दिलीप कुमार
अमरीश पुरी भारतीय सिनेमा के सबसे प्रभावशाली खलनायकों में से एक थे. रुआबदार आवाज़, ऐसी की छोटा मोटा कोई रोल उन्हें जचता ही नहीं था. वो फ़िल्मों में ज्यादातर जमीदार, रॉयल भूमिकाएं ही प्ले करते थे.. हर कोई उन्हें ऐसे ही किरदारों में देखना चाहता था. उनकी विलेन की छवि ऐसी कि हम बचपन में खेलते थे तो डाकू – पुलिस बनकर खेलते थे. कई बार स्टंट भी करते थे…गर्मियों की छुट्टियों में धूप में खेलते रहते थे… फिर घर में फटकार लगती थी. पैरेंट्स से छिपकर रात में फ़िल्में देखते थे. अमरीश पुरी हमेशा फ़िल्मों में मारे जाते थे, लेकिन हमें इतनी समझ थी, कि असल में थोड़ा ही मर गए हैं. फिर भी एक बात की समझ नहीं थी, अक्सर स्कूल जाते हुए हम दो तीन दोस्त विमर्श करते थे, कि कहीं अमरीश पुरी हमें मिल गए, और हमें अपने साथ ले गए तो, हम क्या करेंगे?? क्योंकि पुरानी फ़िल्मों में ये छोटे बच्चों को पकड़कर अपने गैंग में शामिल कर लेते थे. अमरीश पुरी उम्दा अदाकारी करते हुए भूमिकाओं में घुस जाते थे. यही उनकी सफलता है..मेरे जैसे न जाने कितने ऐसे रहे होंगे, जिनका बचपन अमरीश जी के खौफ में बीता होगा..
अमरीश जी हिन्दी सिनेमा में विलेन के करेक्टर को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले अग्रदूतों में शुमार रहे हैं. फिल्मों में अपने शानदार अभिनय के अंदाज से उन्होंने दर्शकों के दिल में अपनी अलग जगह बनाई.. हिन्दी सिनेमा में जितने भी विलेन थे, उनमें से अधिकांश उत्तम आचरण के इंसान रहे हैं. अमरीश पुरी फ़िल्मों में जैसे भी रहे हों, असल ज़िन्दगी में उम्दा इंसान थे. अमरीश पुरी की अच्छाई का संस्मरण श्याम बेनेगल कहते हैं – “एक बार हमारे एक अजीज दोस्त सहित उनकी फैमिली का सड़क एक्सीडेंट हो गया था. दोस्त की पत्नी सरवाइव कर गई, लेकिन दोस्त और उसका बेटा क्रिटिकल थे. हॉस्पिटल में उनके लिए रेयर ब्लड ग्रुप की जरूरत पड़ी, जो कि अमरीश जी का भी ब्लड ग्रुप था. हमारे उस दोस्त से उनका कोई परिचय नहीं था.बावजूद इसके वो अस्पताल पहुंचे और डॉक्टर्स से बोले, ‘मैं ब्लड देना चाहता हूं, जितनी जरूरत हो ले लीजिए’. दुर्भाग्य से दोस्त और उसका बेटा बचे नहीं, लेकिन बिना किसी के कहे अमरीश जी का ब्लड देना मुझे हमेशा याद रहेगा”. अमरीश पुरी जी असल ज़िन्दगी में एक नेकदिल इंसान थे.
हालांकि अमरीश जी उसूलवादी थोड़ा कड़क स्वभाव के थे, कई बार कड़क जवाब देते थे. हालाँकि वो अक्खड़पना उन्हें फबता भी था. एक बार हॉलीवुड निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग ने जब उनसे अपनी फिल्म में काम देने के लिए अमेरिका आकर स्क्रीन टेस्ट देने को कहा तो उन्होंने स्टीवन को साफ इनकार कर करते हुए कहा…“तुम्हारे स्क्रीन टेस्ट के लिए मैं अमेरिका नहीं आ सकता”. आखिरकार स्पीलबर्ग को हिंदुस्तान आना पड़ा. इतना कुछ होने के बाद भी स्पीलबर्ग ने उन्हें अपनी फिल्म में साइन किया. ‘इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम’ में अमरीश पुरी पहली बार गंजे हुए और फिर यह उनका सिग्नेचर स्टाइल ही बन गया था. उनके साथ काम करने के अनुभव के बाद स्पीलबर्ग ने अमरीश पुरी को दुनिया का सबसे बेहतरीन विलेन, एवं उत्तम आचरण का इंसान कहा था.
