शशिकांत गुप्ते
सीतारामजी,आज मुझसे मिलते ही कहने लगे सच में अपने देश में लोकतंत्र है।
मैने पूछा कैसे?
सीतारामजी ने कहा चुनावी मौसम में बागियों का उदय होना लोकतंत्र का ही संकेत है।
असमति लोकतंत्र की बुनियाद है।
मैने सीतारामजी से पूछा आज आपके अंदर का व्यंग्यकार कहां खो गया?
सीतारामजी ने कहा हमेशा गंभीर मानसिकता में नहीं रहना चाहिए,कभी कभार सहज होकर विनोदी मानसिकता में भी रहना चाहिए।
मैने सीतारामजी की बात का समर्थन करते कहा, हां बागी होने के लिए चुनावी मौसम ही उपयुक्त है। अन्य दिनों में यदि कोई बागी होता है। उसकी चर्चा,सिर्फ पार्टी कार्यालय में सिमट कर रह जाती है। चुनाव के मौसम में बागी होने वालें समाचार माध्यमों के लिए ब्रेकिंग न्यूज बन जाते हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र में चर्चा होती है,और यह कहावत चरितार्थ होती है।
बद-नाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ
सीतारामजी ने कहा आश्चर्य होता है, Party with difference का स्वांग रचने वाले दल में बागियों की संख्या दूसरे दलों से अधिक है।
मैने कहा स्वयं के दल के जो बागी होते हैं उन्हे तो येनकेनप्रकारेण मतलब अंदरखाने आपसी सूझबूझ से खग जाने खग की भाषा में समझाया जा सकता है।
आश्चर्य तो यह जानकर होता है कि, party with difference का नारा बुलंद करने वाले दल में दूसरे दल के दागियों को guaranty के साथ साफ स्वच्छ
करने के लिए विशेष ब्रांड का वाशिंग पावडर उपलब्ध है।
सीतारामजी ने कहा बागियों और दागियों से भरपूर सियासत भी कितनी मनोरंजक है।
मैने सीतारामजी से कहा यह सब जो रहा है,वह लोकतंत्र का बेजा फायदा उठाया जा रहा है।
सच्चे बागी तो वे लोग थे,जो स्वतंत्रता आंदोलन में विदेशी हुकूमत के विरुद्ध बगावत करते थे। जेल जाते थे,और वे जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी शहादत दी।
ये आजादी के दीवाने नारे लगाते थे,
सच कहना अगर बगावत है
तो समझो हम भी बागी है
यही बुनियादी अंतर है सच्चे बागियों में और सत्ता लोलूप बागियों में।
यह सत्ता,पूंजी और व्यक्ति केन्द्रित राजनीति का नतीजा है।
आमजन को Election में प्रत्याशी का Selection बहुत सोच समझ कर करना चाहिए।
मत अमूल्य है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर