*सुसंस्कृति परिहार
विश्व साक्षरता दिवस पिछले 75सालों से से देश भर में मनाया जाता रहा है इस अवसर पर कथित पढ़े-लिखे लोग इस दिवस पर शिक्षा का महत्व समझाते रहे हैं किंतु इसकी हमारे देश में अब जरूरत नहीं है ? मोबाइल क्रांति ने चिट्ठियां लिखना और बांचने में होने वाले समय को बचा दिया है।यू ट्यूब या विभिन्न चैनलों से समाचार सुन लो फोटुओं को देख लो। समाचार पत्र खरीदने और पढ़ने की फुर्सत किसके पास है । पहले दस्तखत करने के लिए पढ़ाई ज़रुरी थी।अब तो अगूंठा लगाओ और शिक्षा को अंगूठा दिखा दो।सारा ज्ञान तो इसमें होने वाले भाषणों और प्रवचनों में भरा पड़ा है एक नन्हें से मोबाइल ने छात्रों को पढ़ाई के संकट से बचा लिया है वरना शिक्षकों की संटियां और उठा बैठक बचपन से करना पड़ती।कलम,किताब और बस्ते से आजादी मिली अब बताएं साक्षर बनने और साक्षरता दिवस मनाने की क्या ज़रुरत।सारे स्कूल,कालेज,विश्वविद्यालय बंद करो।एक मोबाइल ने सरकार का कितना खर्चा बचा दिया।घर बैठे काम करो ।जब फुर्सत हो तो इसे पकड़े रहो और जो पसंद है देखते सुनते रहो।व्यर्थ की परेशानियों से बचें रहोगे।सुख चैन से रहोगे।अंबानी कितना समझदार है उसने मोबाइल के ज़रिए भारत को मुट्ठी में कर लिया है।अडानी की हालत भले पतली हो जाए पर अंबानी तो सिरमोर बना ही रहेगा।
अच्छा हो साक्षरता की जगह मंगल गुरु शनि शुक्र हो या सोमवार जिस इष्ट की उपासना का दिन हो उस दिन पंडित को आमंत्रित कर विधि-विधान से कथायें सुनी जाएं |इससे बच्चों का भी आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ेगा साथ ही मोक्ष की कामना का विकास भी होगा।तमाम धार्मिक पुस्तकों को हर कौम में उनके पंडित मौलवी और पादरी बांचते ही हैं |हम क्यों पढ़ें और उनका धंधा छीने | वे हमें श्राप दे देंगे।पढ़ने के काम के लिए विशिष्ट व्यक्तियों को पहले से चयनित किया गया है हमें उन पर यकीन कर अपने व्यक्तित्व का विकास करना चाहिए।एक अच्छा धार्मिक व्यक्ति आज की ज़रुरत है क्योंकि जब गहन अंधियारा होता है तब यही लोग हमें ही नहीं बल्कि कामनात को बचाते आ रहे हैं।हर संकट का इनके केंद्रों में समाधान है।कहते भी हैं जब आदमी जीवन में हताशा और निराशा से घिर जाता है तो इनके श्री चरणों में ही मुक्ति मिलती है।रोटी ,कपड़ा और मकान की इच्छाओं का अंत भी यहां ही होता है। इसीलिए इन महामानवों की शरण ही लाज़िमी है।
ध्यान रहे, पढ़ना लिखना अब देश हित में नहीं बल्कि देशद्रोही काम है| पिछले दिनों आपने सुना होगा कि एक शिक्षक ने बच्चों से कह दिया कि हम सबको पढ़ लिखे व्यक्ति को ही वोट देना चाहिए उसकी कैसी दुर्गति हुई उसे नौकरी से बाहर निकाल दिया गया। सही बात है जब हमने पुष्पक विमान बनाया हो, गणेश जी की सर्जरी की हो, एक वीर्य से 100 कौरव घड़े में जन्माये हों ,पत्थरों की प्रतिमाओं में प्राण प्रतिष्ठा की हो |सदियों से देववाणी सुनी हो , जहां महाभारत का आंखों देखा हाल सुनाया गया है वो क्या ये पढ़ाई से हुआ था ?यह विवेक और ज्ञान धार्मिक केन्द्रों में ही उपजा।भले ही वह विलुप्त प्राय हो गया है और विदेश से आयातित कथित तकनीकी उपकरण हम इस्तेमाल कर रहे हों लेकिन अपनी समृद्ध विरासत को भूलना उचित नहीं है।उसे बचाने शिक्षा की तमाम दूकानों को बंद कर देना चाहिए।
भला हो हमारी सरकार का जिसने सनातन ज्ञान के उपार्जन हेतु बड़े बड़े मंदिरों में ज्ञान की तलाश में जुटे लोगों के लिए बड़े बड़े कारीडोर बनवाए।तमाम व्यवस्थाएं की ताकि रोजगार भी चले और ज्ञान भी बराबर मिलता रहे।गाय माता कि प्रतिष्ठा हो या नदी माता की उनके लिए पुरजोर प्रयास किए जा रहे हैं मुझे पूरा भरोसा है 2024के चुनाव में यदि यह सरकार वापसी करती है तो शिक्षा दीक्षा गुरुकुलों में सिर्फ अर्जुनों तक सिमट जाएगी और एकलव्य अपना अंगूठा दान करते रहेंगे। उन्हें ज्ञान की क्या ज़रुरत सच बात है आप देख ही रहे हैं एक मोबाइल ही काफी है।
