मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ का कथावाचक धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की शरण में जाना उनकी व्यक्तिगत समर्पण-भावना का विषय तो हो सकता है किन्तु उनके इस कदम से उनकी पार्टी को कुछ सवालों का सामना तो जरूर करना पड़ेगा। यह भी हो सकता है कि दिग्गज नेता कमलनाथ इसमें कुछ राजनीतिक संभावनाएं भी देख रहे हों। उनकी व्यक्तिगत समर्पण-भावना पर किसी को कुछ कहने का अधिकार नहीं है। जो सवाल उठता है वह स्पष्ट है।
भाजपा नेताओं की कथावाचक धीरेन्द्र शास्त्री के प्रति समर्पण-भावना के प्रदर्शन को लेकर कांग्रेस ने कई अवसरों पर भाजपा की आलोचना की है। कथावाचक धीरेन्द्र शास्त्री चमत्कार केन्द्रित धार्मिक आयोजनों के अलावा अपने विभिन्न विवादास्पद वक्तव्यों के लिए भी जाने जाते हैं। वे अपने मंतव्य और संकल्पों को खुलकर व्यक्त करते हैं। यह राजनीतिक दलों और आम जन पर निर्भर करता है कि उनकी उद्घोषणाओं को किस तरह लिया जाए।
आज प्रश्न कथावाचक धीरेन्द्र शास्त्री की बजाए कमलनाथ और उनकी पार्टी पर उठेगा कि कांग्रेस उसी कार्य के लिए भाजपा की आलोचना किस मुंह से करेगी जो कार्य उसके वरिष्ठ नेता कमलनाथ भी कर रहे हैं। कमलनाथ के इस कदम ने कांग्रेस को बहुत असमंजस में ला खड़ा किया है। फिलहाल, कांग्रेस ने कथावाचक धीरेन्द्र शास्त्री से नेताओं की निकटता के मामले में भाजपा या अन्य किसी भी दल की आलोचना करने का नैतिक अधिकार खो दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को सचेत करना चाहिए कि वे सामाजिक सौहार्द के लिए पार्टी द्वारा उठाई जा रही आवाज़ की मजबूती में खरोंच न लगने दें।