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सह-अस्तित्व की मजबूती की पहल; ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का दिया मूलमंत्र

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आजादी के दीवानों ने देश में सह-अस्तित्व की मजबूती के लिए अनेक पहल की और ‘एक भारत
श्रेष्ठ भारत’ के मूलमंत्र को भी मजबूत किया। इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में स्वामी सहजानंद सरस्वती
का नाम भी शामिल है जिन्होंने किसानों को संगठित कर आजादी के आंदोलन में नई चेतना जगाई।
गया प्रसाद कटियार जेल में बंद कैदियों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित करते रहे। भारत के
स्वतंत्रता संग्राम में गणेश घोष और दादा धर्माधिकारी का भी अहम योगदान रहा है। आजादी के
अमृत महोत्सव की श्रृंखला में इस बार इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी जिन्होंने अलग-अलग
संस्कृति, भाषा, खान-पान और वेशभूषा को अपनी ताकत बना अंग्रेजों से हासिल की आजादी……

स्वामी सहजानंद सरस्वती

किसानों को संगठित कर स्वतंत्रता आंदोलन में जगाई नई चेतना

जन्म : 22 फरवरी 1889, मृत्यु : 26 जून 1950

सानों को संगठित करने वाले स्वामी सहजानंद सरस्वती का जन्म 22 फरवरी 1889 को उत्तरप्रदेश के
गाजीपुर में हुआ था। पहले उनका नाम नवरंग राय था। किसानों के हितों के लिये संघर्षरत सहजानंद
एक प्रतिभाशाली बुद्धिजीवी, सशक्त लेखक और समर्पित क्रांतिकारी थे। सहजानंद सरस्वती का जीवन
किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित रहा। विदेशी हुकूमत द्वारा किये जा रहे शोषण के
खिलाफ लाखों किसानों को संगठित कर उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में नई चेतना जगाई। संन्यासी
सहजानंद ने मुखर होकर आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया। जब जमींदार किसानों से जबरन कर
वसूली में जुटे थे तब उन्होंने “कैसे लोगे मालगुजारी, लट्ठ हमारा जिंदाबाद” का नारा दिया। उन्होंने
कहा था कि “जो अन्न, वस्त्र उपजाएगा, अब वो कानून बनाएगा, ये भारतवर्ष उसी का है, अब वही
शासन चलाएगा।”
उन्होंने 1929 में बिहार प्रांतीय किसान सभा के गठन के साथ किसान सभा आंदोलन की शुरूआत
की। इस सभा ने किसानों को जमींदारों के खिलाफ संगठित किया। अप्रैल 1936 में कांग्रेस के लखनऊ
अधिवेशन में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन किया गया। सहजानंद सरस्वती को इस सभा
का पहला अध्यक्ष बनाया गया। अगस्त 1936 में किसान घोषणापत्र जारी किया गया और जमींदारी
प्रथा समाप्त करने और ग्रामीण ऋणरद्द किए जाने की मांग की गई। उन्होंने जमींदारी प्रथा का
विरोध करने के साथ मजदूरों का नेतृत्व किया। जाति, धर्म, पंथ और संप्रदाय से ऊपर उठकर देशभर
के किसानों को एकत्रित करने का काम किया। स्वामी सहजानंद ने बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाकर
अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने 1937-38 में बिहार में बाकाश्त आंदोलन शुरू किया।
जिसका अर्थ था जो खेती करेगा, उसी का हक। इस आंदोलन ने जोर पकड़ा और किसानों के अधिकारों
की सुरक्षा के लिए बिहार काश्तकार अधिनियम और बाकाश्त भूमि कर पारित किया गया।
सहजानंद सरस्वती ने बिहटा की डालमिया शुगर मिल में सफल संघर्ष का नेतृत्व किया। भारत छोड़ो
आंदोलन के दौरान जब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तो सुभाष चंद्र बोस और ऑल इंडिया फारवर्ड
ब्लॉक ने ब्रिटिश राज द्वारा उनकी गिरफ्तारी के विरोध में 28 अप्रैल का दिन अखिल भारतीय स्वामी
सहजानंद दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। सुभाष चंद्र बोस ने कहा, “हमारे देश में स्वामी
सहजानंद सरस्वती एक ऐसा नाम है जिसके नाम पर शपथ और संकल्प लिया जाना चाहिए। भारत
में किसान आंदोलन के निर्विवाद नेता, आज वे जन-जन के आदर्श और लाखों लोगों के नायक बन

