रायपुर। केंद्र सरकार की ओर से प्याज पर लगाया गया 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क न तो घरेलू बाजार में प्याज की उपलब्धता को सुनिश्चित करेगा और न ही उपभोक्ताओं को महंगाई की मार से बचायेगा। यह शुल्क केवल और केवल निर्यातक व्यापारियों और कालाबाजारियों की तिजोरियों को भरने के लिए लगाया गया है।
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा प्याज पर लगाये गए शुल्क पर ऐसी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा ने। एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि इस समय जब मंडियों में प्याज की आवक बढ़ रही है, इस पर निर्यात शुल्क लगाने से इसके भाव 15 रुपये से गिरकर एक या दो रुपये प्रति किलो रह जाएंगे, जिससे प्याज उत्पादक किसानों को बाजार में अपनी फसल के वाजिब दाम से वंचित होना पड़ेगा। बाद में कौड़ियों के भाव खरीदे गए यही प्याज महंगे दामों में बेचकर व्यापारी कई गुना मुनाफा कमाएंगे और उपभोक्ताओं को लूटेंगे। तब भाजपा सरकार कालाबाजारियों का सुरक्षा कवच बन कर आएगी और कुतर्क करेगी कि प्याज की कीमतें इसलिए बढ़ रही है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्याज की कीमतें बढ़ गई हैं।
किसान सभा नेताओं ने कहा है कि प्याज उत्पादक किसानों को लूट से बचाने और प्याज की कालाबाजारी रोकने के लिए सरकार को खुद 15 रुपए किलो की दर से प्याज खरीदकर भंडारण करना चाहिए और बाजार की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर पर्याप्त मात्रा में प्याज उपलब्ध कराना चाहिए, ताकि किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को ही संरक्षण मिल सके।
उन्होंने कहा है कि यदि भाजपा सरकार ऐसा नहीं करती है, तो साबित हो जाएगा कि भाजपा सरकार प्याज उत्पादक किसानों और उपभोक्ताओं की नहीं, बल्कि निर्यातक व्यापारियों और कालाबाजारियों की सरकारी है।