अमरीश पुरी ने अपने सिनेमाई यात्रा में 400 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया. अमरीश पुरी ने व्यपारिक फ़िल्मों में आने से पहले कला फ़िल्मों निशांत’, ‘मंथन’, ‘गांधी’, ‘मंडी’, ‘ गुनाहों का देवता’, भूमिका, कलियुग, अर्धसत्य, आदि फ़िल्मों में अपनी ऐक्टिंग से अमिट छाप छोड़ चुके थे.. ऐसे विलेन कम ही हुए हैं जो कला फ़िल्मों, सहित थिएटर में भी योगदान दिया हो..
अमरीश पुरी जी फ़िल्मों में अपनी खलनायकी के लिए तो जाने ही जाते थे, लेकिन जब कभी उन्होंने कोई संजीदा किरदार निभाया है, तो बड़ी ही संजीदगी से निभाया. जब वो कैरेक्टर रोल करते थे, तो उसमें जान डाल देते थे. उनके कुछ किरदार आज भी यादगार हैं.
हिन्दी सिनेमा की सबसे बड़ी स्टारकास्ट फ़िल्म चाइना गेट के क़िरदार कर्नल पुरी को कौन भूल सकता है! जो नए ज़माने के लड़के का नाम उच्चारण नहीं कर पाते.. बार बार अपनी बड़ी उम्र का हवाला देते हुए ज्यादा सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं, जो यूनिट के साथियों को अनावश्यक डांटने लगते थे.. ऐसे किरदारों में भी अमरीश जी की अदाकारी उन्हें बहुमुखी अदाकार सिद्ध करती है.
डीडीएलजे के बाबूजी जो, क्लाइमेक्स में शाहरुख को कह्ते हैं तुम जैसे लड़के सिर्फ और सिर्फ़ बिगड़ते हैं.. मेरी राय तुम्हारे बारे में बिल्कुल सही थी.. अपनी सोच से इतर न न करते हुए सिमरन और राज को अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए कहते हैं. उनका एक किरदार सिर्फ़ एक कड़क उसूलों वाले पिता के रूप में याद आता है. घातक में सनी देओल के बाबू जी के किरदार में उनकी जीवंत अदाकारी याद आती है..
ग्रामीण पृष्टभूमि पर बनी यादगार फिल्म ‘विरासत’ के बड़े ठाकुर यानि अनिल कपूर के पिता के रूप में वे गाँव के जमींदार होने के साथ ही एक पिता का किरदार इतना अच्छा प्ले किया, कि बरबस उनकी अदाकारी के लिए याद आता है. रोल में ईमानदारी, वजन ऐसा पूरे गाँव की भलाई के लिए अपने छोटे भाई से लड़ जाते हैं. वहीं शिक्षा के प्रति उनकी उम्दा सोच, अपने बेटे को पढ़ने विदेश भेजते हैं. आख़िरकार जब बेटा शिक्षित होकर गांव लौटता है, तो अपने बेटे को समझाते हैं, ऐसे ही गांव में रहो, पढ़ने लिखने का सदुपयोग करो. अनिल कपूर मानने को तैयार नहीं हैं, लेकिन आकस्मिक उनके निधन के बाद अनिल कपूर अपने पिता के अंदाज़ में सामने आते हैं. फ़िल्म में बारिश का वो सीन जब अनिल कपूर बारिश की पानी के कारण घर के आँगन में फिसल जाते हैं तो एकदम से बाबू जी (अमरीश पुरी) कहते हैं संभलकर बेटा! यह सीन अमर है. पिता पुत्र के मार्मिक रिश्ते को दर्शाती फिल्म, वहीँ उनकी अदाकारी अपने आप में कमाल है.
सलमान खान स्टार्टर फ़िल्म चोरी-चोरी चुपके-चुपके में निभाया गया दादा जी का किरदार जिसमें वे मधुमेह के कारण मीठा खाने से मना करने के बावजूद छुपकर पोते से एक लड्डू मांगकर खाते हैं.. बुढ़ापे में आंशिक बचपना तो आ ही जाता है.. अमरीश पुरी जी अपनी अदाकारी से, अपनी मौजदूगी से सिल्वर स्क्रीन का वज़न बढ़ा देते थे. हालाँकि उनके सिनेमा, रंगमंच आदि में योगदान के लिए सिनेमा एवं सरकार ने उन्हें वो सम्मान नहीं दिया, जिसके वो हकदार थे. वैसे भी किसी कलाकार को जनमानस कैसे याद करता है, यही सबसे बड़ा सम्मान है.
अमरीश पुरी असामयिक 2005 में दुनिया छोड़ गए. हालाँकि वो कभी मर नहीं सकते. उनकी रुआबदार आवाज़ आज भी सिनेमाई दुनिया में गूंज रही है. जन्म जयंति पर अमरीश पुरी जी को मेरा सलाम..