गए हैं। उन्हें रामगढ़ में ऑल इंडिया एंटी- कॉम्प्रोमाइज कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष बनाया जाना निश्चित
रूप से सौभाग्य की बात रही। मेरे लिए एक मित्र, एक चिंतक और मार्गदर्शक के रूप में उन्हें पाना
बहुत बड़ा सम्मान है। उनके नेतृत्व का अनुसरण करते हुए बड़ी संख्या में किसान आंदोलन के अग्रणी
नेता फॉरवर्ड ब्लॉक से जुड़े हैं।” 26 जून 1950 को उनका निधन हो गया।

गया प्रसाद कटियार

कैदियों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए किया प्रेरित

जन्म : 20 जून 1900, मृत्यु : 10 फरवरी 1993

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे समर्पित सैनिकों में से एक गया प्रसाद कटियार का जन्म 20
जून 1900 को उत्तर प्रदेश के जगदीशपुर में हुआ था। उनके दादा महादीन कटियार ने 1857 के प्रथम
स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था जिनकी कहानियां सुनकर उनके मन में अंग्रेजों के
प्रति नफरत पैदा हो गई थी। उन्होंने शहीद भगत सिंह और बाकी क्रांतिकारियों के साथ आजादी के
आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। अंग्रेजों के कान खोलने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर
दत्त ने संसद भवन में जो बम फेंके थे, वे भी उनकी देखरेख में ही बने थे।


उन्होंने 1921 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। वह 1925 में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन
एसोसिएशन में शामिल हो गए। साथ में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह से जुड़ गए। बाद में लाहौर
षडयंत्र मामले में उनका नाम आया और 15 मई 1929 को अंग्रेजों ने उन्हें सहारनपुर से गिरफ्तार कर
लिया। अंग्रेजों ने उनके साथियों का पता पूछने के लिए उन्हें काफी प्रताड़ित किया लेकिन वह टस से
मस नहीं हुए। उन्हें 7 अक्टूबर 1930 को अंग्रेजी हुकूमत ने प्रसिद्ध लाहौर षडयंत्र केस मामले में
आजीवन करावास की सजा सुनाई। इसी मुकदमे में सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भी
फांसी की सजा सुनाई गई थी। वह अपने सह-कैदियों के साथ लाहौर जेल में भूख हड़ताल में शामिल
हुए। जब उन्हें अंडमान की सेल्यूलर जेल भेज दिया गया तो वहां भी भूख हड़ताल में शामिल हुए।
लाहौर की जेल में उन्होंने 63 दिन और सेल्यूलर जेल में 46 दिन भूख हड़ताल की थी। उन्हें 1946 में
रिहा कर दिया गया। वह जेल में भी कैदियों को क्रांतिकारी बनने और आजादी की लड़ाई में शामिल
होने के लिए प्रेरित करते रहे। ब्रिटिश हुकूमत की जेलों में इस महान क्रांतिकारी ने अमानवीय
यातनाओं को सहन किया। देश की आजादी के बाद भी वह लगातार सक्रिय बने रहे। वह हमेशा
किसानों, मजदूरों और शोषित पीड़ित जनता की भलाई के लिए आवाज उठाते रहे। संचार मंत्रालय के
डाक विभाग ने 26 दिसंबर 2016 को स्वतंत्रता सेनानी गया प्रसाद कटियार पर एक डाक टिकट जारी
किया था। 10 फरवरी 1993 को उनका निधन हो गया।

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