यह सही बात है जो पढ़ लिख लेता है उसकी विचार करने और सोचने की क्षमता बढ़ जाती है जिससे वे हर काम में दख़लंदाजी शुरू करने लगते हैं |लोगों को शोषण उत्पीड़न का पाठ पढ़ाने लगते हैं |जिससे देश में अराजकता फैलने लगती है।इन देशद्रोहियों की क्या ज़रुरत ? कहा भी जाता है पढ़ोगे लिखोगे बनोगे ख़राब /खेलोगे कूदोगे बनोगे नवाब |गांव गांव जाकर देखिए मां बाप यह कहते नज़र आते हैं कि पढ़ाई ने लड़कों लड़कियों को बर्बाद कर रखा है। सरकार की जय हो जिसने उनकी दुखती रग को पहचान लिया और उसके निवारण हेतु प्रयासरत हैं।
पिछले सालों में याद करिए इसलिए कलबुर्गी जी और कामरेड पानसरे जैसे विद्वान लोगों के साथ पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ काम करने वाले डा दाभोलकर और गौरी लंकेश जैसी पत्रकार को राष्ट्र विरोधी मानकर गोलियों से छलनी कर दिया।शिक्षा, अनुसंधान, विज्ञान के क्षेत्र में चूंकि नेहरू जी ने देश को जो दिशा दी उन्हें भी सनातन विरोधी मानकर आए दिन जलील किया जाता है।उनका ये गुनाह देश कभी नहीं भूल सकता।
कहते हैं जस राजा तस प्रजा होना चाहिए इसे अंधभक्ति नहीं कहें।अब सरकार को चाहिए तमाम किताब धारियों की किताबें जप्त की जायें | पुस्तक मेलों में सिवाय धार्मिक पुस्तकों का ही स्टाल मिले | नैतिकता का पतन भी तो बचाना है, दूसरे की अक्ल क्यों उधार ली जाए ? इकलौता हमारा ही देश है जहां स्त्रियों को देवियों की तरह पूजा जाता हो|पूरे नौ दिन उनकी उपासना के होते हैं। सशक्तिकरण का इससे बड़ा उदाहरण कहीं नहीं।सती सावित्री आज भी हमारी शानदार विरासत हैं। फिर ज़रुरत पड़ने पर सरकार उन्हें खर्चा पानी दे ही देती है। उन्हें महात्माओं की शरण में जो सुख मिलता है वह कहीं नहीं मिलता।महात्माओं और साधु संतों और बाबाओं को इसलिए आज भी विशिष्ट सम्मान मिलता है वे सिर्फ आशीर्वाद देते हैं और दुनिया बदलते देर नहीं लगती।। उन्हें और बढ़ावा देने की ज़रूरत है क्योंकि उनके विचारों से अभी भी बहुत जन वंचित हैं और वे गलत राह पर चल रहे हैं।सब जगह उनकी पहुंच बनाने के लिए रेल,बस, वायुयान रेस्तरां वगैरह तथा सार्वजनिक स्थलों पर भजन ,कीर्तन, प्रवचनों से देश की बाधाएं दूर होंगी। अब तक के पूजा पाठ और श्रद्धा से हम चांद पर पहुंच गए हैं इसमें और तूफानी गति से भाग लें तो हम सूर्य महाराज को भी कब्जे में ले लेंगे दुनिया ताकती रह जाएगी। |तब हम विश्वगुरु से ब्रह्मांड गुरु हो जाएंगे। दुनिया हमारी सनातनी ताकत की गुलाम हो जाएगी।
|हमने हमेशा बाहर से आने वालों का स्वागत किया| ऋषि मुनियों के मुखारविंद से निकले शब्दों का शब्दश: पालन हमारा कर्तव्य था | लेकिन मुगलों ,अंग्रेजों और कांग्रेस ने यहां सब तहस-नहस कर डाला 7 दशक हो गए उसी राह पर हमें चलते हुए कैसे सुधरेगा हमारा देश ! आइए, साक्षरता दिवस पर संकल्प करें -“हम भारत के लोग यह वचन देते हैं कि राजाज्ञा को ही सर्वोपरि मानेंगे |असमानता ,शोषण, अत्याचार, भ्रष्टाचार को अपना नसीब मानते हुए कभी रोजगार नहीं मांगेंगे | जितना जैसा जो मिलेगा उसी में जिएंगे मर भी जाएं तो राष्ट्र के खिलाफ उफ नहीं करेंगे | किताबों को शत्रु मानेंगे | पंडितों के विधान का अक्षरश: पालन करेंगे | विद्वान सर्वत्र पूज्यते का भ्रम भी दूर करेंगे | सिर्फ धर्म-कर्म में रुचि रखेंगे ताकि देश अपनी खोई प्रतिष्ठा प्राप्त कर सके |तथास्तु।