अग्नि आलोक
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*वैश्विक फलक : ब्रिक्स बैठक में डॉलर मुक्त अर्थव्यवस्था की कवायद के मायने*

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    शायद, इस बार ‘एनबीडी‘ कुछ और अफ्रीक़ी देशों को अपने क्लब में शामिल करे। इनमें माली, सूडान, नाइज़र और बुरकिनाफासो भी सूची में हैं। घ्यान से देखिये तो प्रेसीडेंट शी, पूरी ख़ामोशी से ब्रिक्स का सबकुछ शांधाई केंद्रीत करते आ रहे हैं। डिजीटल इकोनॉमी चीन का सबसे बड़ा अजेंडा है, जिसे ब्रिक्स बैठक में आगे बढ़ाने की योजना है। ब्रिक्स के विस्तार पर जी-7 देशों की भी नज़र है। जोहानिसबर्ग शिखर बैठक में सऊदी अरब, मिस्र, अर्जेंटीना में से किसे ब्रिक्स की सदस्यता के वास्ते हरी झंडी मिलती है, इसके लिए कुछ दिन और इंतज़ार करना होगा। 

        *~ पुष्पा गुप्ता*

   पुतिन जोहानिसबर्ग जाने से क्यों मना किए ? इस सवाल का संक्षिप्त उत्तर है, गिरफ्तारी से बचना। पुतिन को डर है कि बीच रस्ते उनके विशेष विमान का अपचालन कर गिरफ्तारी का प्रयास न हो। अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) ने 17 मार्च 2023 को प्रेसिडेंट पुतिन और रूसी बाल अधिकार कमिश्नर मारिया लोवा विलोवा को युद्ध अपराधी घोषित कर दिया था।

     यूक्रेन युद्ध में जिस तरह जान माल की हानि हुई है, अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय का निष्कर्ष था कि पुतिन की वजह से विनाश हुआ है। आईसीसी द्वारा अरेस्ट वारंट जारी करने का मतलब है कि पुतिन दुनिया के किसी भी लोकेशन पर गिरफ्तार किये जा सकते हैं। जल-थल-वायु, कहीं भी। तो रास्ता एक ही बचा था कि राष्ट्रपति पुतिन वर्चुअली ब्रिक्स शिखर बैठक को संबोधित करें। यों रूसी विदेशमंत्री सर्गे लावरोव की उपस्थिति जोहानिसबर्ग में रहेगी।

        पुतिन आभासी बैठक कर सकते हैं, उनके हवाले से यह विचार चल रहा था कि शी और मोदी भी ब्रिक्स बैठक को वर्चुअली संबोधित करें। ‘पहले आप-पहले आप‘ के इंतज़ार के बाद दोनों नेताओं की ओर से संकेत मिला कि वो जोहानिसबर्ग जाएंगे।.

      यदि नहीं जाते, तो ब्रिक्स शिखर बैठक का मज़ाक बनता। क्योंकि यह कोविड काल भी नहीं है। लेकिन पीएम मोदी के लिए शी से मिलना बशीर बद्र के शेर जैसी परिस्थिति शायद पैदा कर दे-‘कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से।‘

शी से गले मिलते हैं, या हाथ मिलाते हैं, तो चुनावी मंचों पर टीम इंडिया से लेकर सोशल मीडिया के रणबांकुरे बख्शने वाले नहीं। उसकी वजह है पेंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से, गोगरा पोस्ट और हॉट स्प्रिंग स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना की चौकसी का अवरूद्ध होना।

      पहले पेट्रोलिंग प्वाइंट 10, 11, 12, 12ए और 13 पर जिस तरह इंडियन आर्मी के जवान चौकसी के लिए जाते थे, अब नहीं जा सकते। दिल्ली में मीडिया को बताया जाता है कि एलएसी पर अब कोई समस्या नहीं है। चीन को सूई बराबर ज़मीन हम लेने नहीं देंगे। यदि यह बयान सही है, तो हमारी सेना अपनी हदों से बाहर क्यों है? ब्रिक्स की बैठक में क्या पीएम मोदी शी से यह सवाल पूछ पायेंगे?

 दमचोक में चीनी सेना से भिड़ंत के बाद ख़बर दी गई कि सितंबर 2022 में गोगरा हॉट स्प्रिंग एरिया में दोनों सेनाएं अपनी हदों में लौट गई हैं। लेकिन सच यह है कि वास्तविक नियंत्रण की वास्तविक स्थिति से देश की जनता को दूर रखा गया है। 

      शी चिनफिंग क्या अपने पूर्ववर्ती नेताओं से अधिक फरेबनज़र हैं? प्रथम दृष्टया यही लगता है, जैसे 1962 में जो घोखा हुआ था, शी उससे और आगे निकल चुके हैं। भारत पूरे अमृतकाल में चीनी माल का बहिष्कार चाहकर भी नहीं कर पाया। हालत यह हुई कि रूसी ऊर्जा कंपनियों को हमें पेमेंट चीनी मुद्रा, युआन में करना पड़ा। दरअसल, मोदी कूटनीति की अग्निपरीक्षा शी के समक्ष अबतक कायदे से हुई नहीं है।

      फिर भी, शी यदि अगले महीने जी-20 की शिखर बैठक मंे दिल्ली पधारते हैं, तो मानकर चलिये कि भारत-चीन की कूटनीति में डैमेज कंट्रोल की शुरूआत हो गई, वरना सांप-सीढ़ी का खेल हम आगे भी देखते रहेंगे। विश्व लीडरशिप में शी चिनफिंग सबसे अविश्वसनीय, रहस्यमय और अप्रत्याशित फैसले लेने वाले नेताओं में से माने जाते हैं।.  

      इसलिए, पीएम मोदी के लिए शी से पार पाना आसान नहीं है। पुतिन यदि ब्रिक्स बैठक में नहीं आ रहे हैं, तो शी चिनफिंग सबसे कद्दावर नेताओं में नमूदार हो सकते हैं।

यों, ब्रिक्स है भी चीन-रूस के सहकार का मंच जिसे जी-7 जैसी आर्थिक ताक़त के बरक्स खड़ा करने की कवायद होती रही है। ब्राज़ील, रूस, इंडिया, और चाइना के सदस्य बने रहने तक यह ‘ब्रिक‘ के रूप में जाना जाता था, कालांतर में दक्षिण अफ्रीक़ा के जुड़ने के बाद यह ‘ब्रिक्स‘ हो गया। इस समय दक्षिण अफ्रीक़ा ब्रिक्स का अघ्यक्ष देश है।

        हर छह साल बाद अघ्यक्षता की बारी आती है। ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) के नेता जुलाई 2006 में जी-8 आउटरीच शिखर सम्मेलन के दौरान पहली बार रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में मिले थे। इसके दो माह बाद, सितंबर 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के मौके पर पहली ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक हुई, और ब्रिक के स्थापना की घोषणा हो गई। 

       ब्रिक्स के गठन का आइडिया ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओश्नील ने दिया था। 2001 के दौर में ओश्नील ने इसकी अवधारणा व्यक्त करते हुए इस मंच को जी-7 का विकल्प माना था। जिम ओश्नील की परिकल्पना थी कि ब्राजील, रूस, भारत और चीन तेज़ रफ्तार अर्थव्यवस्था वाले देश हैं, जो तेजी से विकसित होंगे और अंततः जी-7 राष्ट्रों की आर्थिक शक्ति को चुनौती देंगे। ब्रिक्स बैंक का मुख्यालय शांधाई में है।

      एक तरह से ब्रिक्स बैंक को ही मुख्यालय या सचिवालय समझ लिया गया। ब्रिक्स बैंक का नया नाम है, न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी)।

आज की तारीख़ में दुनिया भर की आबादी की 40 फीसद हिस्सेदारी और एक चौथाई जीडीपी का दावा ब्रिक्स देश करते हैं। दक्षिण अफ्रीका ने शिखर बैठक के लिए विश्व के 69 देशों को आमंत्रित किया है। जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स की यह 15वीं बैठक है, जिसमें चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग 21 से 24 अगस्त तक रहेंगे।

       पीएम मोदी 22 से 24 अगस्त तक जोहानिसबर्ग रहेंगे, फिर वहां से वो ग्रीस के लिए रवाना हो जाएंगे। 40 वर्षों के बाद यूनान की धरती पर किसी भारतीय प्रधानमंत्री का आगमन होगा। ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस से मोदी समुद्री यातायात, प्रतिरक्षा, व्यापार जैसे सहकार पर बात करेंगे और कुछ उभयपक्षीय समझौतों को अंजाम देंगे। 30 से 31 जनवरी 2023 को विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ग्रीस गई थीं, तभी यह उम्मीद की जाने लगी कि प्रधानमंत्री मोदी जाएंगे और मौर्यकाल से संबंधों को ताज़ा करेंगे।

      शी ब्रिक्स को आगे बढ़ाने के लिए बहुत फोकस्ड हैं। ख़ासकर अमेरिकी-यूरोपीय आर्थिक व्यूह रचना को जवाब देने के लिए उन इलाक़ों की तलाश कर रहे हैं, जहां व्यापार के साथ-साथ चीन अपनी कूटनीति को मज़बूत कर सके। ब्रिक्स का विस्तार भी उसी का हिस्सा है। शुक्रवार को चीनी विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने पत्ते खोले हैं कि शी चाइना-अफ्रीका लीडर्स डायलॉग में दक्षिण अफ्रीक़ी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा के साथ को-चेयर करेंगे। चीन डालर मुक्त विश्व अर्थव्यस्था की ओर उन्मुख है।

चाइना-अफ्रीका लीडर्स डायलॉग में एक विषय यह भी होगा कि अफ्रीकी देश डालर के बदले युआन में पेमेंट को वैश्विक व्यापार का विकल्प बनायें। अफ्रीका के छह देशों अल्जीरिया, मिस्र, इथियोपिया, नाइजीरिया, सेनेगल और बुरूंडी तक ने ब्रिक्स की सदस्यता लेने में दिलचस्पी दिखाई है।

        सवाल यह है कि अफ्रीका में कूटनीति और व्यापार के विस्तार में चीन जितना आक्रामक है, भारत पिछले एक दशक में उस तरह की धार क्यों नहीं पैदा कर सका? अफ्रीक़ा ही नहीं, तीसरी दुनिया के बहुत से इलाक़ों में हमारी कूटनीति कछुआ चाल चल रही है। बस इतना ही होता है कि मोदी जिन देशों की यात्रा पर होते हैं, उसे खाये-पीये-अघाये भारतीय प्रवासियों का इवेंट बना दिया जाता है। शी चिनफिंग ऐसे ढोल-ढमाके से दूर रहते हैं। यही बुनियादी फ़र्क़ है, मोदी और शी में। 

       ब्रिक्स ने न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) को तेज़ रफ्तार से बढ़ाया है, जिसके मौज़ूदा अध्यक्ष हैं ब्राज़ील के राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ। द्रेसदेन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर ज़ाजोंत्स का कहना है कि कोविड से लेकर यूक्रेन युद्ध तक अमेरिका और यूरोपीय देशों ने चीन व रूस की आर्थिक घेरेबंदी की है, उसका जवाब एनडीबी के माध्यम से देने की कवायद चल रही है।

     डालर मुक्त अर्थव्यवस्था के लिए करेंसी लेंडिंग की सुविधाओं ने कई देशों को एनबीडी ने अपनी ओर आकर्षित किया है। ब्रिक्स का सदस्य नहीं होने के बावज़ूद, मिस्र ने 2021 में एनडीबी को ज्वाइन किया। चीनी मुद्रा, युआन की सुविधाओं से उसे पेमेंट की आसानी हुई है। यह देखकर अल्जीरिया और ज़िम्बाब्वे भी आगे आये हैं।

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