अग्नि आलोक
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*हुनर होना चाहिए,अंदर की बुराई परखने का*

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शशिकांत गुप्ते

नवरात्रि की समाप्ति के बाद हम दशहरा बहुत ही उत्साह से मनाते हैं।
दशहरा मनाने के लिए हमारे उत्साह का महत्व इसलिए है कि, दशहरे के दिन हम रावण के पुतले का बुराई के प्रतीक के रूप में दहन करते हैं।
दशहरे के दिन के लिए हम ही रावण के पुतले निर्मित करते हैं।
हम ही रावण के पुतलों को जलाते भी हम ही हैं।
रावण दहन का आयोजन हर शहर,नगर,गांव और हर अंचल तक किया जाता है। एक ही शहर में अनेक जगह रावण के दहन का आयोजन होता है।
रावण दहन के आयोजन के स्थलों की संख्या को देखते हुए रावणों को निर्मित करने की संख्या क्षमा करण रावणोँ के पुतलों को निर्मित करने की तादाद भी ही उतनी ही चाहिए।
मांग और आपूर्ति के सिद्धांत का तो पालन होना ही चाहिए।
इसलिए तादाद में रावण निर्मित किए जाते हैं।
दशहरे के दिन के लिए रावनों का उत्पादन करना और उन्हें बेचना भी एक व्यवसाय हैं,मतलब स्वरोजगार है। रावण बनाने वालें विभिन्न आकार,प्रकार के रावण बनाते हैं। छोटे,बड़े नाटे, कुछ जगह तो रावण सौ फीट से अधिक ऊंचाई के बनाएं जाते हैं।
रावण किसी भी कद काठी के निर्मित किए जाएं,सभी रावण अंतः बुराई के प्रतीक में ही निर्मित किए जाते हैं, यह सत्य हैं।
बुराई के प्रतीक के रूप में रावण दहन के आयोजन के लिए बाकायदा सामाजिक,राजनैतिक उद्योग जगत के रसूखदार,क्षमा करना हर क्षेत्र के गणमान्य सज्जनों को अधक्ष, मुख्य अथिति, या विशेष अथिति के रूप में आमंत्रित किया जाता है। रावण दहन के पूर्व इन सज्जनों का सम्मान भी किया जाता है।
अथितियों का उद्बोधन भी होता है। तकरीबन सभी अथिति इस मुद्दे से सहमत होते हैं कि,रावण के पुतले का दहन बुराई के प्रतीक के रूप में किया जाता है। सभी अथिति परंपरा को निभाते हुए,प्रति वर्ष,सर्वत्र व्याप्त बुराई को समाप्त करने के लिए उपदेशक भाषण देते हैं।
रावण के दहन के पूर्व कोई एक व्यक्ति हां हां हां ही ही ही की कर्कश आवाज करते हुए रावण की मिमिक्री करता है।
संभवतः त्रेतायुग में “भी” ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए कोई कानून नहीं होगा?
शायद,रावण अपने दसों मुंह से एक साथ हँसता होगा तो, इसीलिए इतनी कर्कश आवाज निकलती होगी?

रावणों के पुतलों में हम धमाके की आवाज में फूटने वाले बॉम नामक पटाखे भी रखते हैं।
रावण का पुतला जलता है,रावण के पुतले के शरीर में रखे पटाखे फूटते हैं तो,रावण के पुतले के अंग प्रत्यंग छिन्न भिन्न होकर जलते हैं। दर्शकों का मनोरंजन होता है।
इस परंपरा का निर्वाह कब तक होता रहेगा? यह बुराई पर निर्भर है। क्षमा करना रावण की बुराई पर ही निर्भर है।
रावण के पुतलों का बुराई के प्रतीक के रूप में दहन होता है और दर्शकों का मनोरंजन होता है।
रावण में कितनी बुराई होगी?त्रेतायुग में जन्मे रावण की बुराई आज कलयुग तक समाप्त नहीं हो रही है? यह खोज का विषय है।
इतना लिखने के बाद यकायक मुझे शायर खलील तनवीर रचित निम्न शेर का स्मरण हुआ।
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
इसी तरह संत क्बीरसाहब का यह दोहा भी याद आ गया।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय
मेरा लिखा लेख पढ़कर मेरे एक दार्शनिक मित्र नाराज हो गए। कहने लगे आपने लेख तो अच्छा लिखा है लेकिन शेर और दोहा नही लिखना था। प्रत्येक विषय पर व्यंग्य करना दर्शन शास्त्र के विपरित है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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