अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

देश-दुनिया के बिगड़ते हालात:जलजला सिर पर है

Share

गुलाब कोठारी, पत्रिका समूह के प्रधान संपादक 

‘द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च।
दैवो विस्तरश: प्रोक्त आसुरं पार्थ में श्रृणु ॥’
 (गीता 16/6)
हे अर्जुन! इस लोक में मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है। एक तो दैवी प्रवृत्ति वाला और दूसरा, आसुरी प्रवृत्ति वाला। देवी प्रवृत्ति वाला विस्तार पूर्वक कहा गया, अब आसुरी प्रवृत्ति वाले को भी विस्तार से सुन। आगे कृष्ण कहते हैं-जो प्रवृत्ति-निवृत्ति दोनों नहीं जानते। न उसमें बाहर-भीतर की शुद्धि है, न सत्य भाषण है। (गीता16/7)। जिनकी बुद्धि मन्द, सबका अपकार करने वाले क्रूरकर्मी मनुष्य, जगत के नाश के लिए ही समर्थ होते हैं। (गीता 16/9)। असुर वैसे भी देवताओं से तीन गुणा हैं, और उनसे बलवान भी हैं।

विश्वपटल पर दृष्टि डालें-चीन और रूस दोनों ही अहंकार और सत्ता के एकाधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। दोनों ही देशों के शासक राजाओं के दौर की तरह आजीवन राज करने का आदेश जारी कर चुके हैं। दोनों ही अपने-अपने देश के टुकड़े होने से भी आहत हैं। यूक्रेन युद्ध और ताइवान पर निशाना उसी का परिणाम है। कितने मरते हैं। यह उनकी चिन्ता का विषय नहीं है। ‘समरथ को नहीं दोष गोसाईं’-हमने रावण के अहंकार के बारे में पढ़ा है। राजनीति का भावी स्वरूप धीरे-धीरे उधर ही जा रहा है।

दूसरा घटनाक्रम यूरोप में चल रहा है। उसकी दिशा कुछ और ही है। यह भी राजनीति की नई करवट है। इसमें फ्रांस को जलता हुआ देखा है। इसकी आंच आस-पास के देशों में भी पहुंच चुकी है। यह खेल राजा का नहीं, प्रजा का है, शरणार्थियों का है। विश्व के इतिहास में कोई अपने शरण देने वाले पर ही आक्रमण दे, यह शायद पहली घटना होगी। अब तक तो ‘पालक’ के चरण चूमने की ही मानवता-इबादत की परम्परा रही है। किन्तु अब राजनीति ने धर्म के कपड़े पहन लिए। सत्ता का संघर्ष शुरू है। इसका मनोविज्ञान क्या हो सकता है?

तीसरा नजारा पश्चिम बंगाल को राजनीतिक उथल-पुथल का अखाड़ा बना देने का है। अन्य शहरों में भी गूंज सुनाई देने लगी है। इनके कारनामे जातिगत राजनीति के नाम पर देखे जा सकते हैं। राजनीति में ऐसे मसलों को हवा देने का काम पिछले बरसों में खूब हुआ है जिनसे समाज सदैव दो हिस्सों में बंटा रहे। हिन्दुत्व और तुष्टिकरण शब्द कोई अचानक चल कर नहीं आए। हमारे राजनेताओं ने ही वोट की खातिर पक्षपात का जो दौर शुरू किया उसका सीधा सा विभाजन समाज में भी साफ नजर आने लगा है।

सबसे बड़ा मसला घुसपैठ का है। लोग घुसपैठिए के रूप में सीमा के उस पार से आते रहे हैं। चाहे वह बांग्लादेश हो या फिर म्यामांर। पाकिस्तान हो या फिर सीमा से सटे दूसरे इलाके। पश्चिम बंगाल में तो हमेशा सत्ता में बैठे लोग घुसपैठ को अपनी राजनीतिक मजबूती का आधार बनाते रहे हैं। चाहे वह लेफ्ट की सरकार हो या फिर तृणमूल कांग्रेस की। यहां बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं को जातिगत आरक्षण का लाभ देने का प्रयास किया जा रहा है।

उत्तर पूर्वी राज्यों असम, मेघालय और त्रिपुरा जैसे राज्यों में घुसपैठ को लेकर लगातार बवाल मचता रहा है। असम में तो बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण संघर्ष चरम पर रहा। हिंदी भाषी प्रदेश बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी कभी न कभी बांग्लादेशियों की घुसपैठ का मुद्दा उठता रहा है।

सबको याद है जब एनआरसी या सीएए लाने की बात हुई थी, तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियों ने खुला विरोध किया था। मणिपुर और मिजोरम को जब उनके यहां बसे शरणार्थियों के आंकड़े जुटाने को कहा तब भी ऐसा ही कुछ नजर आया। मणिपुर तैयार दिख रहा है लेकिन मिजोरम ने मानवीय होने की सलाह देते हुए केन्द्र के प्रस्ताव को यह कहकर नामंजूर कर दिया कि म्यामांर से आने वाले शरणार्थी परिवार की तरह हैं।

इन सबके बीच राजनीति आज एक घिनौना क्षेत्र बनता जा रहा है। जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही जनता के घर, धरती की लाज, ऋषियों की परम्पराओं को ठोकरों में उछालकर आने वाले काल के भाल को कलंकित करने में लगे हैं। इतना ही नहीं, राजनेताओं ने क्षुद्र स्वार्थ के लिए देश को अपराधियों के हवाले कर दिया।

आप देश के किसी राज्य को देख लें। जातिगत वैमनस्य, शत्रुता तक पहुंच चुका है। राजनेताओं ने देश की अखण्डता को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक ही देश के नागरिक एक-दूसरे के शत्रु बन गए-जैसे इजराइल और फिलीस्तीन। इराक को नष्ट करने में अमरीका की भूमिका रही। दुनिया जानती है कि आज ईरान के साथ अमरीका के संबंध कैसे हैं? मध्यपूर्व के देशों में भी धीरे-धीरे आग प्रचण्ड हो रही है। ईसाई समुदाय भी सम्प्रदायवाद के संघर्ष और भोगवादी संस्कृति के परिपे्रक्ष्य में सम्मान के पायदान पर विश्व पटल पर नीचे आ रहा है।

मैं देश के युवाओं से पूछना चाहता हूं कि वे भारत के भविष्य को कैसा देख रहे हैं? यह चुनावी वर्ष है। अतिक्रमण और अपराध सरकारों द्वारा पोषित होंगे। जातिवाद, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकवाद, आरक्षण, धर्म-सम्प्रदाय और भी न जाने क्या-क्या गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं। इससे पहले भी कम नहीं हुईं। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर बयानबाजी सामने आने लगी है।

कुछ और मुद्दे भी जुड़ेंगे। औवेसी बंधु कम जहर नहीं उगलते। नुपुर शर्मा प्रकरण के बाद भाजपा को तो अपने दो दर्जन नेताओं को अनर्गल बयानबाजी न करने के लिए पाबंद करना पड़ा था। कांग्रेस व दूसरी पार्टियां भी नेताओं को वाणी पर संयम रखने की सलाह देती है। पर क्या ऐसा हो पाता है? नेताओं व राजनीतिक दलों के दांत खाने के अलग और दिखाने के अलग होते हैं।

युवाओं से यही सवाल है कि क्या आप भी आग में घी डालने की सोच रहे हैं? या फिर आग को बुझाने के लिए कमर कसेंगे। यह तो तय है कि राजस्थान जैसे राज्यों में तो परिदृश्य पश्चिम बंगाल का ही होता जान पड़ता है। अन्यत्र भी होगा, इसमें संदेह नहीं है।

इस जातिवाद की कैंची से प्रदेश/राष्ट्र को बचा लेना युवा वर्ग के हाथ में है। वरना, सुरक्षा और सम्मान भी आपका ही लुटेगा। तृणमूल कांग्रेस सरकार के निजी सत्ता स्वार्थ के कारण शरणार्थी पश्चिम बंगाल को खा गए। उत्तर-पूर्व खतरे में है, लेकिन राजनीति को कुछ और ही सूझ रहा है। दक्षिण को देख लें, केवल जातिवाद ही प्रांतों के धड़े किए बैठा है। कोई सम्पूर्ण देश को अपनी पहचान नहीं बनाना चाहता। हर कोई अपनी जाति-सम्प्रदाय तक सिमटकर प्रसन्न है।

यह सारा ‘माइण्ड-वॉश’ राजनेताओं और धर्म गुरुओं का है। हिन्दुत्व और इस्लाम का ध्रुवीकरण भी देश को उधर ही ले जा रहा है। हमारे अंग्रेजी दां नेता- अधिकारी तृतीय पक्ष की तरह दृष्टा बने हुए हैं। उत्तर केवल युवा के पास है-चाहे हिन्दू हो, मुसलमान हो या अन्य, पहले देश-फिर हम। हमारे आगे आज अजीब सा धुंधलका है। मीडिया गूंगा हो गया है। मानो उसको देश से कोई वास्ता ही नहीं।

इस बार चुनाव में तस्वीर कुछ और होती दिखाई पड़ती है। राजनेता आग में घी डालने लग गए हैं। देश का कितना हिस्सा जलेगा, उनको कोई लेना-देना नहीं। वे तो रातों-रात भेष बदलने वाले बहरूपिया हो गए। अपने पेट के आगे कुछ भी कर सकते हैं। यहां भी कांग्रेस के कुछ चुनिन्दा दूसरी ओर खिसकते दिखें तो आश्चर्य नहीं है। प्रश्न कांग्रेस-भाजपा का नहीं, देश और प्रदेश का है। युवाओं आगे बढ़ो-इस आग को फैलने से रोकने का सामर्थ्य केवल आप में ही है। यही नई आजादी की जंग होगी।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें