अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

*क्यों ओझल किया जाता है खुद का इतिहास*

Share

     (यादवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सामंतक दास के लेख का हिंदी रूपांतर)

      ~ कुमार चैतन्य

पचास साल पहले जब वियतनाम युद्ध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, विरोध की संस्कृति की ओर लोगों का खिंचाव हो रहा था, लिंग, वर्ग, नस्ल, कामुकता आदि विषयों पर लोगों में विद्रोह के भाव पनप रहे थे, जिस काल को अक्सर सेक्स, ड्रग, रॉक एंड रोल का काल बताया जाता है, तब कैलिफोर्निया के एक हाई स्कूल में इतिहास का नौजवान शिक्षक रौन जोन्स अपने पंद्रह साल की उम्र के छात्रों को समझा रहा था कि कैसे वह सब बिल्कुल सामान्य बात थी, साधारण जर्मन सन् ’20 से ’30 के जर्मनी में नाजियों के उदय में शामिल हो गये थे और फिर कैसे उन्होंने अपनी इस भागीदारी से इंकार किया था।

      छात्रों को बौद्धिक स्तर पर इस बात को जब वह समझा नहीं पा रहा था तब जोन्स ने एक प्रयोग करने का निश्चय किया ताकि बता सके कि कैसे ऐसी चीजें संभव हो जाती है। उसने एक सोमवार को छात्रों को ‘थर्ड वेव’ नाम के एक आंदोलन के बारे में बताया जो अनुशासन से संबंधित था।

 जोन्स के शब्दों में, उसने खुद 1976 में एक कहानी प्रकाशित थी जिसमें इस प्रयोग का पूरा ब्यौरा दिया हुआ है, “मैंने अनुशासन के सौंदर्य के बारे में एक भाषण दिया। एक धावक खेल में हमेशा जीत के लिये कठिन परिश्रम के बाद कैसा महसूस करता है। कोई बैले नर्तक, कोई पेंटर बिल्कुल सटीक काम के लिये कठिन मेहनत करता है। अपने विचारों की खोज के लिये किसी वैज्ञानिक का नियोजित धैर्य। यह अनुशासन है। नियंत्रण। इच्छा शक्ति। श्रेष्ठ मानसिक और भौतिक सुविधाओं के एवज में शारीरिक कष्ट। अंतिम विजय।”

लेकिन जोन्स ने सिर्फ बात करने के बजाय अपने छात्रों से इस पर अमल कराया। वै कैसे अपने क्लास में सवाल पूछेंगे अथवा जवाब देंगे, इसके नियमों का पालन करते हुए, उन सबकों तन कर बैठ जाने के लिये कहा, और आश्चर्यजनक रूप से इन साधारण से कदमों से उसने देखा कि उसके पाठन में नाटकीय सुधार आ गया है। मंगलवार को उसने उन्हें एक सलामी दी — दाहिने हाथ को छाती से छू कर — और ब्लैक बोर्ड पर दो विषय लिखें — ‘अनुशासन से शक्ति’ और ‘समुदाय से शक्ति’। इन विषय पर बोलते उन्होंने बताया कि कैसे “समुदाय उन व्यक्तियों के बीच का बंधन है जो साथ-साथ काम करते हैं, संघर्ष करते हैं।

     यह अपने पड़ौसी के साथ मिल कर तैयार किया जाने वाला बखार है ; यह एक ऐसा भाव है कि आप अपने से बाहर के, एक आंदोलन, एक दल…एक उद्देश्य के अंग हैं।”

    उसने क्लास में एक एकजुट समुदाय के सदस्यों के रूप में इन उद्देश्यों का पाठ कराया, पहले युगलबंदी में, फिर क्रमशः अपने-अपने में। 

    अगले दिन स्कूल में इस नये आंदोलन की जोर चर्चा होने लगी, जिसमें लगा कि कुछ चुनिंदा छात्रों को शामिल किया गया है। उसी दिन जोन्स ने उन सभी छात्रों में एक ‘सदस्यता कार्ड’ वितरित किया जो इस प्रयोग में शामिल होना चाहते हैं। एक भी छात्र ने इससे इंकार नहीं किया। जोन्स ने उन कार्ड में से तीन कार्ड पर X चिन्ह लगा दिया और उन्हें जिन छात्रों को दिया, उनसे कहा कि उन्हें विशेष कार्ड दिया जा रहा है। उनका काम होगा कि इस ‘थर्ड वेव’ आंदोलन के नियमों का जो छात्र पालन नहीं कर रहे हैं, वे उनके बारे में रिपोर्ट करेंगे।

    उस दिन के उनके भाषण का विषय था कार्य का महत्व और कैसे बिना कार्रवाई के अनुशासन निर्रथक होती है। “मैंने बहुत सरल तरीके से छात्रों को बताया कि वे कैसे नये सदस्यों से बात करेंगे। इसी प्रकार कुछ बाते कीं। जो भी नया सदस्य होगा उसके लिये किसी वर्तमान सदस्य की सिफारिश होगी और उसे मैं कार्ड सौपूँगा।

     इस कार्ड को हासिल करने के बाद नये सदस्य को हमारे नियमों के बारे में बताना होगा और उनके प्रति निष्ठा की शपथ दिलानी होगी। मेरी घोषणा से सबमें एक उत्साह आ गया।”

जोन्स के स्कूल, पालो आल्तो के कबेरले हाई स्कूल,  में प्रिंसिपल से लेकर लाइब्रेरियन से उनके टीचरों के लिये खाना बनाने वाले कुक तक में चौथे दिन तक इस ‘थर्ड वेव’ का बुखार चढ़ चुका था और जोन्स के मन में गहरी शंका पैदा होने लगी कि अनजाने में ही जैसे उसने किस जिन्न को बोतल से निकाल दिया है।

    वह इस प्रयोग को खत्म करने के बारे में सोचने लगा। बिल्कुल परेशान हो कर उसने छात्रों से कहा कि कल दोपहर में एक विशेष सभा होगी, जहां राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार थर्ड वेव युवा कार्यक्रम के गठन की घोषणा करेगा, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये एक नयी शुरूआत की दिशा में पहला कदम, जिसमें थर्ड वेव के सदस्य हरावल दस्ते बनेंगे। जोन्स कल्पना नहीं कर सकता उससे भी ज्यादा इस घोषणा का असर हुआ।

प्रयोग के अंतिम दिन स्कूल के सभागार में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के टेलिविजन पर राष्ट्र के नाम भाषण को सुनने के लिये स्कूल के सारे लोग इकट्ठे हो गये। सभागार में भारी उत्तेजना थी, हर कोई जैसे सांस रोके हुए था। जोन्स के आदेश पर छात्रों ने थर्ड वेव के लक्ष्यों का सामूहिक पाठ किया, उपस्थित प्रेस के लोगों और फोटोग्राफरों को दाहिने हाथ को सीने पर रख कर वेव की सलामी दी।

     जोन्स के मित्रों ने विशेष पोशाक पहन रखी थी। दोपहर के बारह बज के पांच मिनट पर जोन्स ने सभागार की सारी लाइट बंद कर दी और टेलिविजन चला दिया। सबकी उत्सुकता चरम पर थी। “कमरे में सिर्फ टेलिविजन की रोशनी सबके चेहरों पर चमक रही थी। सबकी आंखें उसी ओर थी। कमरे में बिल्कुल खामोशी। सब प्रतीक्षारत। कमरे के लोगों और टेलिविजन के बीच जैसे एक मानसिक खींच-तान चल रही हो। टेलिविजन विजयी हुआ। उसकी सफेद रोशनी से किसी राजनीतिक नेता की सूरत नहीं बनी। वह बस यूं ही चलता रहा लेकिन तब भी दर्शक टिके रहे।…अपेक्षा व्यग्रता में और फिर निराशा में बदल गई।”

     उसी समय जोन्स ने अपने उतावले हो चुके श्रोताओं से कहा, “कोई नेता नहीं आने वाला है। थर्ड वेव की तरह का कोई राष्ट्रीय युवा आंदोलन नहीं है। आप सबका इस्तेमाल किया गया है। आप इस जगह अपनी खुद की वासना के चक्कर में जमा है। हम जिन जर्मन नाजियों का अध्ययन कर रहे हैं, आप उनसे न ज्यादा अच्छे हैं, न बुरे।” वे आगे कहते हैं, “आपने सोचा कि आप चुनने वाले हैं। अर्थात् आप उनसे बेहतर हैं जो इस कमरे में नहीं है। आपने अनुशासन और श्रेष्ठता के जरिये अपनी स्वतंत्रता का सौदा कर लिया। आपने उस समूह की इच्छा को और अपने विश्वास को लेकर एक बड़े झूठ को अपना लिया। ओह, आप खुद में सोच रहे हैं कि आप महज एक मजा कर रहे हैं। उससे आप किसी भी क्षण अलग हो सकते हैं। लेकिन आप जा किधर रहे थे ? ”

     ऐसा कहते हुए जोन्स ने स्क्रीन पर नाजी जर्मनी के बारे में एक वृत्त-चित्र शुरू कर दिया और अंत में यह घोषणा की कि उनके छात्रों ने स्कूल में अपने हफ्ते भर के अनुभव से वह चीज जानी जिसे मैं उन्हें समझाने में असफल हो गया था। “जर्मनी के सैनिक, शिक्षक, रेल-चालक, नर्स, कर-अधिकारी, सामान्य नागरिक थर्ड राइख के अंत के बाद कैसे यह दावा कर सके थे कि जो हो रहा था उसके बारे में वे कुछ नहीं जानते थे ? कैसे लोग किसी चीज का हिस्सा बन जाते हैं और फिर उसके अंत के बाद यह दावा कर सकते हैं कि वे तो उसमें शामिल ही नहीं थे ? वह क्या चीज है जो लोगों को अपने ही इतिहास से आंख मूंद लेने के लिये मजबूर करती है ? ”

      जोन्स ने 1976 में यह कहते हुए अपने ब्यौरे का अंत किया कि जो 200 छात्र ‘द थर्ड वेव’ में शामिल हुए थे, उनमें से किसी ने भी कभी इस बात को नहीं स्वीकारा कि वे शुक्रवार की अंतिम सभा में उपस्थित थे।

    ‘द थर्ड वेव’ के आधार पर ही 1981 में अमेरिकन टेलि-फिल्म ‘द वेव’ का निर्माण हुआ, उसी साल इस नाम से एक उपन्यास लिखा गया जिस पर पुरस्कृत जर्मन फिल्म ‘Die welle’ (The wave) बनी।

      सन् 2010 में जोन्स के एक छात्र ने जिसने 1967 के प्रयोग में हिस्सा लिया था,  ‘Lesson Plan’ शीर्षक से एक डाक्यूमेंट्री बनाई, जिसे काफी सराहा गया। 

     आज जब हम दुनिया में मसीहाई सर्वाधिकारवादी नेताओं के उदय को देखते हैं और एक अनुशासित, विशिष्ट, देशभक्तिपूर्ण, राष्ट्रवादी समुदाय के गठन में शामिल होने के लिये जनता के बड़े हिस्सों में स्पष्ट उत्सुकता देखते हैं, तब रोन जोन्स और उसके प्रयोग पर गौर करके हम अपने जीवन और समय के बारे में कुछ मूल्यवान संकेत पा सकते हैं।

2 comments

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें