सुख जाने हैं, इसके अच्छे आसार नहीं हो सकते। पुनरुक्ति ही तो उसकी समस्या है, उसकी पीड़ा है। वह कुछ नया खोज रहा है। महावीर और बुद्ध कहते हैं, कुछ नया नहीं है। यह संसार पुराना है। आसमान के नीचे कुछ भी नया नहीं है। सब कुछ पुराना—पुराना है। तुम पहले भी उनका स्वाद ले चुके हो, आगे भी उन्हें ही भोगना है। तुम गोल—गोल घूम रहे हो। उनके पार जाओ, इस घेरे के बाहर छलांग लो।

    एक धनी आदमी ध्यान की तरफ तभी जाएगा, जब आप उसकी ऊब को गहराने के उपाय करो। लेकिन गरीब आदमी के सामने ऊब की बातचीत व्यर्थ है। गरीब आदमी ऊब से कभी पीड़ित नहीं होता है, सिर्फ अमीर ऊबता है। गरीब आदमी क्या ऊबेगा, उसे तो सदा भविष्य की चिंता घेरे रहती है। कुछ होने जा रहा है, तब सब ठीक हो जाएगा। गरीब को आश्वासन की जरूरत है। लेकिन अगर वह आश्वासन दूर का है तो वह व्यर्थ हो जाता है। आश्वासन निकट का होना चाहिए।

 जीसस ने अपने अनुयायियों को कहा कि मेरे जीवन—काल में, तुम्हारे जीते —जी, तुम प्रभु का राज्य देख लोगे। यह वक्तव्य बीस सदियों से ईसाइयत को हैरानी में डाले हुए है। जीसस ने कहा था, ‘तुम तुम्हारे जीवन—काल में, बहुत जल्दी, प्रभु का राज्य देख लोगे’, और वह प्रभु का राज्य अब तक नहीं आया है। उनका मतलब क्या था? और उन्होंने कहा था, शीघ्र ही संसार समाप्त हो जाएगा, इसलिए वक्त मत गवांओ; वक्त बहुत कम है। उन्‍होंने कहा था, वक्त गवाना मूर्खता होगी। दुनिया जल्‍दी ही समाप्त हो जायेगी और तुम्‍हें जवाब देना पड़ेगा। तब तुम पछताओगे। मगर दुनिया अभी है. रहेगी भी.

      एक जीवन की धारणा के जरिए जीसस शीघ्रता का खयाल पैदा करना चाहते थे। वे जानते थे. वैसे ही बुद्ध और महावीर भी जानते थे। लेकिन वह सब नहीं कहा गया है जो वे जानते थे। “एक जीवन” एक उपाय था ताकि लोग इस भाव से भर सकें कि कुछ करना है, और जल्दी करना है।

प्राचीन भारत अमीर था। भविष्य के आश्वासन के द्वारा उसमें शीघ्रता का भाव पैदा करना व्यर्थ होता। उसे तो अधिक ऊब के उपाय से ही गतिमान किया जा सकता था। अगर एक व्यक्ति को पता चले कि उसे बार—बार जन्म लेना है, अनंत बार जन्म लेना है तो वह तुरंत आकर पूछेगा—इस चक्कर से मुक्त कैसे हुआ जाए? यह तो मुसीबत है। मैं इसमें और ज्यादा नहीं चल सकता, क्योंकि जो जानना था वह मैंने जान लिया। अगर इसी को दोहराना है तो वह दुःस्वप्न बन जाएगा। मैं इसे और दोहराना नहीं चाहता, मैं तो कुछ नया चाहता हूं।

     इसलिए बुद्ध और महावीर कहते हैं, आसमान के नीचे कुछ भी नया नहीं है। सब कुछ पुराना है और पुनरुक्ति है। उसे ही तुम अनेक जन्मों से दोहरा रहे हो और अनेक जन्मों तक दोहराते रहोगे। इस पुनरुक्ति से सावधान होओ, ऊब से बचो, इसलिए छलांग लगा लो।

ये उपाय तो भिन्न हैं, लेकिन उद्देश्य वही है। उद्देश्य है कि चलो, बदलो, छलांग लगाओ, अपने को रूपांतरित करो। तुम जो भी हो, जहां भी हो, वहीं से अपने को रूपांतरित करो।

अगर हम धार्मिक वक्तव्यों को उपाय की तरह समझें तो कोई विरोध नहीं दिखाई देगा। तब जीसस और कृष्ण और मोहम्मद और महावीर एक ही काम कर रहे हैं। वे भिन्न—भिन्न लोगों के लिए भिन्न—भिन्न मार्ग निर्मित कर रहे हैं, भिन्न—भिन्न विधियां बता रहे हैं, अलग— अलग रुझान के लिए अलग— अलग आकर्षण पैदा कर रहे हैं। वे कोई सिद्धांत नहीं हैं जिनके गिर्द बहस और झगड़ा किया जाए। वे उपाय हैं जिनका उपयोग करना है, अतिक्रमण करना है और फिर फेंक देना है।

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