अग्नि आलोक
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*मज़हब ही सिखाता है आपस में बैर रखना*

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(नफरत में होती है मजहब की ताकत)

        *~ पुष्पा गुप्ता*

    जब लोगों के पास अपनी कोई समझ नहीं रह जाती, तो फिर मजहब उनके बहुत काम आता है। किसी मजहब की आराधना के संगीत में लोगों को जोडऩे की जितनी ताकत रहती है, उससे हजार गुना ताकत किसी मजहब के लोगों से नफरत करने में विधर्मी-धर्मान्ध लोगों के बीच रहती है।

     एक धर्म से नफरत दूसरे धर्म के लोगों को तुरंत एकजुट कर देती है। जिस गुजरात के जय शाह बीसीसीआई के सचिव हैं, उनके ही गुजरात में जब नरेन्द्र मोदी स्टेडियम में पाकिस्तान की टीम खेलने उतरी तो उनका स्वागत करने के लिए दर्शकों के पास सिर्फ आक्रामक नारों के साथ हवा में मुट्ठी लहराते जयश्रीराम के नारे थे।

     एक मेहमान टीम से नफरत पैदा करने के लिए मेजबान दर्शकों में अपने धर्म के प्रति धर्मान्ध होना जरूरी था, और वही काफी भी था। लोगों ने सोशल मीडिया पर इस बर्ताव के बारे में लिखा भी, और अफसोस भी जाहिर किया। लेकिन ऐसी समझ रखने वाले लोग जहरीली धर्मान्धता वाले लोगों के मुकाबले कम मुखर रहते हैं, और इसीलिए कम दिखते हैं।

     हवा में नफरत घोलने वाले लोग चाहे गिनती में कम रहते हों, वे दिखते अधिक हैं। धर्मान्धता का ऐसा ही असर आज हिन्दुस्तान के उन लोगों में दिख रहा है जो बेकसूर फिलीस्तीनी नागरिकों को मार रहे इजराइल पर फिदा हैं, क्योंकि वह मुस्लिमों को मार रहा है।

    पूरी दुनिया में जो भी मुस्लिमों के खिलाफ बात करे, वैसे ट्रम्पों को चुनाव में जितवाने के लिए हिन्दुस्तान में एक तबका यज्ञ और हवन करने लगता है। जब कोई मुस्लिम देशों पर बम बरसाए तो उसकी लंबी उम्र की कामना करने लगता है।

     आज जब इजराइल एक जंग के नाम पर बेकसूर फिलीस्तीनियों को मारकर अपनी घरेलू एकता कायम कर रहा है, तो उस पर भी हिन्दुस्तान का एक धर्मान्ध तबका फिदा है कि वह मुस्लिमों को मार रहा है। 

किसी भी देश या समाज के आगे बढऩे की क्षमता उस वक्त खत्म होने लगती है जब उसकी सोच इतनी तंगदिल और तंगनजरिए की हो जाती है कि किसी दूसरे की बर्बादी उसे अपनी कामयाबी लगने लगती है। किसी और को आए जख्म, उनकी गिरी लाशें जिन्हें सुहाने लगती हैं, वे खुद जिंदगी में कुछ और हासिल करना नहीं चाहते क्योंकि खुद की मेहनत के बिना दूसरों की लाशें देखकर उन्हें खुशी और गर्व दोनों हासिल हो रहे हैं।

     ऐसा समाज आगे बढऩा बंद कर देता है, और हिन्दुस्तान के एक बड़े तबके के साथ आज यही हो रहा है कि उसे पाकिस्तान में आटे की कतार में लगे लोगों की भगदड़ में दर्जन भर मौतें हो जाने से तसल्ली हो रही है, जिसे पाकिस्तान में तीन-चार सौ रूपए लीटर पेट्रोल होने पर हिन्दुस्तानी पेट्रोल महंगा लगना बंद हो गया है, जबकि दोनों देशों के रूपयों के दाम में ये रेट बराबर ही है। धार्मिक नफरत समझ को खोखला और कमजोर कर देती है। 

     लोगों के तर्कपूर्ण और न्यायसंगत होने का एक बड़ा रिश्ता उनकी वैज्ञानिक समझ से जुड़ा रहता है। और वैज्ञानिक समझ का मतलब कहीं भी धर्मविरोधी होना नहीं होता है। दुनिया के बड़े-बड़े वैज्ञानिक धर्म पर अपनी निजी आस्था रखते आए हैं, लेकिन उन्होंने अपनी आस्था को अपनी वैज्ञानिक समझ पर हावी नहीं होने दिया, इसीलिए वो वैज्ञानिक बन पाए।

      अगर इंसानी पुरखों को महज ईश्वर के भरोसे बैठना होता, तो वे आसमानी बिजली गिरने पर लगने वाली आग की राह तकते, वे चकमक पत्थर का आविष्कार नहीं करते। वे पत्थर को तराशकर गोल चक्का नहीं बनाते, और वे न पकाना सीखते, न कपड़े पहनना।

