भोपाल। भ्रष्टाचार के मामलों में विशेष पुलिस स्थापना यानी की लोकायुक्त संगठन का रुख सख्त बना हुआ है, जिसकी बदौलत ही हर माह औसतन आठ भ्रष्टों को सजा दिलावाई जा रही है। अगर इस मामले में सरकार का पूरा सहयोग लोकायुक्त को मिले तो यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। दरअसल कई मामले ऐसे हैं, जिनमें लोकायुक्त संगठन को चालान पेश करने की अनुमति का लंबे समय से इंतजार करना पड़ रहा है। इससे इतर भ्रष्टाचार के लंबे समय से लंबित चल रहे मामलों के निराकरण के लिए अब लोकायुक्त पुलिस द्वारा नई रणनीति तैयारी की गई है। इसके तहत जल्द विवेचना करने के बाद मामलों को पुख्ता प्रमाणों के साथ न्यायालय में मजबूत तथ्यों के साथे पेश किया जा रहा है। यही वजह है कि बीते एक साल में 98 भ्रष्टाचारियों को न्यायालय द्वारा सजा सुनाई गई है। अगर सजा का औसत निकाला जाए तो एक साल में कुल पेश किए गए चालानों में सजा का प्रतिशत 70 रहा। इसमें भी खास बात यह है कि कुछ 8 से 15 साल पुराने सात मामलों में लोकायुक्त संगठन ने भ्रष्टाचारियों को न केवल अलग- अलग धाराओं में सजा दिलाई है , बल्कि उन पर करोड़ों रुपये का अर्थदण्ड भी लगवाया है। अधिकृत जानकारी के मुताबिक बीते वर्ष यानी की वर्ष 2022 में मप्र लोकायुक्त संगठन ने भ्रष्टाचार के कुल 279 प्रकरण दर्ज किए थे, इनमें 252 मामले तो रिश्वत लेते पकड़े जाने के ही है। इसके अलावा 17 प्रकरण वे हैं, जिनमें लोकायुक्त संगठन द्वारा छापे मारे गए थे, जबकि 10 मामले पद के दुरुपयोग के शामिल हैं। अगर इन मामलों की तुलना वर्ष 2021 के मामलों से करें तो बीते साल 12 प्रतिशत मामले अधिक दर्ज किए गए। वहीं रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार करने के मामलों में भी 26 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। बीते साल लोकायुक्त पुलिस ने 2022 में कुल 358 प्रकरणों में विवेचना पूरी की है, जिसमें 269 रंगे हाथों रिश्वत लेने के, 25 अनुपातहीन संपत्ति के मामले में मारे गए छापे के और 64 प्रकरण पद के दुरुपयोग के शामिल हैं। इसी तरह से लोकायुक्त पुलिस ने प्राथमिक जांच के 52 मामलों का भी निराकरण किया है।
मुख्यमंत्री का रुख बेहद सख्त
बीते कुछ दिनों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार के मामले में बेहद रौद्र रुख दिखा रहे है। शायद यही वजह है कि अफसरों को न चाहते हुए भी ऐसे मामलों में कार्रवाई करनी पड़ रही है। हाल ही में ऐसे ही एक मामले में एक अफसर को सेवा से बर्खास्त तक किया जा चुका है। यही नहीं बीते दो माह में 75 मामलों में 119 शासकीय सेवकों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृतियां प्रदान की गई हैं। इनमें पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में सर्वाधिक 23 प्रकरणों में अभियोजन की स्वीकृति दी गई है। इसके अलावा राजस्व में 12, नगरीय विकास एवं आवास में 9, स्वास्थ्य में 8, गृह और कृषि विभाग में 6-6 और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के चार प्रकरण शामिल हैं। ऐसे मामलों में अब सीएम खुद विभागवार समीक्षा कर रहे हैं। मुख्यमंत्री खुद कह चुके हैं कि वे 15 जून के बाद कार्यवाही की जानकारी लेंगे। यदि विभाग किसी प्रकरण में कार्यवाही में विलंब करता है तो संबंधित अधिकारी के विरूद्ध भी कार्यवाही की जाएगी।
अफसर चालान की अनुमति नहीं देते
सरकारी कर्मचारी को भ्रष्टाचार के मामले में प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर लोकायुक्त को चालान के लिए संबंधित विभाग से अनुमति लेना होती है। विभाग इन्हें विधि और विधाई विभाग (लॉ डिपार्टमेंट) के पास अभिमत के लिए भेजता है। स्वीकृति की समय सीमा तय है, लेकिन ज्यादातर मामलों में प्रभाव का उपयोग कर, विधि विभाग के अभिमत के नाम पर अटका दिए जाते हैं। यदि कर्मचारी के संबंधित विभाग और विधि विभाग की राय में मत भिन्नता होती है तो फिर इसे कैबिनेट के पास भेजा जाता है। यही वजह है की फिलहाल दो सौ से अधिक मामले अब भी दोनों जांच एजेंसियों के अनुमति के अभाव में पड़े हुए हैं। यह वे मामले हैं, जिनकी जांच पूरी हो चुकी है, लेकिन चालान पेश नहीं हो पा रहा है।
इन मामलों में लगा बड़ा अर्थदंड
लोकायुक्त के जिन मामलों में सजा के साथ बड़ा अर्थदंड लगा है, उनमें तत्कालीन तहसील संयोजक, ग्राम रक्षा समिति ग्वालियर हरीश शर्मा के खिलाफ 2008 में दर्ज प्रकरण में 24 जनवरी 2022 को विशेष न्यायालय ने 4 वर्ष के सश्रम कारावास और 2 करोड़ रुपये के अर्थदण्ड की सजा सुनाई है। इसी तरह से बालू सिंह सिसोदिया, तत्कालीन सहायक यंत्री एवं विद्युत सुरक्षा निरीक्षक रतलाम, प्रभारी विद्युत निरीक्षक, ऊर्जा विभाग गरोठ, जिला मंदसौर के खिलाफ 2009 में दर्ज प्रकरण में विशेष न्यायालय ने 5 जनवरी 2022 को 4 साल के सश्रम कारावास और 20 लाख रुपये के अर्थदण्ड की सजा सुनाई है। अनिल कुमार त्रिपाठी, तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत सोहावल, जिला सतना के विरुद्ध वर्ष 1998 में अलग-अलग धाराओं में दर्ज चारों मामलों में विशेष न्यायालय ने 27 दिसम्बर 2022 को क्रमश: 2 वर्ष की जेल एवं दो हजार रुपये अर्थदण्ड, 5 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 10 हजार रुपये अर्थदण्ड, 3 वर्ष का कारावास एवं 10 हजार रुपये अर्थदण्ड एवं 2 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 5 हजार रुपये अर्थदण्ड की सजा सुनाई। एक अन्य मामले में प्रीतम सिंह मान के खिलाफ 2014 में दर्ज प्रकरण में 14 जुलाई 2022 को सुनाए गए निर्णय में तीन वर्ष के कठोर कारावास एवं 3 हजार रुपये अर्थदण्ड की सजा सुनाई। इसी तरह से तत्कालीन एसडीओपी तेन्दूखेड़ा, जिला दमोह जीपी शर्मा को विशेष न्यायालय दमोह ने विगत 24 नवम्बर को 3 वर्ष के कारावास एवं 20 हजार रुपये के अर्थदण्ड की सजा से दंडित किया है।