      ये तमाम चीजें एक वैज्ञानिक सोच के साथ आईं, धर्म ने अगर कुछ किया, तो वह इस वैज्ञानिक सोच की धार को भोथरा करने का काम ही किया, विज्ञान की रफ्तार को घटाने का काम किया। अभी किसी ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि जिस वक्त योरप विज्ञान और तकनीक से हो रही औद्योगिक क्रांति से गुजर रहा था, उस वक्त हिन्दुस्तान में बादशाह रास-रंग में डूबे हुए किले और महल बनवा रहे थे। ऐसी ही वजहें थी कि विज्ञान और तकनीक की अहमियत समझने वाले देश आगे बढ़ते चले गए, और धर्म को ही सब कुछ समझने वाले देश पीछे रह गए, गुलाम भी बन गए।

 हिन्दुस्तान में एक तबके का अपार भरोसा इस बात पर है कि इस देश के किसी खालिस हिन्दू इतिहास में देश के पास ब्रम्हास्त्र थे। लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जब अंग्रेज बंदूकें लेकर आए, तो वे सारे ब्रम्हास्त्र कहां चले गए थे? 

     इसलिए झूठे गौरव में डूबा समाज कभी अपनी सारी संभावनाओं को नहीं छू पाता। आज पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को हिन्दुस्तानी क्रिकेट टीम अगर बुरी तरह से हरा रही है, तो वह किसी धर्म या मजहब की वजह से नहीं है, खेल की वजह से है।

      लेकिन खेलभावना को कुचलकर अगर सिर्फ धार्मिक नफरत से किसी टीम को खारिज करना है, हिन्दुस्तान की तथाकथित अतिथि सत्कार की परंपरा को कचरे की टोकरी में डाल देना है, तो इतनी ताकत महज धर्म में है, इतनी नफरत महज धर्म सिखा सकता है।

     यही नफरत आज हिन्दुस्तान के एक तबके को फिलीस्तीन के साथ हो रही ऐतिहासिक बेइंसाफी समझने से परे रखती है, यही नफरत एक जुल्मी और हमलावर इजराइल की तारीफ करवाती है। और ऐसी नफरत ही मणिपुर में बड़ी संख्या में मारे जाते ईसाई-आदिवासियों के लिए किसी भी तरह की हमदर्दी रोकती है।

     यही नफरत हिन्दुस्तान को हिन्दू राष्ट्र बनाने पर आमादा है, और यही नफरत हिन्दुस्तान को एक अखंड भारत बनाने पर भी आमादा है, फिर चाहे एक साधारण सा गणित बता देगा कि ऐसे अखंड भारत में मुस्लिम आबादी कितना गुना बढ़ जाएगी।

     धर्मान्धता, और धार्मिक नफरत ये लोगों से अंकगणित की बुनियादी समझ भी छीन लेते हैं। 

आज जिन लोगों को इजराइल सुहा रहा है, उन्हें याद रखना चाहिए कि जिस दिन उसके पड़ोसी इजराइल की तरह उनके घरों को धराशायी करेंगे, उन्हें बेदखल करके उनकी जमीन पर अपना घर बना लेंगे, उनके बच्चों को बेघर कर देंगे, उस दिन उन्हें पता लगेगा कि बेघर फिलीस्तीनियों का दर्द क्या होता है। 

     अभी बस इतना लिखना हुआ ही था कि अमरीका से एक खबर आई है, वहां पर एक 71 बरस के ईसाई मकान मालिक ने अपनी एक फिलीस्तीनी मुस्लिम महिला किराएदार और उसके 6 बरस के बेटे को उनके घर में घुसकर दर्जनों बार चाकू घोंपा, और चीखते रहा कि तुम मुस्लिमों को मार डाला जाना चाहिए।

    यह इजराइल-फिलीस्तीन मुद्दे को लेकर अमरीका में हुआ एक नफरती अपराध है जिसमें छोटा सा बेकसूर बच्चा इस तरह मार डाला गया। किसी धर्म से नफरत लोगों को 71 बरस की उम्र में भी हत्यारा बनाकर बाकी जिंदगी जेल भेज सकती है, इसकी यह एक जलती-सुलगती मिसाल है।

     राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस बच्चे की हत्या को नफरत का भयानक जुर्म बताया है, लेकिन यह कहते हुए वे अपनी उस मुनादी को भूल गए हैं जिसमें उन्होंने इसी हफ्ते इजराइल को फिलीस्तीनी नागरिकों पर हमले की खुली छूट दी थी, खुला उकसावा दिया था। हमास के लड़ाकों पर हमले के नाम पर इजराइल ने फिलीस्तीन के नागरिक इलाकों पर जो बमबारी की है उसमें ढाई हजार से अधिक लोग मारे गए हैं, जिनमें से अधिकतर आम नागरिक हैं।

     अमरीकी राष्ट्रपति का ऐसा खुला उकसावा अमरीका के कुछ धर्मान्ध नागरिकों को भी उसी तरह प्रभावित कर रहा है जिस तरह भारत के अहमदाबाद के क्रिकेट दर्शकों को।

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